श्राद्ध पक्ष में इन 4 चीजों से मिलेगा आपको अपने पूर्वजों का आशीर्वाद


श्राद्ध पक्ष सिर्फ पूजा पाठ का वक्त नहीं। यह हमारे बुजुर्गों के जीवन से प्रेरणा लेने, उनके अच्छे कार्यों को आगे बढ़ाने का संकल्प करने और जीवन का महत्व समझते हुए इसे सद्कार्यों में लगाने की प्रेरणा देने वाला समय भी है।

श्राद्ध पक्ष यानी अपने पुरखों को याद करने की खास हिन्दू तिथियां। इन 16 तिथियों को लेकर विशेष प्रावधान, विशेष नियम और परंपराएं हैं। हिन्दू धर्म में किसी व्यक्ति के स्वर्गवास की तिथि के अनुसार यूं हर वर्ष उसी तिथि को उसके लिए धूप करने की रीति होती है। लेकिन श्राद्ध पक्ष में वार्षिक तिथि के अलावा उसी तिथि पर पुनः धूप करने, दान-पुण्य करने आदि का भी प्रावधान हैं। 

वर्ष में 16 दिनों के लिए आने वाले श्राद्ध पक्ष में अपने स्वर्गीय बड़े-बुजुर्गों, पुरखों की स्मृति में पूजन करने, पंडितों या जरूरतमंदों को भोजन करवाने और अपने सामर्थ्य अनुसार दान करने का विधान है। इस विधान के साथ बड़े-बुजुर्गों से प्रार्थना की जाती है कि वे परिवार पर अपना आशीर्वाद बनाये रखें। 

इस दौरान 16 दिनों नए कपड़े या कोई भी नई वस्तु न लेकर आने के नियम को भी कई लोग मानते हैं। इसके पीछे यह तर्क होता है कि चूंकि यह समय अपने प्रियजनों की पुण्यतिथि से जुड़ा होता है, एक दुखद याद से जुड़ा होता है। इसलिए ऐसे में कुछ नया खरीदकर, उत्सव मनाने की बजाय सादा जीवन जीने पर जोर दिया जाना चाहिए। 

यह भी धारणा है कि मृत्यु अंतिम सत्य है और भौतिकता से भरे जीवन के प्रति मोह न रखने की सीख देती है। कुल मिलाकर श्राद्ध पक्ष एक ऐसा अवसर है जो हमें अपने बुजुर्गों के किये सद्कार्यों को अपनाने, बिना आडम्बर का जीवन जीने और जीवन के प्रति आभार जताने की प्रेरणा देता है। इस अवसर पर कुछ इस तरह आप पा सकते हैं अपने बुजुर्गों का आशीर्वाद।

1. कंडे की धूप : यदि सम्भव हो तो 16 दिनों तक रोज सुबह गोबर के कंडे को अच्छी तरह जलाकर उसपर घी और शकर से धूप करें। यदि कंडे का मिलना सम्भव न हो तो सामान्य गूगल या धूप आदि का उपयोग भी कर सकते हैं। यह धूप वातावरण को शुद्ध करने के साथ ही मन को सकारात्मक ऊर्जा भी देती है। कोशिश करें कि सभी व्यक्ति इस जगह आकर प्रणाम करें और घी-शकर की आहुति दें। ध्यान रखें कि यदि घर में किसी व्यक्ति को धूल, धुएं आदि की एलर्जी है तो उसे इससे दूर रखें। धूप करते समय खिड़की-दरवाजे खुले रखें। 

2. दीप प्रज्वलन : यदि आप रोज दिया बाती करते हैं तो भी और यदि नहीं करते हैं तो भी, घर में जिस जगह आप पानी भरकर रखते हैं। उस जगह पर रोज शाम एक दिया अपने पुरखों की स्मृति में लगाएं और उसे प्रणाम करें। प्रार्थना करें कि घर के बड़े-बुजुर्ग और अन्य सभी सदस्यों की रक्षा करें और मार्गदर्शन करें।

3. सात्विक भोजन : घर के बुजुर्गों के श्राद्ध के दिन खीर-पूरी, कद्दू की सब्जी, रायता आदि बनाने का भी विधान है। इस भोजन में प्याज- लहसुन आदि का प्रयोग न करते हुए सादा हींग-जीरे का छौंक लगाएं। आप एकदम सादा भोजन बनाकर भी पुरखों को भोग लगा सकते हैं। कोशिश करें कि ताजा भोजन बनाकर आप किसी जरूरतमन्द को खिलाएं। कोरोना महामारी के इस दौर में कई जगह ऐसे संस्थान सेवाएं दे रहे हैं जहां भोजन या राशन की आवश्यकता है। अनाथालय, वृद्धाश्रम या अस्पताल आदि स्थानों पर कई समूह घरों से भोजन लेकर बांटने का काम करते हैं। ऐसे किसी समूह की सेवाएं आप ले सकते हैं। 

4. सबसे आवश्यक और महत्वपूर्ण बात : जो बुजुर्ग अब साथ नहीं हैं, उनकी रुचि या जीवनचर्या के हिसाब से कोई ऐसा कार्य करें जो उन्हें पसन्द था। जैसे किसी बुजुर्ग को अगर बागवानी पसन्द थी तो उनकी स्मृति में कोई पौधा लगाएं, कोई यदि शिक्षा के पक्षधर रहे तो उनकी स्मृति में किसी एक जरूरतमन्द बच्चे की शिक्षा का सामर्थ्य अनुसार खर्च उठा लें, कोई यदि कला से जुड़े हुए थे तो उनके नाम से किसी प्रतिभावान कलाकार को पुरस्कार दें या आप चाहें तो सिर्फ इतना करें कि उन बुजुर्ग के श्राद्ध के दिन परिवार के बच्चों व युवाओं को बुजुर्गों के संघर्ष और जीवन के बारे में बताएं।

यह हमेशा याद रखें कि श्राद्ध पक्ष सिर्फ पूजा पाठ का वक्त नहीं। यह हमारे बुजुर्गों के जीवन से प्रेरणा लेने, उनके अच्छे कार्यों को आगे बढ़ाने का संकल्प करने और जीवन का महत्व समझते हुए इसे सद्कार्यों में लगाने की प्रेरणा देने वाला समय भी है। इसलिए इन 16 दिनों में जीवन को समझते हुए उसे सार्थक करने का भी प्रयास करें।
















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