1 मई मजदूर दिवस : इतिहास, वर्तमान और भविष्य का असली निर्माता हैं मेहनतकश मजदूर


एक दिन फल जरूर उगेगे रोटी के पेड में,

इंकलाबी जिस दिन खेत के मजदूर हो गए।

मेहनतकशों के पसीनों से भी महकेगा गुलिस्ताॅ अपना,

हवा-हवाई आसमानी रहनुमा जिस दिन ठेर हो गये। 

इतिहास के पन्नों में दर्ज दुनिया के अनगिनत राजाओं, रईसों, सम्राटों, बादशाहों और शहंशाहो के अनेकानेक सुनहरे सपनों, क्षख्वाबों तथा ख्वाहिशों को अपने हाथों के जादुई हुनर से मुक्कम्ल जम़ीन पर उतारने वाले मेहनतकश मजदूर ही वास्तव में इतिहास, वर्तमान और भविष्य के असली निर्माता हैं। मेहनतकश मजदूरों ने ही सफेद संगमरमर को तराश कर शहंशाह शाहजहाँ की मुहब्बत को ताजमहल की शक्ल-सूरत में ढालकर हमेशा-हमेशा-हमेशा के लिए एक जिन्दा प्रेम की कहानी बना दिया। सड़कों के हाशिये पर आबाद फुटपाथ पर आसमान और धरती को ओढना-बिछौना बनाकर तारों से ऑख मिचौली करते-करते रात गुजारने वाले मेहनतकश मजदूर ही चमचमाती चारकतारी (Four laine) सडको, राजपथो और राजमार्गों को बनाता है। हमारे मेहनतकश मजदूरों ने बेजान पत्थरों को गढकर न केवल हमारी पुजाओं और प्रार्थनाओं के भगवान और देवता बनाएं अपितु अनगिनत ऐसे नक्काशीदार मंदिरों को बनाया जिसको देखकर अनगिनत दर्शकों की ऑखे चौधियाॅ जातीं हैं। अपनी मेहनत को ही अपना ईमान समझने वाले मजदूरों ने अनगिनत मंदिरों, मस्जिदों, दुर्ग, किलों और आलीशान महलों को बनाकर वास्तुशिल्प, वास्तुशास्त्र, वास्तुकला और वास्तुसौन्दर्य की दृष्टि से मानव सभ्यता को महकाने का श्लाघनीय प्रयास किया। चना-चबेना चबाकर काम की तलाश में शहर दर शहर भटकने वाला मजदूर ही धन्नासेठो की खुशियों और हसरतों की गगनचुंबी अट्टालिकाएं बनाता है। महज नून रोटी कच्ची प्याज और हरी मिर्च से अपने पेट की भूख मिटाने वाले मजदूरों ने जान हथेली लेकर भाॅखडा नांगल, हीराकुंड, रिहंद जैसे बाँध और पुल पुलिया बनाया जो हमारे विकास और आवागमन के बुनियादी स्तम्भ बन चुके हैं। हसियाॅ, हथौड़ा, छेनी, कुल्हाड़ी, कुदाल, फावड़ा, करनी वसूला, आरी और खुरपी जैसे अनगिनत सृजन, रचना, निर्माण और विकास के औज़ार मेहनतकश मजदूरों के उसी तरह साथी और दोस्त  होते हैं जिस तरह कलम, कापी और किताबें शिक्षार्थियों, शिक्षको और अध्ययनार्थियो की दोस्त और साथी होती हैं। सृजन, रचना, निर्माण और विकास के इन्हीं अनगिनत औज़ारो   को अपना साथी बनाकर अपने जादुई  हुनर, कभी न थकने वाले हौसले और फौलादी इरादों से इस खूबसूरत दुनिया को रचने, गढ़ने, सजाने और सवांरने वाले मेहनतकश मजदूरों के परिश्रम और पराक्रम की बदौलत ही आज हमारी सभ्यता और संस्कृति इस मुकाम तक पंहुची हैं। इसी मेहनतकश मजदूरों ने अपने फौलादी इरादों से कुदाल और कुल्हाडी उठाई और घने जंगल झाड़ियों को काटकर खेत खलिहान बनाएं और अनाज उपजाए। इतिहास की किताबों और साहित्यिक सर्जनाओ मे लगभग हाशिए पर धकेल दिए गए इस मेहनतकश मजदूरों ने ही सचमुच ऊसर बंजर और मरुभूमि पर अपने पुरुषार्थ के पसीने से हरियाली लाई। धरती के अंदर अनन्त अदृश्य आंतरिक अंतःस्थल को किंवदंतियों के अनुसार "पाताल लोक "के रूप में परिकल्पित किया जाता था ।कौन जानता था कि पाताल लोक के रूप में परिकल्पित अंतःस्थल में कितना खजाना भरा पडा है परन्तु बीबी बच्चों की परवाह किए बिना कलेजे पर पत्थर रखकर धरती की छाती चीरकर धरती के अंतःस्थल की अनन्त गहराइयों में उतर गया और लोहा तांबा पीतल निकाल लाया खुद को गलाकर तपाकर लोहे को गलाया पिघलाया और गला पिघलाकर तरक्की के अनगिनत औजार बनाएं जिसके आसरे भरोसे दुनिया समन्दर से आसमान तक अनगिनत करिश्मे कर रही हैं। इतिहास के इस महान पर गुमनाम से किरदार ने अपनी जान हथेली पर लेकर कोयला सहित उर्जा और शक्ति के स्रोतों संसाधनों को तलाशा तराशा, पानी से बिजली बनाई और घरो घरों में बिजली पंहुचाकर हर घर को रोशनी से नहलाया पर उसके पुरुषार्थ का कारवां यही नहीं ठहरा उसने इन्हीं उर्जा के संसाधनों के सहारे  कल कारखाने बनाए चलाए और दुनिया के हर इंसान की हर तरह भूख चाहत, खवाबों, ख्वाहिशो और फैशन की इच्छाओं को पूरा किया और आज भी कर रहा है। 

अमेरिका में शिकागो में आठ घंटे काम समय तय किए जाने की मांग करते हुए मजदूरो की शहादत से मजदूर दिवस मनाने का चलन-कलन शुरू हुआ। भारत में मद्रास में 1923 से मजदूर दिवस मनाने का चलन आरम्भ हुआ। इतिहास में दर्ज कई संग्रामो और कई क्रांतिओ को राह दिखाने वाले इस रहबर के सम्मान में पूरे वर्षभर में आयोजित होने वाले इस इकलौते उत्सव पर मजदूर दिवस पर मेहनतकश मजदूरों को मजदूर दिवस की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं। मेहनतकश मजदूरों को हिकारत भरी नजरों से देखने की प्रवृत्ति पर लगाम लगाने की कोशिशों का संकल्प लेते हुए मजदूर दिवस की हार्दिक बधाई। 

मनोज कुमार सिंह प्रवक्ता 

लेखक/साहित्यकार।




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