अपना अस्तित्व बचाने को जूझ रहा राष्ट्रीय वृक्ष बरगद : अभिनव पाठक, पर्यावरण स्वयंसेवक

धार्मिक महत्व और औषधीय गुणों से भरपूर राष्ट्रीय वृक्ष बरगद अपना अस्तित्व खो रहा है। बावजूद, इस पर न तो आमलोगों और न ही जिम्मेदारों का ध्यान है। प्रदेश में जुलाई महीने में वृहद वृक्षारोपण अभियान चलाया जाता है।

इसमें शायद राष्ट्रीय वृक्ष बरगद पर उतना ध्यान नहीं दिया जाता, जितना इसका महत्व है। बरगद के साथ ही पीपल व पाकड़ का कितना अधिक महत्व है। यह किसी से छिपा नहीं है। ये तीनों वृक्ष आधुनिकता की दौड़ में समाप्त होते जा रहे। ये तीनों वृक्ष मानव जाति को सबसे अधिक जीवनदायी ऑक्सीजन गैस प्रदान करते हैं। यही नहीं, हमारे द्वारा छोड़े गये दूषित कार्बन-डाई-आक्साइड गैस का अवशोषण कर हमारा जीवन सुरक्षित करते हैं।

बताते हैं कि तीनों वृक्षों में औषधीय गुण भी हैं। इन सबके बावजूद आज ये वृक्ष समाप्ति के कगार पर हैं। इनका ध्यान न तो आम जनता रख सकी और न ही सरकार का ही ध्यान इस ओर गया। ये वृक्ष प्राकृतिक रूप से उगते व बढ़ते रहे और अपनी सेवाएं हमें प्रदान करते रहे। हम इनकी सुरक्षा संरक्षा नहीं कर पाए।नतीजा यह हुआ कि जितने भी पहले के वृक्ष रहे वो समाप्त होते गये या आवश्यकतावश उन्हें काट भी दिया गया, लेकिन दोबारा इनको लगाया नहीं गया। अब सोचने की बात है कि ये वृक्ष नहीं रहेंगे तो हमें आक्सीजन कहां से मिलेगा और कार्बन-डाई-आक्साइड का अवशोषण कौन करेगा?

राष्ट्रीय वृक्ष बरगद समाप्ति के कगार पर :

सबसे तो आश्चर्य की बात यह है कि हमारा राष्ट्रीय वृक्ष बरगद, जो हमारे राष्ट्र की पहचान है। पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी की पहचान एवं रक्षक है। वह आज समाप्ति के कगार पर है। उसकी सुध-बुध लेने वाला कोई नहीं है।

कारण कि अपनी विशालता एवं विस्तृत भूमि घेरने के कारण यह कभी भी घरेलू वृक्ष नहीं बन पाया। इसलिए आमलोग इसे अपने घर के आस-पास या अपने बाग-बगीचे में नहीं लगा पाये, जिस कारण इनकी संख्या कम होती गई। ये वृक्ष या तो देवी-देवताओं के स्थान पर लगे या गांव के चौपाल वाले स्थान पर लगे।

अथवा सड़कों के किनारे लगे और स्वतः प्राकृतिक रूप से यत्र-तत्र उगते रहे। जब ये पुराने वृक्ष अपनी आयु समाप्त कर नष्ट होते जा रहे हैं तो इनको नये सिरे से लगाने वाला भी कोई नहीं है। कारण कि इनसे कोई प्रत्यक्ष तात्कालिक लाभ तो दिखता नहीं है।

वृक्षारोपण अभियान में भी ऐसे ही वृक्ष लगाए जा रहे हैं, जो शीघ्र तैयार हो जाते हैं। बिना खर्च एवं बिना मेहनत के तैयार हो जाते हैं। भले ही उनका कोई विशेष उपयोग न हो और न तो वे पर्यावरण की दृष्ट से ही बहुत उपयोगी हैं, जैसे यूकेलिप्टस नतीजा यह है कि यह राष्ट्रीय वृक्ष बरगद अब यत्र-तत्र ही दिखायी दे रहा है।

बरगद प्रकृति के सृजन का प्रतीक :

अपनी शाखाओं एवं जड़ों से यह निरन्तर अपना विस्तार करता रहता है। प्रकृति के सृजन का प्रतीक माने जाने के कारण ही संतान के इक्षुक लोग बरगद की पूजा करते हैं। यह वृक्ष इतना दीर्घजीवी होता है और इतना अपना विस्तार करता है कि सामान्य रूपसे यह विनष्ट नहीं होता है। इसीलिए इसे अक्षयवट अर्थात् कभी क्षय न होने वाला वट माना जाता है और दीर्घायु होने के कारण इसे अनश्वर कहा गया है।

बरगद का है औषधीय महत्व :

आयुर्वेद के अनुसार बरगद का विशेष औषधीय महत्व है। इसकी जड़, जटा, छाल, पत्तियां व फल सब कुछ औषधीय गुणों से भरपूर है, जो विभिन्न रोगों में लाभदायक है। यह त्रिदोषनाशक है। इनके विभिन्न अवयवों के सेवन से कफ, वात एवं पित्त का नाश होता है। इनका सेवन नाक, कान, बाल, आँख के विकार को दूर करने, चेहरे की चमक बढ़ाने, दांत रोगों के उपचार, पेचिस व दस्त, खूनी बवासीर, मूत्र रोग, मधुमेह, सिफलिस, मासिक धर्म विकार व खुजली आदि असंख्य रोगों में उपयोगी होता है।

कोरोना काल व बरसात के कारण वायरस से पैदा होने वाले रोगों जैसे टॉन्सिल, सर्दी, खांसी, जुकाम व नजला आदि में बरगद के छाल का काढ़ा पीने से विशेष लाभ मिलता है। मधुमेह रोग में बरगद के छाल का सेवन करना लाभदायक होता है।

इससे मूत्र रोग की समस्या भी दूर हो जाती है। सूजाक एवं गर्भधारण में बरगद की छाल का सेवन करना बहुत उपयोगी होता है। इसकी छाल का सेवन स्तनों के ढीलापन एवं योनि के ढीलापन को भी कम कर देता है।

कमर दर्द में बरगद के दूध का सेवन करना लाभदायक होता है। जबकि इसके फल का सेवन करने से शरीर पुष्ट होता है। नींद अच्छी लाने के लिए इसके पत्तों का सेवन करना एवं यादाश्त बढ़ाने हेतु छाल का सेवन करना विशेष लाभदायक होता है। किंतु किसी भी रोग के उपचार से पहले योग्य आयुर्वेद चिकित्सक से अवश्य परामर्श ले लेना चाहिए।

कैसे हो बरगद का संरक्षण :

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि राष्ट्रीय वृक्ष बरगद आज समाप्ति के कगार पर है। इसकी विशालता एवं विस्तृत आवरण के चलते यह वृक्ष कभी घरेलू वृक्ष नहीं बन पाया। इसीलिए न तो घर दरवाजे पर लगाया गया और न ही बगीचों में। यह या तो प्राकृतिक रूप से जंगलों एवं बंजर भूमियों में उगता रहा या फिर देवी-देवताओं के स्थानों पर।

आलम यह है कि अपनी आयु पूरी कर लेने के बाद बरगद के धरोहर वृक्ष समाप्त होते जा रहे हैं और उनकी जगह पर नये पेड़ भी नहीं लग रहे हैं, जिससे इसके प्रजातीय अस्तित्व पर ही खतरा मंडराने लगा है।

आज आवश्यकता इस बात की है कि चाहे जैसे भी हो, सबसे पहले जो बरगद के वृक्ष बच गये हैं, उनका सर्वेक्षण कराकर उनको सुरक्षित एवं संरक्षित करने के उपाय करने होंगे। उसे पुरातात्विक धरोहर के अन्तर्गत शामिल किया जाना चाहिए।

साथ ही नए बरगद वृक्षों को रोपित कर उनको सुरक्षित एवं संरक्षित करने का आंदोलन चलाना होगा। इसमें सरकार सहित जन-जन की भागीदारी आवश्यक है। वरना वह दिन दूर नहीं जब हम इतने महत्वपूर्ण वृक्ष को ही नहीं खोयेंगे, बल्कि अपनी राष्ट्रीय पहचान एवं अपनी अस्मिता को भी खो देंगे।



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