मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी के दिन प्रदोष व्रत रखा जाएगा. प्रदोष व्रत भगवान शिव को समर्पित होता है. इस दिन भगवान शिव की विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना की जाती है. इस बार दिसंबर में प्रदोष व्रत 16 दिसंबर के दिन पड़ रहा है. कहते हैं कि प्रदोष व्रत की पूजा सदैव प्रदोष काल में ही करनी चाहिए. इस दिन व्रत करने और भगवान शिव की पूजा करने से आरोग्य मिलता है. इतना ही नहीं, शत्रु का नाश होता है, पुत्र की प्राप्ति होती है और धन आदि की प्राप्ति होती है.
मान्यता है कि दिन के अनुसार प्रदोष व्रत का अलग महत्व और फल मिलता है. इस बार गुरुवार के दिन होने के कारण इसे गुरु प्रदोष व्रत के नाम से जाना जाता है. ये तो सभी जानते हैं कि प्रदोष व्रत के दिन सायंकाल में ही भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए. लेकिन क्या आप इसके पीछे का कारण जानते हैं? नहीं, तो चलिए जानते हैं.
प्रदोष काल में क्यों होती है प्रदोष व्रत की पूजा : पौराणिक ग्रंथों के अनुसार हर माह की त्रयोदशी तिथि को भगवान शिव सायंकाल या प्रदोष काल में कैलाश पर्वत पर अपने रजत भवन में प्रसन्न होकर नृत्य करते हैं. मान्यता है कि जिस समय भगवान शिव प्रसन्न होते हैं उस समय उनकी पूजा की जाए, तो इससे मनचाहा फल प्राप्त किया जा सकता है. इस वजह से हर त्रयोदशी तिथि को प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए.
प्रदोष काल : पंचांग के अनुसार, हर त्रयोदशी को प्रदोष काल (Pradosh Kaal) में पूजा का मुहूर्त अलग होता है. वैसे बता दें कि सूर्यास्त के बाद और रात्रि से पूर्व के समय को प्रदोष काल कहते हैं. इस काल में ही भगवान शिव नृत्य करते हैं. और प्रसन्न होते हैं.
Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.
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