अब रेस्त्रां-दुकानों को बताना होगा बेच रहे हलाल या झटका में कौन सा मांस

 


हिंदुओं, सिखों के लिए हलाल मीट है मना- निगम प्रस्ताव में बात

दोनों ही मामलों में पक्षी या जानवर की गर्दन को धारदार हथियार से कलम किया जाता है। पर मूल फर्क काटने के तरीके में होता है।

BJP के नेतृत्व वाला दक्षिणी दिल्ली नगर निगम अपने अधिकार क्षेत्र वाले इलाकों में रेस्त्रां और मीट की दुकानों के लिए उस प्लान की योजना बना रहा है, जिसके तहत रेस्त्रां संचालकों और दुकानदारों को साफ पर बताना या सार्वजनिक करना होगा कि वे हलाल या फिर झटका में से कौन सा मांस बेच रहे हैं। प्रस्ताव के मुताबिक, “हलाल खाना हिंदू और सिख धर्म में मना (हराम) है और ये दोनों ही धर्मों के खिलाफ है।”

अंग्रेजी अखबार ‘TOI’ की रिपोर्ट में आगे बताया गया कि नगर निगम की स्टैंडिंग कमेटी ने गुरुवार को इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। अब यह सदन में वहां जाएगा, जहां पर बीजेपी के पास बहुमत है। कमेटी के चेयरपर्सन राजदत्ता गहलोत ने मीट का प्रकार साफ करने के पीछे तर्क दिया- हमारा मकसद यह है कि ग्राहक को पता चल सके कि उसे कौन सा मीट दिया/परोसा जा रहा है, ताकि वह उसके आधार पर अपने पसंद का मीट चुन सकें।

उन्होंने आगे बताया, “मौजूदा समय में एक किस्म के मीट को बेचने/परोसने के लिए लाइसेंस जारी किया जाता है, जबकि उसकी जगह पर कुछ लोग और ही बेच देते हैं।” बता दें कि यह प्रस्ताव छतरपुर से पार्षद अनीता तंवर ने आगे बढ़ाया था, जो कि मेडिकल रिलीफ एंड पब्लिक हेल्थ पैनल के समक्ष नौ नवंबर, 2020 को पेश हुआ था।

हलाल और झटका में क्या है फर्क? : दोनों ही मामलों में पक्षी या जानवर की गर्दन को धारदार हथियार से कलम किया जाता है। पर मूल फर्क काटने के तरीके में होता है। हलाल में गर्दन रेती जाती है, जबकि झटका वाले में जानवर को इलेक्ट्रिक शॉक देकर उसका दिमाग सुन्न कर दिया जा ता है। अचेत स्थिति में धारदार हथियार से फिर उसका सिर धड़ से अलग किया जाता है। हालांकि, मुस्लिमों में हलाल मीट ही खाया जाता है, जबकि हिंदू और सिख झटका को वरीयता देते हैं।





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