चैत्र नवरात्रि 2022 का प्रारंभ 2 अप्रैल को हुआ। नवरात्रि में देवी मां के नौ रूपों का पूजन किया जाता है। ऐसे में नवरात्रि के पांचवें दिन देवी मां के पांचवें रूप मां स्कंदमाता का पूजन किया जाएगा। मान्यता के अनुसार स्कंदमाता की आराधना करने से मोक्ष के द्वार खुलते है और भक्त को परम सुख की प्राप्ति होती है। वहीं मां स्कंदमाता को सुख शांति की देवी भी माना गया है।
इसके अलावा ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार बुध ग्रह को देवी स्कंदमाता ही नियंत्रित करती हैं। वहीं देवी की पूजा से बुध ग्रह के बुरे प्रभाव कम हो जाते हैं। इसके साथ ही स्कन्दमाता माता को पद्मासना देवी भी कहा जाता है। इनकी गोद में कार्तिकेय बैठे होते हैं इसलिए इनकी पूजा करने से कार्तिकेय की पूजा अपने आप हो जाती है।
यहां ये जान लें कि स्कंदमाता को ये नाम स्कंद अर्थात कुमार कार्तिकेय की माता होने के कारण मिला है। देवी के इस रूप के नाम का अर्थ, स्कंद मतलब भगवान कार्तिकेय/मुरुगन की माता है। ऐसे में जो भी जातक नवरात्रि के पांचवे दिन स्कंदमाता माता का पूजन और ध्यान करता है।
देवी माता अपने उस भक्त की समस्त इच्छाओं को स्वयं पूर्ण करती हैं। इसके साथ ही मां स्कन्दमाता की आराधना करने वाले भक्तों को सुख शान्ति और शुभता की भी प्राप्ति होती है।
स्कंदमाता के पूजन का महत्व :
स्कंदमाता का हिन्दू धर्म में तो विशेष महत्व बताया ही गया है, साथ ही ज्योतिष विज्ञान में भी विशेष स्थान प्राप्त है। बुध ग्रह को नियंत्रित करने वाली देवी होने के चलते देवी मां के संबंध में मान्यता है कि स्कंदमाता की पूजा-आराधना पूरे विधि विधान से करने पर जातक के बुध ग्रह से संबंधित सभी दोष और बुरे प्रभाव शून्य या फिर समाप्त हो जाते हैं। ऐसे में नवरात्रि के पांचवें दिन स्कंदमाता का पूजन करने से आपको उनका आशीर्वाद तो प्राप्त होता ही है, साथ ही बुध देव की कृपा की भी प्राप्ति होती है।
माना जाता है कि देवी की कृपा से वंश आगे बढ़ता है और संतान संबधी सारे दुख भी दूर हो जाते हैं। घर-परिवार में हमेशा खुशहाली रहती है। कार्तिकेय की पूजा से मंगल भी मजबूत होता है।
स्कंदमाता की पूजा विधि :
मान्यता है कि स्कंदमाता के पूजन से भक्तों को अपने हर प्रकार के रोग-दोषों से मुक्ति मिलती है। नवरात्रि के पांचवें दिन की पूजा का विधान भी नवरात्रि के अन्य दिनों की तरह ही कुछ इस प्रकार है:-
- सर्वप्रथम स्कंदमाता की पूजा से पहले कलश देवता अर्थात भगवान गणेश का विधिवत तरीके से पूजन करना चाहिए।
- भगवान गणेश को फूल, अक्षत, रोली, चंदन, अर्पित कर उन्हें दूध, दही, शर्करा, घृत, व मधु से स्नान कराने के पश्चात देवी को अर्पित किये जाने वाला प्रसाद का पहले भगवान गणेश को भी भोग लगाना चाहिए।
- इसके पश्चात आचमन और फिर पान, सुपारी भेंट करें।
- फिर कलश देवता के पूजन के बाद नवग्रह, दशदिक्पाल, नगर देवता, ग्राम देवता, की पूजा भी करें।
- इन सबकी पूजा-अर्चना करने के बाद ही स्कंदमाता का पूजन शुरू करें।
- स्कंदमाता की पूजा के समय सबसे पहले अपने हाथ में एक कमल का फूल लेकर उनका ध्यान करें।
- इसके पश्चात स्कंदमाता का पंचोपचार पूजन कर, उन्हें लाल फूल, अक्षत, कुमकुम, सिंदूर अर्पित करें।
- फिर घी अथवा कपूर जलाकर स्कंदमाता की आरती करें।
- जिसके पश्चात अंत में मां के मंत्रों का उच्चारण करते हुए उनसे अपनी भूल-चूक के लिए क्षमा मांगें।
: पंचमी तिथि यानी नवरात्रि के पांचवें दिन माता दुर्गा को केले का भोग लगाने के अलावा गरीबों को भ्री केले का दान करें। इससे आपके परिवार में सुख-शांति रहने की मान्यता है।
ऐसे करें पूजन :
नवरात्रि के पांचवे दिन पीले रंगे के कपड़े पहनकर स्कंदमाता की पूजा करें, मान्यता के अनुसार इससे शुभ फल की प्रप्ति होती है। इसके अलावा इस दिन माता को लाल पीले फूल अर्पित करने चाहिए। साथ ही देवी मां को इस दिन मौसमी फल, केले, चने की दाल का भोग लगाना चाहिए।
नवरात्रि के पांचवे दिन से जुड़े मंत्र :
ॐ देवी स्कन्दमातायै नमः॥
माता स्कंदमाता की पैराणिक कथा :
पौराणिक कथा के अनुसार प्राचील काल में एक तारकासुर नाम का राक्षस था, जिसने ब्रह्माजी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया। उसके इस तप से प्रसन्न होकर एक दिन भगवान उसके सामने प्रकट हो गए। तब उसने उसने अजर-अमर होने का वरदान मांगा।
इस पर ब्रह्मा जी ने उसे समझाया की इस धरती पर जिसने भी जन्म लिया है उसे मरना ही है। फिर उसने सोचा कि शिव जी तपस्वी हैं, इसलिए वे कभी विवाह नहीं करेंगे। अतः यह सोचकर उसने भगवान से वरदान मांगा कि वह शिव के पुत्र द्वारा ही मारा जाए। ब्रह्मा जी उसकी बात से सहमत हो गए और तथास्तु कहकर चले गए। उसके बाद उसने पूरी दुनिया में तबाही मचानी शुरू कर दी और लोगों को मारने लगा।
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