तेरे आलीशान महलों का शौक, कभी-न कभी तो खंडहर ही होना है। तेरी अकड, तेरी पकड़, तेरा रुतबा, तेरा रसूख, तेरी हनक, और तेरा खौफ़, सिर्फ दिखावा, नुमाईश और तमाशा है, ऐ तेरा सिकंदर होने का गुरूर कभी न कभी जरूर एक दिन जमीं के अन्दर ही होना है। ऐ दरिया तू लाख उफनती हूई आ, हर हाल में तुझे समंदर ही होना है। दौलत के नशे में चूर, मगरूर और बेईमानी और धोखाधड़ी से मशहूर, बदहवास बददिमागों को कहाँ मालूम है?
झूठ,फरेब, मक्कारी, धूर्तता और बाजारवादी चतुराईयों के दम पर खड़ी दौलते, परिवार में कोई सुकून, कोई खुशहाली नहीं ला पाती, सुकून और खुशहाली आती हैं भावनाओं संवेदनाओं के बेहतर प्रबंधन से, अपनत्व, मातृत्व और भ्रातृत्व की बेहतर सूझ-बूझ और उसको निभाने की समझदारी से, खुशियाॅ कभी आसमानी फ़रिश्तों से नहीं मिलतीं, खुशियाँ मिलती हैं रिश्तों-नातों की डोर थाम कर चलने से और बंधन से।
इतिहास गवाह है, दौलत के नशे में चूर रिश्तों-नातों को खाक में मिलाने वाले, एक न एक दिन खाक में जरूर मिल जाते है दया, करूणा, परोपकार, प्यार मुहब्बत और आपसी भाईचारे के किस्से कहानियां याद रहते हैं।
तेरे रथों, लम्बी लक्जरी गाड़ियों के काफिले सिर्फ हवा-हवाई हैं, अनगिनत बादशाहों, शहंशाहो और मगरूर हुक्मरांनो के काफिले, दफ्न हैं इन्हीं रेगिस्तानों की रेत में, तेरी मंहगी लक्जरी गाडियों के पुर्जे-पुर्जे कभी-न-कभी कबाड़ख़ाने की धरोहर बन जायेंगे बिक जायेगे नमक के भाव में तेरी तेज रफ्तार के सारे औजार। रह जायेगी इंसानियत की राह पर तेरी फर्ज अदायगी, मातृभूमि और मातृभूमि में रहने वाले लोगों के लिए तेरी दीवानगी, मानवता के लिए तेरी कुर्बानियां, और वेबस लाचार के हक-हकूक के हक में लड़ी गई तेरी कहानी, त्याग तपस्या और संघर्ष की निशानियां ।।
इसलिए अपनी जिम्मेदारियों का एहसास कर, प्यार मुहब्बत भाईचारे का दिल खोलकर इजहार कर, दया करूणा परोपकार के भाव को अंगीकार कर, रोती बिलखती दुनिया का उद्धार कर। फिर तुम भी अमर हो जाओगे और अमर हो जायेगी तेरी करस्तानियाॅ ।
मनोज कुमार सिंह "प्रवक्ता"
बापू स्मारक इंटर काॅलेज दरगाह, मऊ।
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