हम सभी तभी तक सुरक्षित हैं, जब तक हमारा पर्यावरण सुरक्षित है!


(विश्व पर्यावरण दिवस (5 जून) पर विशेष लेख)

(1) एक धरती, एक परिवार, एक भविष्य :- हम सभी जानते हैं कि पर्यावरण मानव जीवन का वह हिस्सा है, जिसके बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। इसकी महत्ता को समझते हुए ही वर्ष 1972 में स्वीडन के शहर स्टाकहोम में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा विश्व का पहला अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण सम्मेलन आयोजित हुआ, जिसमें 119 देशों ने संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यू.एन.ई.पी.) का प्रारंभ ‘एक धरती’ के सिद्धांत को लेकर किया और एक ‘पर्यावरण संरक्षण का घोषणा पत्र’ तैयार किया जो ‘स्टाकहोम घोषणा’ के नाम से जाना जाता है। जी-20 की अध्यक्षता करते हुए हमारे प्रधानमंत्री ने सारे विश्व को अपने देश की वसुधैव कुटुम्बकम् (विश्व एक परिवार) की तर्ज पर ‘एक धरती, एक परिवार, एक भविष्य’ का मंत्र दिया है।   

(2) सतत् विकास लक्ष्य (एसडीजी) की प्राप्ति एक साझा वैश्विक जिम्मेदारी :- अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने संयुक्त राष्ट्र के माध्यम से 17 सतत् विकास लक्ष्यों की ऐतिहासिक योजना शुरू की है, जिसका उद्देश्य वर्ष 2030 तक अधिक संपन्न, अधिक समतावादी और अधिक संरक्षित विश्व की रचना करना है। हमारे प्रधानमंत्री जी का कहना है कि “एजेंडा 2030 के पीछे की हमारी सोच जितनी ऊँची है हमारे लक्ष्य भी उतने ही समग्र हैं। इनमें उन समस्याओं को प्राथमिकता दी गई है, जो पिछले कई दशकों से अनसुलझी हैं और इन लक्ष्यों से हमारे जीवन को निर्धारित करने वाले सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय पहलुओं के बारे में हमारे विकसित होती समझ की झलक मिलती है। मानवता के 1/6 हिस्से के सतत् विकास का विश्व और हमारे सुंदर पृथ्वी के लिए बहुत गहरा असर होगा ।” 

(3) भारत और दुनिया एक निर्णायक मोड़ पर खड़ी है :- नवम्बर, 2020 में नई दिल्ली में बाल दिवस के अवसर पर आयोजित बाल संसद में बोलते हुए देश के उपराष्ट्रपति माननीय श्री वेंकैया नायडू ने कहा ‘‘भारत और दुनिया एक निर्णायक मोड़ पर खड़ी है। हमारे बच्चे जलवायु परिवर्तन के कारण जबरदस्त संकट में हैं और नीति निर्धारक, नेता, समाज के सदस्य, माता-पिता और दादा-दादी के रूप में, यह केवल हम ही हैं, जो उनके बचाव में आ सकते हैं। हम उदासीनता के कारण अपने बच्चों के भविष्य को खतरे में नहीं उठा सकते हैं।’’ प्रकृति मनुष्य को बार-बार बड़ी आपदा-भूकंप, सुनामी, चक्रवात आदि जैसी विध्वंसकारी घटनाओं के माध्यम से चेतावानी भी देती रहती हैं। लेकिन इन चेतावनियों को दरकिनार करते हुए प्रकृति का लगातार दोहन जारी है।

(4) जल, जंगल और जमीन के बिना प्रकृति अधूरी है :- प्रकृति के तीन प्रमुख तत्व है-जल, जंगल और जमीन, जिनके बिना प्रकृति अधूरी है और विडंबना यह है कि प्रकृति के इन तीनों ही तत्वों का इस कदर दोहन किया जा रहा है कि प्रकृति का संतुलन बिगड़ने लगा है। प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन और प्रकृति से खिलवाड़ का नतीजा है कि पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ने के कारण मनुष्यों के स्वास्थ्य पर तो प्रतिकूल प्रभाव पड़ ही रहा है, जीव-जंतुओं की अनेक प्रजातियां भी लुप्त होतीं जा रहीं हैं। 

(5) ओजोन परत के बिना पृथ्वी पर जीवन का अस्तित्व समाप्त हो जायेगा :- पिछले कई वर्षों में हुए औद्योगिक विकास के कारण पृथ्वी के पर्यावरण में जबरदस्त असंतुलन हुआ है, ग्रीन हाउस गैसों के बहुत अधिक उत्सर्जन के कारण पृथ्वी के वायु मंडल का संतुलन बिगड़ने लगा है। ओजोन परत को भी काफी नुकसान हो रहा है। पृथ्वी का औसत सतही तापमान भी लगातार बढ़ता ही जा रहा है। अधिकांश वैज्ञानिकांे का मानना है कि ओजोन परत के बिना पृथ्वी पर जीवन का अस्तित्व समाप्त हो जायेगा। इसके साथ ही बिगड़ते पर्यावरणीय असंतुलन और मौसम चक्र में बदलाव के कारण पेड़-पौधों के अलावा जीव-जंतुओं के अस्तित्व पर भी संकट आ गया है। ऐसे में यह जरूरी है कि हमें हर दिन पर्यावरण दिवस मनाते हुए प्रकृति के साथ जीना सीखें और प्रकृति के साथ किसी भी तरह की छेड़छाड़ न करें। 

(6) हम फिर विकास की अंधी दौड़ में शामिल हो गये :- कोरोना महामारी के दौरान हुए लॉकडाउन के समय हमने देखा कि कई शहर जो कि पर्यावरण प्रदूषण की गंभीर समस्या से काफी ग्रसित थे, उनमें काफी सुधार आया। एक ओर जहां हवा साफ हुईं तो वहीं दूसरी ओर नदियों का पानी और आसमान भी साफ हो गया। कई ऐेसे पक्षी दिखने लगे, जिन्हें हम लोगों ने विलुप्त सा मान लिया था। यही नहीं सड़कांे पर सन्नाटा छाने के कारण कई जगहों पर जंगली जानवर तक सड़कों पर घूमने निकल पड़े थे। लेकिन जैसे ही लाकडाउन खत्‍म हुआ, हम फिर विकास की अंधी दौड़ में शामिल हो गये और कोरोना की दूसरी लहर को समझ तक नहीं पाये। जिसके कारण देश के अधिकांश लोगों को ऑक्सीजन की कमी के कारण अपने किसी न किसी प्रिय सदस्य को खोना पड़ा। इस दौर में कृत्रिम ऑक्सीजन के लिए लोगों को एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल तक न केवल चक्कर लगाना पड़ा बल्कि कितने ही लोगों की जान अस्पताल के गेट पर बेड मिलने के इंतजार में चली गई। 

(7) हम सभी तभी तक सुरक्षित हैं, जब तक हमारा पर्यावरण सुरक्षित है :- महात्मा गांधी जी का मानना था कि पृथ्वी, वायु, भूमि तथा जल हमारे पूर्वजों से प्राप्त सम्पत्तियां नहीं हैं। वे हमारे बच्चों की धरोहरें हैं। वे जैसी हमें मिलीं हैं, हमें वैसे ही उसे भावी पीढ़ियों को सौंपना होगा। उनका कहना था कि हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए इस पृथ्वी पर पर्याप्त संसाधन है, मगर हमारे लालच के लिए नहीं है। प्रकृति और पर्यावरण के प्रति समन्वय बनाये रखना हम सबका नैतिक कर्तव्य भी है और सामाजिक उत्तरदायित्व भी। इस प्रकार भारतीय दर्शन में वसुधैव कुटुम्बकम् अवधारणा के तहत पर्यावरण से जुड़ी समस्याओं का समाधान मौजूद है। अगर प्रत्येक देश का नागरिक अपने को विश्व नागरिक मानकर इस प्यारी पृथ्वी को बचाने के लिए अपना योगदान देने लग जाये तो वह दिन दूर नहीं जबकि हमारी पृथ्वी एक बार फिर से हरी-भरी और प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर हो जायेगी। -जय जगत्-

डॉ. जगदीश गाँधी 

संस्थापक-प्रबंधक 

सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ।



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