बलिया। डॉ. राणा प्रताप सिंह ने बुलंद हौसले और सच्ची लगन से यह साबित कर दिया है कि कुछ भी असंभव नहीं है। शुरू से ही मेधावी व कुशाग्र बुद्धि के धनी डॉ. राणा प्रताप सिंह के अविष्कार को भारत सरकार ने मान्यता देते हुए उसे उनके नाम से पेटेंट कर दिया है। डॉ. राणा प्रताप सिंह की इस उड़ान से बलिया में खुशी की लहर है।
मूलरूप से चिलकहर ब्लाक के आलमपुर निवासी स्व. भगवती शरण सिंह व श्रीमती शांति सिंह रीता (उप्रावि असनवार की सेवानिवृत प्रधानाध्यापिका) के द्वितीय पुत्र डॉ राणा प्रताप सिंह एमडी कर रहे है।खोजी प्रवृत्ति व मानवजाति सेवा के लिए डॉ. राणा ने एक आविष्कार किया है, जिसे भारत सरकार ने पेटेंट कर दिया है। डॉ. राणा के अविष्कार से ब्लड सैंपल लेने के लिए जिस सिरिंज (सुई) का इस्तेमाल किया जाता है, वहीं सीरिंज कनवर्टर ब्लड स्टोरेज में चेंज हो जाती है। उसके बाद उसे एक स्थान से दूसरे स्थान तक सुरक्षित पहुंचाया व इस्तेमाल किया जा सकता है। सामान्य प्रक्रिया में शरीर से ब्लड लेने के बाद ब्लड को वायल में शिफ्ट किया जाता है। पांच भाई-बहन में डॉ. राणा की प्रारंभिक शिक्षा कॉन्वेंट सेंटमेरी स्कूल में हुई। फिर चीन से एमबीबीएस व लंदन से एमडी क्लिनिकल की पढ़ाई पूरी की। पढ़ाई समाप्त होते ही दिल्ली के एम्स व गंगाधर तिलक अस्पताल में दो साल डॉक्टर पद पर अपनी सेवाएं दी। एक साल के कठिन परिश्रम व लगन से एमडी (MD) की तैयारी की और प्रथम प्रयास में ही भारत के नामचीन मेडिकल कॉलेज में अच्छी रैंक लेते हुए उनका सिलेक्शन हुआ।
एमडी की शिक्षा प्राप्त करने के साथ ही कोविड-19 महामारी में ईश्वर का रूप बन हॉस्पिटलों में अपनी सुविधाएं एक वर्ष से दे रहे हैं। एक सवाल के जबाब में डॉ. राणा ने बताया कि वह अपने जीवन की इन उपलब्धियों को अपने परिवार व मां श्रीमती शांति देवी को समर्पित करेंगे। कहा कि उनकी इस सफलता में बड़ी बहन डॉ सुषमा सिंह, बड़े भाई रुद्र प्रताप सिंह, उनके छोटे भाई देवेंद्र प्रताप सिंह, भाभी श्रीमती कंचन सिंह व बहन श्वेता सिंह का भरपूर योगदान रहा। डॉ. राणा ने कहा, अविष्कार पेटेंट होने से खुश हूं। आगे भी अपने अन्य अविष्कारों को भी पेटेंट कराने का प्रयास करूंगा।
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