मौत ने ज़माने को ये समा दिखा डाला : परवेज़ अख्तर

 


कॅरोना ने ऑक्सीज़न ने अस्पतालों ने और सिस्टम ने तथा लाकडाउन ने वो समा बाँधा है कि मौत के मूँह में समा कर कोई "लाश" बन गया! किसी का इकलौता बेटा किसी का बाप कोई घर सम्हालने वाला शख्स मर गया पीछे जो छूट गया वो "ज़िंदा लाश" बन कर रह गया! 

तैरती लाशों को देख कर भी अनदेखा करने वाला हर शख्स ज़िन्दा होते हुये भी "एक लाश" बन गया!

हाथरस की एक बच्ची की असमय मौत के बाद जब उसका अंतिम संस्कार सूर्यास्त के बाद कर दिया गया था तो पूरे देश में एक कोहराम बरपा हो गया था! 30% उस बच्ची की मौत का कोहराम था तो 70% कोहराम इस बात पर मचा था कि हिंदू रीतियों के उलट अन्तिम संस्कार रात में क्यों किया गया!

पर कॅरोना ने मौत का ऐसा ताण्डव खेला कि अंतिम संस्कार करने में रात क्या......! और दिन क्या.....! 

इस आपदा से पहले मरने वाले को रीतियों के अनुकूल ससम्मान समय का ध्यान रख कर, चिता की अग्नि में देकर संस्कार किया जाता था , अस्थियों की राख को गंगा में नदियों में विसर्जित करके, पंच तत्वों के हवाले किया जाता था।।

पर इस महामारी के वक्त मरने वाले को सीधे गंगा में  नदियों में बहा दिया गया ! जलाने और विसर्जन की एक बहुत बड़ी आस्था और रस्म को दरकिनार करके दफ़ना दिया गया! और वो भी दो फिट पर तीन फिट पर..…

जिसका नतीजा दफनाने वाले को भी पता था कि क्या होगा! और दिखा भी के उन लाशों की क्या दुर्गति हुयी! 

हर धर्म में मौत के बारे में अपने अपने ग्रंथ के हिसाब से बताया गया है!

मौत के बारे में बहुत सारी बातों में खास तौर ये बताया गया है कि मौत से ही गले मिलने के बाद इंसान अपने भगवान से मिलता है ! अपने रब के पास जाता है! सँसारिक उहापोह से छुटकारा पाता है, उसकी मुक्ति होती है, दूसरी दुनिया में जा कर सुकून की नींद सोता है ! पर हमने अपनो को बहा कर, हमने अपनो को बगैर कोई आराम दिये, बगैर किसी सम्मान के, दफना कर उनके अंगों को कुत्ते व परिंदो को नोचते देखकर हम जिंदा होते हुये भी "ज़िन्दा लाश" बन कर रह गये हैं.....! 

हम इतना मज़बूर क्यों हो गये हैं !  हम इतना बेहिस क्यों हो गये हैं ! क्या हमारी अंतरात्मा हमारे जिस्म से निकलने से पहले मर गयी है ?

किसी की मौत की ख़बर सुनकर जहाँ हम लोग चौंक जाया करते थे,अब मौत की ख़बर सुनकर कहते हैं, ओह्ह अच्छा.....वो भी नहीं रहे!!

शायद ये इंसानी आमाल ही तो हैं कि कयी मरने वालों की उनकी कमाई दौलत काम न आई ! मौत हो जाने के बाद भी कयी लोगों को उनके अपने देख भी न पाये!

और जो ज़िंदा हैं लाकडाउन ने और सिस्टम ने उनकी कमर इतनी तोड़ दी है कि मौत आने से पहले ही वो पल पल मर रहे हैं..... ! 

शायद नौकरी पेशा लोगों पर नेताओं पर और उन पर जिनका बिज़नेस बुलन्दी पर है, इसका असर नहीं होगा! 

पर मध्यम वर्गीय जनता पर,

छोटे बड़े व्यापारी, बिज़नेस मैन, और रोज़मर्रा की दुकानदारी करने वालों के लिये फिर से खड़े होना एक बहुत बड़ी चुनौती होगी!!

क्योंकि

हमारी हरकतों से कुदरत तो हमें सजा दे ही रही है !

इसके उलट हमारे सिस्टम से कोई राहत नहीं मिल रही है! इकोनॉमी की पोजिशन सबको पता है आरबीआई के हालात किसी से छिपे नहीं हैं,और जीडीपी 40 साल की रिकार्ड गिरावट माइनस-7.50 दर्ज की गयी! बैंक खुद कंगाल हो रहे हैं उनकी तरफ से कोई छूट नहीं है, हर टैक्स अपने चरम पर है । मंहगाई अपने शबाब पर है! व्यापार पर तमाम तरह की पाबंदी हैं मैनुफैक्चरिंग से लेकर ट्रांसपोर्ट सेक्टर व जीएसटी से लेकर सेल तक में कयी पेचीदगियां हैं जिसमें बिज़नेस करना एक जंग लड़ने जैसा है!

ऐसे में फिर से खड़े होना एक *"दूसरी मौत"* से सामना करने जैसा होगा !

इन्ही सब चीजों को देखकर लगता है कि...

 *मौत ने ज़माने को ये समा दिखा डाला.....* 

 *परवेज़ अख्तर*

9335911148, 9454786073



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