*अपना गाँव*

 


गाँव में सुकूँ  है

आसान है कहना

बिना सुविधाओं के

मुश्किल है रहना


माना हवा शुद्ध है 

हरे खेत खलिहान

मिट्टी की सोंधी खुशबू

नदी का किनारा

छोटा सा मंदिर

चूल्हे की रोटी

आँगन चौवारा

क्या बस यही जहान है ?


गाँव की पगडंडी से निकल

आसमान की ऊंचाई

नापनी ही पड़ेगी

जिंदगी से जद्दोजहद

करनी ही पड़ेगी


भले ही रोजी रोटी के लिए

शहर जाओ,

क्यूंकि इसके बिना भी

जिंदगी ना चलेगी

लेकिन शहरों की चकाचोंध में

अपनों को न भूल जाना,

जुड़े रहना अपनी जमीं से

क्यूंकि वापिस लौटकर

गाँव ही है आना

यहाँ की मिट्टी में ही

मिट्टी तुम्हें हो जाना।।


.... मन....

✍️ मंजू राही

साभार-विश्व हिंदी संस्थान, कनाडा। 



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