भारत समेत दुनियाभर में दिवाली की तैयारी जोरों पर है। दिवाली हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है। दिवाली का त्योहार हर साल कार्तिक महीने की कृष्ण की अमावस्या को मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिककार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को ही समुद्र मंथन से मां लक्ष्मी का आगमन हुआ था।
एक अन्य मान्यता के अनुसार इस दिन मां लक्ष्मी का जन्म दिवस होता है। कुछ स्थानों पर इस दिन को देवी लक्ष्मी के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है। एक अन्य मान्यता के मुताबिक दिवाली के दिन ही भगवान राम अयोध्या लौटे थे। भगवान राम के आने की खुशी में अयोध्यावासियों ने उनका दीप जलाकर स्वागत किया था।
मान्यता के मुताबिक दिवाली की रात माता लक्ष्मी पृथ्वी लोक में आती हैं और लोगों के घर पधारती हैं। मान्यता है कि दिवाली की रात श्रद्धा और पूजन के माध्यम से जो व्यक्ति देवी लक्ष्मी को प्रसन्न कर लेता है, उसके जीवन में धन-धान्य कम नहीं होता है। देवी लक्ष्मी ऐसे व्यक्ति के साथ हमेशा रहती हैं।
मान्यता है कि दिवाली पर मां लक्ष्मी की साधना-अराधना करने से सालभर तक आर्थिक तंगी नहीं रहती और मां लक्ष्मी की कृपा से धन का भंडार भरा रहता है। इतना ही नहीं, इस दिन ऋद्धि-सिद्धि के दाता और प्रथम पूजनीय गणपति की भी साधना की जाती है। जिनकी कृपा से सभी कार्य निर्विघ्न संपन्न होते हैं।
शास्त्रों में माता लक्ष्मी को धन और वैभव की देवी माना गया है। लक्ष्मी जी की कृपा से जीवन में संपन्नता आती है। कष्टों से मुक्ति मिलती है। मान्यता है कि दिवाली की रात शुभ मुहूर्त में पूजा करने से लक्ष्मी जी की विशेष कृपा प्राप्तत होती है। यही कारण है दिवाली की पूजा का लोगों को इंतजार रहता है।
पौराणिक कथा :
दीपावली को लेकर हिन्दुओं में माता लक्ष्मी की एक कथा बहुत प्रचलित है। एक बार कार्तिक मास की अमावस को लक्ष्मीजी भ्रमण पर निकलीं, लेकिन पूरी दुनिया में चारों ओर अंधकार था। वे रास्ता भूल गईं तो निश्चय किया कि रात्रि वे मृत्युलोक में गुजार लेंगी और सूर्योदय पश्चात बैकुंठधाम लौट जाएंगी, मगर उन्होंने पाया कि सभी लोग अपने-अपने घरों में दरवाजा बंद करके सो रहे हैं।
मगर इसी अंधेरे में उन्हें एक द्वार खुला दिखा, जिसमें एक दीपक की लौ टिमटिमा रही थी। वे उस प्रकाश की ओर चल दीं, जहां एक वृद्ध महिला को चरखा चलाते देखा। रात्रि विश्राम की अनुमति लेकर वह उसी कुटिया में रुकीं। वृ्द्धा मां लक्ष्मीदेवी को बिस्तर आदि देकर दोबारा काम में जुट गई।
चरखा चलाते-चलाते वृ्द्धा की आंख लग गई, अगली सुबह दूसरे दिन उठने पर उसने पाया कि अतिथि जा चुकी है, लेकिन कुटिया की जगह पर एक शानदार महल खड़ा हो चुका था, हर ओर धन-धान्य, रत्न-जेवरात बिखरे थे। तब से कार्तिक अमावस्या की रात दीप जलाने की प्रथा चली आ रही है, लोग द्वार खोलकर लक्ष्मीदेवी के आगमन की प्रतीक्षा करने लगे।
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