कल है बैकुंठ चतुर्दशी, जानें क्यों है इस चतुर्दशी का विशेष महत्व


सनातन धर्म में बैकुंठ चतुर्दशी का व‍िशेष महत्‍व है। यह त‍िथ‍ि कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को पड़ती है। इस बार यह त‍िथ‍ि 17 नवंबर यानी क‍ि गुरुवार को है। धार्मिक मान्‍यताओं के अनुसार जो भी जातक इस द‍िन श्रीहर‍ि की पूजा करते हैं या व्रत रखते हैं उन्‍हें बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है। तो आइए जानते हैं क‍ि इस बार बैकुंठ चतुर्दशी कब है और क्यों है इस चतुर्दशी का विशेष महत्व?

बैकुंठ चतुर्दशी त‍िथ‍ि और महत्‍व : बैकुंठ चतुर्दशी त‍िथ‍ि की शुरुआत 17 नवंबर बुधवार प्रात: 09 बजकर 50 म‍िनट पर। चतुर्दशी त‍िथ‍ि की समाप्ति 18 नवंबर यानी क‍ि गुरुवार को है। बैकुंठ चतुर्दशी का शास्‍त्रों में व‍िशेष महत्व बताया गया है। इस दिन मृत्यु को प्राप्त होने वाले व्यक्ति को सीधे स्वर्गलोक में स्थान की प्राप्ति होती है। इस दिन भगवान शिव और भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस दिन शिवजी और विष्णुजी की पूजा करने से सभी प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं। पुराणों के अनुसार इसी दिन भगवान शिव ने भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र दिया था। इस दिन शिव और विष्णु दोनों ही एकाएक रूप में रहते हैं।

बैकुंठ धाम में द‍िलाता है स्‍थान : बैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु की 1 हजार कमलों से पूजा करने वाले व्यक्ति और उसके परिवार को बैकुंठ धाम में स्थान प्राप्त होता है। महाभारत काल में भी भगवान श्रीकृष्ण ने युद्ध में मारे गए योद्धाओं का श्राद्ध बैकुंठ चतुर्दशी के दिन ही कराया था। इसल‍िए इस दिन श्राद्ध और तर्पण करना भी अत्‍यंत श्रेष्ठ माना गया है। बैकुंठ धाम केवल सद्गुणी, दिव्य पुरुष या सतकर्म करने वाले जातकों को प्राप्‍त होता है। लेकिन श्रद्धापूर्वक रखा गया बैकुंठ चतुर्दशी का व्रत बैकुंठ धाम में स्‍थान द‍िलाता है।




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