हिन्दी साहित्य की अनमोल धरोहर है अयोध्या सिंह उपाध्याय "हरिऔथ" : मनोज कुमार सिंह

हिन्दी साहित्य के दैदीप्यमान नक्षत्र राहुल सांस्कृत्यायन, महान शायर और मशहूर रंगकर्मी कैफी आजमी और साहित्यरत्न शिव प्रसाद गुप्त जैसी विभूतियों को अपने आंचल में पल्लवित पुष्पित और विकसित करने वाली साहित्य और संस्कृति की उर्वरा भूमि आजमगढ़ के निजामाबाद में 15 अप्रैल 1865 में पैदा हुए अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔथ ने अपनी साहित्यिक प्रतिभा से वियोग, वात्सल्य और प्रकृति चित्रण को पराकाष्ठा पर पहुंचा दिया। लगभग एक दर्जन बाल गीतों के रचयिता हरिऔथ ने अपनी साहित्यिक रचनाओं के माध्यम से बाल मन की चंचलता और कोमलता को छूने का अद्वितीय प्रयास किया है। नटखट कृष्ण कन्हैया के बालपन में जो डूबन और उतरन महाकवि सूरदास और सैयद इब्राहिम रसखान की रचनाओं में पाई जाती हैं वही डूबन और उतरन हरिऔथ के बाल गीतों में एक साधारण बालक के बालपन में पाई जाती हैं। "उठो लाल अब आँखें खोलो पानी लाई हूँ मुंह धो लो" जैसे जागरण गीतों के रचयिता हरिऔथ ने अपने बाल गीतों में वात्सल्य रस को बहुत ही सुन्दरता से पिरोया है। गुप्त काल से लेकर अबतक भारत की समृद्ध साहित्य परम्परा में महाकाव्यो का विशेष स्थान और महत्व रहा है। आधुनिक काल में खडी बोली हिन्दी में पहला महाकाव्य "प्रिय प्रवास" लिखने का श्रेय अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔथ को जाता हैं। इस महाकाव्य की रचना के लिए हरिऔथ को मंगलाप्रसाद पारितोषिक से सम्मानित किया गया। 

मध्यकालीन और आधुनिक काल के हिन्दी कवियों की परम्परा में हरिऔथ ने भी अपनी  रचनाओं में राम-सीता और राधा-कृष्ण को कविता की विषयवस्तु बनाया इसके साथ ही साथ आधुनिक समस्याओं को भी अपनी कविता का विषय बनाया। इस तरह हरिऔथ के काव्य सृजन में आधुनिकता और प्राचीनता का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। गोस्वामी तुलसीदास के विपरित संस्कृत के आदि कवि बाल्मीकि ने जिस तरह मर्यादा पुरुषोत्तम राम को असभ्य अशिक्षित जनजातियों को शिक्षित प्रशिक्षित और सभ्य बनाने वाले एक आदर्श मानव के रूप में वर्णित किया है उसी तरह हरिऔथ ने योगीराज भगवान श्रीकृष्ण को ईश्वर अथवा एक लोक देवता के रूप में नहीं अपितु एक लोक सेवक और एक आदर्श मानव के रूप में वर्णित किया है। संस्कृत-काव्य शैली में हरिऔथ द्वारा रचित प्रिय प्रवास एक सुप्रसिद्ध महाकाव्य है। इसके अतिरिक्त रीतिकालीन अलंकरण शैली, आधुनिक काल की सरल हिन्दी शैली और ऊर्दू की मुहावरेदार शैली में हरिऔथ ने कई ग्रंथों और खंड काव्यों का प्रणयन किया जिसमें ठेठ हिन्दी के ठाट, अधखिला फूल, रस-कलश, वैदेही-वनवास, रुक्मिणी परिण्य, परिजात और हिन्दी भाषा का साहित्य और विकास जैसी रचनाओं से हिन्दी साहित्य को समृद्ध किया। हरिऔथ की साहित्यिक सर्जनाओं में वियोग श्रृंगार और वात्सल्य का अद्भुत संगम पाया जाता हैं। हरिऔथ की साहित्यिक सर्जनाओं की एक विशेषता यह भी कि- उन्होंने बाल मन मस्तिष्क को झंकरित करने के लिए दर्जनों बाल गीतों की रचना की। जिसमें बाल विभव, बाल विलास, फूल पत्ते, चन्द्र खिलौना, उपदेश कुसुम, चाॅद सितारे इत्यादि उनकी अमर कृतियाँ हैं। उनके बाल गीतों से हर बचपन आह्लादित हो उठता है। आधुनिक काल के इस महान साहित्यकार के जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं।  

परन्तु दूर्भाग्यपूर्ण तथ्य हैं कि आजमगढ़ सहित पूरे पूर्वांचल में इस महान साहित्यकार को याद करने वाले गिने-चुने बचे हैं। 

15 अप्रैल अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔथ के जन्मदिन की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं। 


मनोज कुमार सिंह प्रवक्ता 

बापू स्मारक इंटर काॅलेज दरगाह मऊ।

Comments