जानिए कब है रंगभरी एकादशी, पूजा मुहूर्त, महत्व और भगवान शिव से संबंध


रंगभरी एकादशी : मान्यता है इन दिन बाबा विश्वनाथ माता गौरा का गौना कराकर पहली बार काशी आए थे, तब उनका स्वागत रंग, गुलाल से हुआ था।

हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को रंगभरी एकादशी मनाई जाती है। इसे आमलकी एकादशी भी कहते हैं। साथ ही यह एक मात्र ऐसी एकादशी है, जिसका संबंध भगवान शिव से भी है। इसलिए इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की ​विशेष पूजा काशी विश्वानाथ की नगरी वाराणसी में होती है। आइए जानते हैं रंगभरी एकादशी ति​थि, पूजा मुहूर्त एवं महत्व के बारे में…

जानिए रंगभरी एकादशी का महत्व :

आपको बता दें कि इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु के साथ-साथ आंवले के पेड़ की भी विधि-विधान से पूजा की जाती है। यही नहीं रंगभरी एकादशी के दिन काशी विश्वनाथ की नगरी वाराणसी में भगवान शिव शंकर समेत माता पार्वती की ​आराधना की जाती है। साथ ही इस दिन बाबा विश्वनाथ माता पार्वती के साथ नगर भ्रमण करते हैं और पूरी नगरी लाल गुलाल से रंग जाती है। वहीं इस दिन भगवान भोलेनाथ का स्वरुप देखकर हर शिवभक्त आनंदित हो जाता है। 

माता गौरा का कराया जाता है गौना :

साथ ही कहा जाता है कि बाबा विश्वनाथ माता गौरा का गौना कराकर पहली बार काशी आए थे, तब उनका स्वागत रंग, गुलाल से हुआ था। इस वजह से हर साल काशी में रंगभरी एकादशी के दिन बाबा विश्वनाथ और माता गौरा का धूमधाम से गौना कराया जाता है।

रंगभरी एकादशी तिथि और मुहूर्त : 

-फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि का आरंभ- 13 मार्च दिन रविवार को सुबह 10 बजकर 21 मिनट पर होगा।

-फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि का समापन- 14 मार्च दिन सोमवार को दोपहर 12 बजकर 05 मिनट पर होगा।

-रंगभरी एकादशी- उदयातिथि के अनुसार 14 मार्च को मनाई जाएगी।

-रंगभरी एकादशी का शुभ मुहूर्त- दोपहर 12 बजकर 07 मिनट से, दोपहर 12 बजकर 54 मिनट तक है।

इस तरह करें पूजा :

सुबह जल्दी उठकर नहाकर शिव-पार्वती की पूजा करें। शिव-पार्वती को गुलाल अर्पित करें। इसके बाद भगवान शंकर को बेलपत्र, दूध और भांग चढ़ाएं।




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