लफ्जो में पीरो लेते हैं एहसास‌के मोती, हमें इजहारे तमन्ना का सलीका नहीं आता

लफ्जो के जादुगर की बंगाल की बंगालन से दिलचस्प मुकाबला चल रहा है बंगाल की जादुगरनी अपने माया जाल में पूरी तरह बीजेपी को बस में कर लिया है। जादू की नगरी मे हर तरफ हलचल है। जो आंकड़े मिल रहे हैं वह तृणमूल के समूल बिनाश का खाका बताने में असफल है। यह विश्व के इतिहास का अजूबा है। जहां एक मुख्यमंत्री को परास्त करने के लिये देश का प्रधानमन्त्री बंगाल में घूम घूम कर जनता से अपनी पार्टी क़ जिताने का दरखास्त कर रहा है। सत्ता के सिंहासन पर एक दशक से कुंडली मारकर फुफकारने वाली सियासत की नागीन घायल होने के बाद आक्रामक हो गयी है। मतदाता मनमाफिक भाग्य विधाता की तलाश में निराशा भरे आलम में ईबीयम मे ताकत भर रहे हैं।कहीं परिवर्तन तो कहीं समर्थन की लहर है। टीएमसी‌ गांवों में है तो बीजेपी शहर में है। पश्चिम बंगाल में बेरोजगारी रोजी रोटी का मुद्दा आज सरकार बनाने के लिये बुनियादी सवाल बनकर उभरा है। सबसे भयावह हालात हिन्दू समुदाय के लिये बन गया था पश्चिम बंगाल में रोहिंग्या मुसलमानों का आतंक भारतीय ब्यवस्था के लिये गद्दार सियासत बाजों के शानीध्य से अलग मुकाम हासिल कर रहा थाऔर उसका समर्थन ममता सरकार कर रही थी। आज माकूल ज़बाब  के साथ घुसपैठीयो को बाहर भगाने के लिये जनसमर्थन से लोकतंत्र के अविरल अथाह सागर में मन्थन शुरु हो गया है।

कट्टर पंथी सकते में हैं उत्पाती दहशत में हैं। सत्ता बदले या न बदले बिहार जम्मू कश्मीर के तरह‌ ही इस बार बंगाल में सियासत की मजबूत धमाकेदार आगाज की सम्भावना को बल मिल रहा है। जगह जगह खारे पानी में भी कमल खिल रहा है। खबर जो निकल कर आ रही है उसमें राष्ट्रीययता से ओत प्रोत इस‌देश की आबो हवा में तरक्की करने वाले अमन पशन्द अल्लाह  के नेक बंदों ने भी रक्त रंजित बंगाल की सिसकती धरती से घुसपैठियों को निकाल बाहर कर अमन की बात कर रहे‌ है। सच के धरातल पर सियासी दांव पेंच की बाजीगरी के बावजूद भी ममता सरकार का मजबूती लिये वजूद कायम है। कल क्या होगा यह तो कलयुग की शक्तिशाली इबीयम देवी के वरदान से ही मालूम होगा लेकिन आजकल बंगाल मे जो सियासी तुफान चल रहा‌ है उसमे बदलाव के बादल झूम कर बरसने के आधार दिखा रहे है।कयासबाजी के बीच ही जाबाजी का हूनर सभी दिखा रहे हैं। मतदाता दो खेमों में बंटकर अपने अपने मुद्दों पर अडिग है।

इधर करोना की दहशत से आम आदमी एक बार फिर बेरोजगारी के राह पर चल पड़ा है। हलाकी इस बार न तो गाड़ीयों मे होली की भीड़ है न कहीं आशा है न उमंग है। हर तरफ मायूसी है। होली का रंग फीका है। हर आदमी महंगाई से तंग है। दूकानदार सर पकड़ लिये है दुकानों से ग्राहक‌ गायब है अबीर गुलाल नहीं बिक रहा रंग है।‌बदलता परिवेश जिस विशेष वायरसी आक्रमण से ग्रसित है उसको लेकर हर कोई सशंकित है, आतंकित है, चकित हैं। भ्रमित भी है, आखिर इस‌ महामारी से निजात कब मिलेगा। क्या यह तभी जायेगा जब सारे प्रदेशो के सियासी तालाब में कमल खिलेगा। जितने लोग उतनी बातें मगर अब डगर चलना भी आसान नहीं।कदम कदम पर खतरा है। आदमी केवल सुरक्षित सियासी नेताओं के जनसभाओं में है वहां करोना कभी नहीं जाता वह जान चुका है कि वह खुद सियासी वायरस की चपेट में आ जायेगा। जानता है हमसे ज्यादे खतरनाक सियासतदार है। किसानआन्दोलन में भी नहीं जा रहा है। उसका सारा जोर यात्रियों पर मजदूरों पर है। गरीबों पर है। यह वायरस‌ भी बीजेपी का हमदर्द बनकर ऐन मौके पर उस समय पहुंचता है जब बीजेपी सरकार के खिलाफ जनमत बहुमत के साथ सड़कों पर आन्दोलन करने का मन बनाती है। खैर जो कुछ हो माहौल में गमगीनी है, नीरसता का आलम है।कल होली है मगर कहीं भी कुछ समझ में नहीं आ रहा है। अजीब माहौल है बाजारे सुनसान है।सुनी पड़ किसानी सूना पड़ा खेत खलिहान है। खेतों में फसल पक गयी है महामारी की सरकारी दहशत से किसान फजीहत में है मजदूर मजबूर हैं। आखिर हर तरफ से बे मौत मर रहा किसान।जैसे तैसे होली गुजर जायेगी लेकिन इस सदी की भयावह तसबीर का खाका खिंचकर अमिट निशान कायम कर जायेगी। करोना का कहर जारी है। केवल यूपी में दस हजार से उपर मरीज हो गये ऐलान सरकारी है। आप‌ लोग सावधान रहें सियासी वायरस करोना को साथ लिये दरवाजे दरवाजे दस्तक दे रहे हैं। अनमोल जिन्दगी है इसको  बचाये रखें।

जयहिंद🙏🏻🙏🏻


जगदीश सिह, मऊ

मो0-7860503468

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