छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने हाल ही में कहा कि धारा 498A आईपीसी के तहत रिपोर्ट को पति और पति के ससुराल वालों के साथ वैवाहिक दुश्मनी को निपटाने के लिए या सबक सिखाने के लिए एक हथियार के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।
छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने हाल ही में कहा कि धारा 498A आईपीसी के तहत रिपोर्ट को पति और पति के ससुराल वालों के साथ वैवाहिक दुश्मनी को निपटाने के लिए या सबक सिखाने के लिए एक हथियार के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।
यह टिप्पणी न्यायमूर्ति गौतम भादुड़ी और न्यायमूर्ति रजनी दुबे की खंडपीठ ने विवाह टूटने के बाद पति को तलाक की डिक्री देते हुए की।
इस मामले में फैमिली कोर्ट से तलाक की अर्जी खारिज होने के बाद पति ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
पति का मामला है कि पत्नी ने उसके वृद्ध माता-पिता और परिवार के खिलाफ 498A की प्राथमिकी दर्ज कराई थी। पत्नी का आरोप था कि उसके साथ बेरहमी से व्यवहार किया गया।
हालांकि, पति ने कहा कि पत्नी के आरोपों के कारण उसकी प्रतिष्ठा कम हुई है। फैमिली कोर्ट द्वारा तलाक देने से इनकार करने के बाद पति ने हाई कोर्ट का रुख किया।
शुरुआत में, उच्च न्यायालय ने कहा कि इस तरह के झूठे आरोप एक परिवार की सामाजिक स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं और इस तरह के आरोप लगाते समय, पार्टी की स्थिति को ध्यान में रखा जाना चाहिए या इस तरह के आरोप क्रूरता के समान होंगे।
अदालत ने कहा कि पति के परिवार के सभी सदस्यों के खिलाफ आरोप समान थे, लेकिन उन्हें बरी कर दिया गया।
इस संदर्भ में अदालत ने फैसला सुनाया कि पत्नी द्वारा झूठे आरोप लगाना क्रूरता की श्रेणी में आता है।
तदनुसार, अदालत ने पति के पक्ष में तलाक की डिक्री मंजूर कर ली, लेकिन उसे पत्नी को गुजारा भत्ता के रूप में प्रति माह 15000 रुपये का भुगतान करने के लिए कहा।
शीर्षक : डॉ. रामकेश्वर सिंह बनाम श्रीमती शीला सिंह मामला संख्या एफएएम 94/2010
साभार-Low Trend
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