स्वावलंबी, समृद्ध और शक्तिशाली भारत बनाने की संकल्पना का पर्व है स्वाधीनता दिवस : मनोज कुमार सिंह

आज जम्बू कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक तथा कच्छ से लेकर कटचल तक सारे भेद-भाव मिटाकर, सम्पूर्ण संकीर्णताओं का परित्याग कर पूरा देश आजादी का अमृत महोत्सव पूरे  जोश-ओ-खरोश, हर्ष, उल्लास, उत्साह, आशा, विश्वास और उम्मीद के साथ मना रहा है। भारतीय इतिहास का यह सुनहरा अवसर लगभग दो सौ वर्षों के यातनापूर्ण संघर्ष और अनगिनत कुर्बानियों के बाद देशवासियों को नसीब हुआ। उस दौर के सर्वाधिक खतरनाक और विनाशकारी अस्त्रो-शस्त्रो से सुसज्जित और निर्लज्ज लूट- खसोट से परिपूर्ण कूटनीतिज्ञता रखने ब्रिटिश साम्राज्य को सात समंदर पार भेजने में हमारी पीढियाँ बलिदान हो गई। भारतीय इतिहास में स्वाधीनता दिवस का पर्व त्याग, तपस्या और बलिदान के उत्सव के रूप में मनाया जाता हैं। गांव-गाँव, नगर-नगर, डगर-डगर, हर चट्टी चौराहे तथा गगनचुंबी इमारतों से लेकर झोपड़ियों तक हवा मे लहराता हुआ हमारा तिरंगा हर हिन्दुस्तानी के उल्लास और उत्साह को अभिव्यक्त कर रहा है। भारतीय बसुन्धरा पर चहुँओर देशभक्ति के तराने गूंज रहे हैं। स्वाधीनता संग्राम के महान सपूतो के शौर्य, पराक्रम और साहस से परिपूर्ण किस्से कहानियां  बच्चो, बूढ़ो, जवानो और महिलाओं  द्वारा हर जगह मुंह जुबानी सुने सुनाए और समझाए जा रहें हैं। शहादत की शानदार परम्परा से सराबोर स्वाधीनता दिवस हमारी भावी पीढ़ी को हर्षित, उल्लासित, ऊर्जस्वित और गौरवान्वित कर रहा है। इस ऐतिहासिक अवसर पर हम माॅ भारती के वीर सपूतों और उन रणबांकुरो को याद करते हैं जिन्होंने हंसते- हंसते फांसी के फंदो को चूम लिया, आज का दिन रानी लक्ष्मीबाई, अहिल्याबाई, कैप्टन लक्ष्मी सहगल, झलकारी बाई और उषा मेहता जैसी उन अनगिनत वीरंगनाओ को स्मरण करने का दिन है जिन्होंने अपने सुहाग की चूडियां तोड़ कर स्वाधीनता संग्राम में बढ- चढ कर हिस्सा लिया। आज उन अनगिनत साहसी, निर्भीक और निडर माताओं को याद करते हुए नमन करने का पर्व है जिन माताओं ने महान स्वाधीनता संग्राम में जान लुटाने वाले अनगिनत सूरमाओं को पैदा किया। इस ऐतिहासिक अवसर पर हमें यह सोचना चाहिए कि-यह आजादी हमें खैरात में नहीं मिली है, बल्कि इस आजादी के लिए हमारे पुरखों ने कठोर यातनाऐ झेली हैं और अनगिनत लोगों ने अपने प्राणों की आहुति दी है। आज भी भारतीय बसुन्धरा के कण- कण में हमारे पुरखों के कुर्बानी का शानदार इतिहास समाहित है। आज देशभक्ति की पवित्र पावन गंगा में डुबकी लगाने और अपने शहीदों शहादत की शानदार परम्परा में गोते लगाने का उत्सव हैं। 

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, पंडित जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल, सरदार भगत सिंह और चन्द्रशेखर आज़ाद जैसे महान विभूतियों के नेतृत्व में लडे गये हमारे स्वाधीनता संघर्ष ने न केवल ब्रिटिश साम्राज्य के क्रूरतम खूनी पंजो से भारतीय बसुन्धरा को आजाद कराया बल्कि तीसरी दुनिया के अधिकांश देशों में चल रहे स्वाधीनता संघर्षो को ऊर्जस्वित, अनुप्रेरित तथा अनुप्राणित करने साथ दिशा देने का काम किया। हमारे महान स्वाधीनता संग्राम ने देश की स्वाधीनता के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मानवतावाद का परचम भी बुलंद किया। क्योंकि भारतीय स्वाधीनता संग्राम भारत की स्वतंत्रता के साथ-साथ वैश्विक स्तर पर न्यूनतम मानवीय मूल्यों की रक्षा के लिए भी लडा गया। आज ही के दिन 15 अगस्त 1947 की आधी रात को जब पुरी दुनिया नींद में खर्राटे भर रही थी तब सारा हिंदुस्तान एक नये विहान, एक नये सबरे और एक नये भारत की उम्मीद  मे जाग रहा था । इस आधी रात को देश के पहले प्रधानमंत्री प्रधानमंत्री ने स्वाधीनता की उद्घोषणा करते हुए कहा था कि-हर ऑख से ऑंसू का हर कतरा पोछा जायेगा। प्रकारांतर से हर भारतवासी को आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा प्रदान करते हुए मान सम्मान और गरिमा के साथ जीवन जीने का अधिकार दिया जायेगा। 

स्वाधीनता संघर्ष का यह महान पर्व महन जश्न में डूब जाने का पर्व नहीं है बल्कि शहीदों के सपनों का भारत बनाने का संकल्प लेने का पर्व है। इस लिए आज हमें धर्म जाति भाषा बोली और क्षेत्र की संकीर्णताओ को तिलांजली देकर एक सशक्त, सक्षम, अखंड और समृद्ध भारत बनाने का संकल्प लेना चाहिए। स्वाधीनता उपरांत स्वाधीनता आन्दोलन से अनुप्राणित हमारे नेताओं ने सशक्त, सक्षम, समृद्ध और अखंड भारत बनाने का ईमानदारी से प्रयास किया। साठ सत्तर के दशक में हमारे पुरखों को भरपेट भोजन नसीब नहीं होता था। परन्तु सत्तर के दशक में कृषि वैज्ञानिक एम एस स्वामिनाथन के मार्गदर्शन में करोड़ों किसानों ने हरित क्रांति लाया। जिसके फलस्वरूप हम खाद्यान्न के क्षेत्र में न केवल अपने पैरों पर खड़े हुए बल्कि आज दुनिया के कई देशों के चूल्हे हमारे किसानों के परिश्रम और पसीने के बल पर जलते हैं। हरित क्रांति के उपरांत श्वेत क्रांति, नीली क्रांति, पीली क्रांति, गुलाबी क्रांति, अंतरिक्ष क्रांति और सूचना क्रांति के माध्यम से भारत को हर क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने की यात्रा आरम्भ हूई। अपने  देश के  वैज्ञानिकों अभियंताओ उद्यमियों किसानो कारीगरों और सरस्वती के मंदिर के साधकों के सम्मिलित और समन्वित प्रयासों से आज हमारा देश लगभग सभी क्षेत्रों में आत्मनिर्भर होता जा रहा हैं। अंतरिक्ष और सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत वैश्विक स्तर पर चमत्कार कर रहा है। वर्ष 2008 मे चन्द्रमा पर कदम रख कर भारत के अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने पूरी दुनिया को यह बता दिया कि- हम आर्यभट्ट, वराहमिहिर और नागार्जुन की संतान हैं। 

परन्तु भारत को फिर से सोने की चिड़िया बनाने तथा फिर से विश्व गुरु की उपाधि हासिल करने के लिए हमें तन मन धन से प्रयास करना होगा। हमारे समक्ष यह दायित्व हैं कि हम भावी पीढ़ी को इस हुनर और हौसले के साथ इस तरह शिक्षित प्रशिक्षित करे कि यह पीढी स्वाधीनता संग्राम महान सपूतों के सपनों का भारत बना सके।

मनोज कुमार सिंह प्रवक्ता 

बापू स्मारक इंटर काॅलेज दरगाह मऊ। 



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