दिवाली का पर्व 4 नवंबर को है. इस दिन लक्ष्मी जी का पूजन विशेष महत्व रखता है. लेकिन इस दिन दक्षिणावर्ती शंख के साथ यदि पूजन करते हैं तो कई गुना लाभ मिलता है.
दिवाली के पर्व में अब महज कुछ ही घंटे शेष रह गए हैं. 3 नवंबर को छोटी दिवाली है. इसे नरक चतुर्दशी भी कहा जाता है. इसके बाद यानि 4 नवंबर को दिवाली का पर्व मनाया जाएगा. दिवाली का पर्व मां लक्ष्मी जी को समर्पित है. इस दिन लक्ष्मी पूजन का विशेष महत्व है. दिवाली की रात दक्षिणावर्ती शंख के साथ लक्ष्मी पूजन करते हैं तो भाग्य में वृद्धि होती है और लक्ष्मी जी की कृपा से धन की कमी दूर होती है. आइए जानते हैं इस चमत्कारी शंख के महत्व के बारे में-
समुद्र मंथन से हुई उत्पत्ति :
दक्षिणावर्ती शंख की उत्पत्ति समुद्र मंथन से हुई थी. पौराणिक कथा के अनुसार मंथन से जो 14 रत्न प्राप्त हुए थे, उनमे से एक दक्षिणावर्ती शंख भी है. इसीलिए इसे बेहर पवित्र और पूज्य माना गया है.
मांगलिक कार्य में शंख की ध्वनि के बिना अधूर हैं :
हिंदू धर्म में शादी विवाह, उत्सव और अन्य मांगलिक कार्यों में शंख बजाने की परंपरा है. शंख की ध्वनि को अत्यंत शुभ और मंगलकारी माना गया है. शास्त्रों में शंख की स्थापना के नियम भी बताए गए हैं. सभी प्रकार के शंखों में दक्षिणावर्ती शंख को श्रेष्ठ और अत्यंत शुभ बताया गया है.
दक्षिणावर्ती शंख की ये खास बात इसे बनाती है अलग:
अधिकतर शंख वामावर्ती होते हैं. यानि वामावर्ती शंखों का पेट बायीं तरफ खुला हुआ रहता है. जबकि दक्षिणावर्ती शंख का मुख दायीं तरफ होता है. शास्त्रों में इस शंख को धार्मिक दृष्टि से कल्याणकारी और शुभ बताया गया है. वहीं इस शंख को कान पर लगाने से ध्वनि सुनाई देती है.
'ॐ श्री लक्ष्मी सहोदराय नम:'
लक्ष्मी पूजन के बाद इसे लाल कपड़े में लपेट कर रखना चाहिए. मान्यता है कि दिवाली के रात जिस घर में दक्षिणावर्ती शंख के साथ लक्ष्मी जी की पूजा होती है, वहां पर लक्ष्मी जी का आगमन होता है. आय में वृद्धि होती है. धन से जुड़ी समस्याएं दूर होती हैं. घर की नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने में भी इस शंख की विशेष भूमिका बताई गई है.
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