मिटा है आधार का मौसम

 


हजारों रंग लेके आ गया त्यौहार का मौसम 

यही है नव युगल के प्रेम और अभिसार का मौसम

तरंगें हर रगों में तेज बिजली सी मचलती हैं।।

सभी का मन किया चंचल यही है प्यार का मौसम

महक आती है गुझियों की घरों से दिल लुभाती है

रंगीले दिन हैं गीले रंगों के अम्बार का मौसम।।

किसी बैर क्या पालोगे सुन लो ये मेरे प्यारों

नहीं फिर लौटकर आता किसी दरबार का मौसम।।

प्रेयसी है तुम्हारी जिंदगी दिल-जान से चाहो

नहीं कुछ फिर बचेगा बाद इस बाज़ार का मौसम।।

करके बेइमानियां बोलो न कितने धन कमाओगे

समन होंगे ये सब ही दौलत-ए-अम्बार का मौसम।।

ये मेरे प्राण प्यारे आ गले से तूं लगा मुझको

लुटाऊं मैं तुझी पर इस जवां संसार का मौसम।।

लगा दे तूं ज़रा सा रंग बढ़के मेरे गालों पर

रंगू मैं तन बदन तेरा रहे गुलज़ार का मौसम।।

तुम्हारे अंक में बैठूं निहारों मुस्कुराओं तुम

मिला है तूं मुझे जबसे मिटा है ख़ार का मौसम।।

 

 अंतिमा सिंह "गोरखपुरी"



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