नागा साधुओं का रहस्‍यमयी मठ : जहां साल में सिर्फ एक बार दशहरे के दिन होती है पूजा और त्‍वचा संबंधी रोगों से मिलती है मुक्ति

यूं तो आप भी जानते ही होंगे कि हिंदू धर्म की रक्षक सेना के सैनिक नागा साधु हर कुंभ व महाकुंभ में अचानक दुनिया के सामने आ जाते हैं वहीं इन पर्वों की समाप्ति के साथ ही ये अचानक गायब भी हो जाते हैं, ऐसे में जहां इनका जीवन अत्यंत रहस्यों से भरा माना जाता है, वहीं इनका एक मठ भी अपने आप में अत्यंत रहस्यमयी है।

वर्तमान में हरिद्वार में महाकुंभ का आयोजन चल रहा है ऐसे में यहां नागा साधु भी देखने को मिल रहे हैं। वहीं हम आज आपको इनके एक रहस्मयी मठ के बारे में बताने जा रहे है। दरअसल मठ हों या मंद‍िर वहां प्रत‍िद‍िन पूजा-पाठ का व‍िधान है। लेक‍िन क्‍या आप जानते हैं क‍ि हमारे देश में एक ऐसा भी मठ है जहां साल में केवल एक ही बार पूजा-आराधना होती है।

बता दें क‍ि इस मठ की स्‍थापना नागा साधुओं ने की थी। साथ ही मठ में देवी की प्रतिमा भी उन्‍होंने ही स्‍थाप‍ित की थी। यही नहीं आज भी नागा साधुओं का इस मंद‍िर से काफी गहरा नाता है। तो आइए जानते हैं क‍ि यह मठ कौन सा है? कहां है और नागा साधुओं का यहां से कैसा नाता है?

हम ज‍िस मठ का ज‍िक्र कर रहे हैं वह छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के ब्राह्मणपारा में स्थित है। इसका नाम ‘कंकाली मठ’ है। इसे साल में एक बार केवल दशहरा के दिन ही खोला जाता है। बता दें क‍ि यह परंपरा करीब 410 सौ वर्षों से निभाई जा रही है। मान्‍यता है कि मां कंकाली की प्रतिमा नागा साधुओं द्वारा ही मठ में स्थापित की गई थी। बाद में इसे मंदिर में स्थानांतरित किया गया।

यहां देवी कंकाली की प्रत‍िमा तो मंद‍िर में स्‍थाप‍ित कर दी गई, लेक‍िन नागा साधुओं के प्राचीन शस्त्रों को मठ में ही रहने दिया गया। यह शस्‍त्र हजार साल से अधिक पुराने हैं। इसमें तलवार, फरसा, भाला, ढाल, चाकू, तीर-कमान आद‍ि शाम‍िल हैं। इन्हीं शस्त्रों को दशहरा के दिन भक्तों के दर्शनार्थ भी रखा जाता है। मान्यता है कि मां कंकाली दशहरा के दिन वापस मठ में आतीं हैं। यही वजह है क‍ि उनकी आवभगत के लिए दशहरा के द‍िन मठ खुलता है। रात्रि को पूजा के बाद फिर एक साल के लिए मठ का द्वार बंद कर दिया जाता है।

ज्ञात हो क‍ि 13वीं शताब्दी से लेकर 17वीं शताब्दी तक मठ में पूजा होती थी। यह पूजा नागा साधु ही करते थे। 17वीं शताब्दी में नए मंदिर का निर्माण होने के पश्चात कंकाली माता की प्रतिमा को मठ से स्थानांतरित कर मंदिर में प्रतिष्ठापित किया गया। आज भी उसी मठ में अस्त्र-शस्त्र रखे हुए हैं। साथ ही मठ में रहने वाले नागा साधुओं में जब किसी नागा साधु की मृत्यु हो जाती तो उसी मठ में समाधि बना दी जाती थी। उन समाधियों में भी भक्त मत्था टेकते हैं।

बता दें क‍ि कंकाली मंदिर को लेकर एक मान्यता यह भी है कि मंदिर के स्थान पर पहले श्मशान था जिसकी वजह से दाह संस्कार के बाद हड्डियां कंकाली तालाब में डाल दी जाती थी। और इसी तरह कंकाल से कंकाली तालाब का नामकरण हुआ। कंकाली तालाब में लोगों की गहरी आस्था है। मान्यता है कि इस तालाब में स्नान करने गंभीर त्‍वचा संबंधी रोग दूर हो जाते हैं।

कंकाली तालाब पर कई शोध भी हुए हैं। यहां त्‍वचा संबंधी रोगों से पीड़‍ित श्रद्धालु कंकाली तालाब में स्नान करते हैं। इसके बाद मंदिर में झाड़ू चढ़ाते हैं। मान्‍यता है क‍ि ऐसा करने से उन्‍हें चर्म रोग से मुक्ति म‍िल जाती है। साथ ही अन्‍य मन्‍नतें भी पूरी होती हैं।



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