साजन तुम सिंदूर हो मेरे
बिंदिया की चमक
आंखों की नूर हो मेरे
रोशन तुमसे मेरा यह जहां है
चूड़ियों की खनक
पांव की छनक हो तुम
जो हाथों में मेरी लगे मेंहदी
उस मेंहदी की लाली हो तुम
अर्धांग हो तुम मेरे
तुमसे ही रंगीन
मेरी यह पोशाक है
चांद हो मेरे तुम
तुमसे ही पूर्णिमा
जीवन में मेरे हर रोज़ है
क्या कहूं मैं तुमसे साजन
मेरा अस्तित्व हो तुम
जो करूं सोलह श्रृंगार
उस श्रृंगार की वजह हो तुम
साजन, बहुत खास हो तुम।।
✍️डॉ0 जानकी झा
कटक, ओडिशा।
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