कई पुश्ते कई पीढियाँ बन जाती हैं।

 यहाँ तो एक निशाने से कई 

चिडियाँ मर जाती हैं,

एकबार मंत्री बन जाओ तो 

कई पुश्ते कई पीढियाँ बन जाती हैं,

किसी तरह टिकट का जुगाड़ करके

सांसद या विधायक बन जाओ,

तो कमीशनखोरी से दौलत की

कई तिजोरियां भर जाती हैं,

ऐ विज्ञापन के चकाचौंध का दौर है 

हर तरफ दलबदलुओं 

रंग बदलने के माहिर गिरगिटों 

लाव लस्कर के साथ चलने वाले 

बाहुबलियों और धनपशुओं 

का ही खूब बोलबाला है। 

यहाॅ तो उसूलो पर मिटने वालों की 

सडक पर संघर्ष करते-करते

सर के बाल और दाढियाॅ पक जाती हैं। 

धूंल झोंककर ही सही 

एकबार माननीय बन जाओ 

तो शोहरत और बुलंदियों की 

कई खिडक़ियाॅ खुल जाती हैं। 

लोकतंत्र में लोगों की उंगलियों के 

निली स्याही का गर निशान मिल जाएं 

तो लखनऊ से दिल्ली तक 

हनक हेकडी रुतबा रसूख की 

कई सीढियां बन जाती हैं ।।


मनोज कुमार सिंह प्रवक्ता 

बापू स्मारक इंटर कॉलेज दरगाह मऊ। 



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