दीपक एक फायदे अनेक, दीपक से जुड़ी मान्यताओं का क्या है वैज्ञानिक आधार, जानिए


दीपक प्रज्जवलित करना सिर्फ आस्था और विश्वास पर ही निर्धारित नहीं है, इसके पीछे वैज्ञानिकता भी छिपी हुई है.

भारतीय परंपरा और रीति-रिवाजों में दीपक का विशेष महत्व है. हर पूजा या अनुष्ठान से पूर्व दीपक जलाया जाता है और वह पूरे अनुष्ठान काल में जलता रहता है. दीपक की लौ व्यक्ति का ध्यान अनुष्ठान से जोड़ती है. दीपक प्रज्जवलित करना सिर्फ आस्था और विश्वास पर ही निर्धारित नहीं है, इसके पीछे वैज्ञानिकता भी छिपी हुई है. 

पीपल वृक्ष : हिन्दू धर्म परंपरा में पीपल के वृक्ष के नीचे दीपक जलाया जाता है. पौराणिक मान्यता के अनुसार पीपल पर ब्रह्मा जी का वास होता है. पीपल वृक्ष को जो काटता है या नुकसान पहुंचाता है, उसे इसी मान्यता के अनुसार ब्रह्महत्या का दोषी माना जाता है. पीपल वृक्ष के मुख्य देवता शनि को माना गया है और पितृ-आत्माओं का वास भी इसी वृक्ष पर होता है. पीपल के वृक्ष के नीचे शनिवार को सरसों के तेल का दीपक जलाने से सारे मनोरथ पूरे होते हैं. प्रत्येक अमावस्या को रात में पीपल के वृक्ष के नीचे शुद्ध घी का दीपक प्रज्वलित करने से पितर प्रसन्न रहते हैं. पीपल का वृक्ष रात में भी ऑक्सीजन उत्पन्न करता है और ऑक्सीजन मनुष्य के जीवन का आधार है. जिन लोगों की शनि की साढ़ेसाती के चल रही होती है उन्हें शनिवार को दीपक जलाना चाहिए, इससे पूर्ण शुद्ध प्राण वायु मिलती है. विविध साधनाओं और सिद्धियों में सफलता प्राप्त करने के लिए पीपल के वृक्ष के नीचे दीपक जलाने का नियम है.  

तुलसी का पौधा : तुलसी के पौधे के नीचे संध्या को दीपक जलाने से घर पर बुरी शक्तियों का गलत प्रभाव नहीं पड़ता है. दीपक जलाने वालों के पापों का नाश भी हो जाता है, इसके लिए मिट्टी का दीपक होना चाहिए . और उसमें शुद्ध देशी घी भरना चाहिए. पौराणिक मान्यता के अनुसार तुलसी में सभी तीर्थों, देवी-देवताओं और वेदों का निवास होता है, इसका वैज्ञानिक आधार भी है. तुलसी में बेजोड़ औषधीय और कीटनाशक गुण छिपे हैं. तुलसी अनेक बीमारियों को दूर करती है. रविवार को तुलसी के पत्ते तोड़ना और उस पर जल छिड़कना मना है. रविवार को तुलसी का सेवन करना या उसके पत्तों को तोड़कर चबाना वर्जित है. 

केले का वृक्ष : बृहस्पतिवार को वृक्ष के नीचे घी का दीपक जलाने से अविवाहित कन्या का विवाह शीघ्र हो जाता है. ऐसी मान्यता प्राचीन काल से ही चली आ रही है. इसी तरह से बरगद, गूलर, इमली, कीकर, आंवला आदि अनेक पौधों एवं वृक्षों के नीचे अलग-अलग इच्छाओं को लेकर अलग-अलग प्रकार से दीपक जलाए जाते हैं.  

प्राचीन काल से ही लोगों में यह धारणा है कि चौराहे पर आटे का चौमुखा घी का दीपक जलाने से चहुंमुखी लाभ होता है. तिराहे, चौराहे आदि विशेष स्थान दीपक जलाने से नजर और टोटकों आदि का निवारण होता है. पूर्व और पश्चिम मुखी भवनों में मुख्य द्वार पर संध्या के वक्त सरसों के दीपक जलाने का विधान है, इससे किसी भी प्रकार की बुरी आत्मा घर में प्रवेश नहीं पाती हैं. विज्ञान की दृष्टि में सरसों के तेल का दीपक जलाने से जो गैस और ऊष्मा वातावरण में उत्पन्न होती है, वह उस वातावरण के दूषित और विषैले कीटाणुओं को समाप्त कर देती है. इससे उस स्थान का वातावरण शुद्ध हो जाता है. दीपक को प्रज्जवलित करके ही काजल बनाया जाता है. प्राचीन काल से ही यह परंपरा चली आ रही है. गांव, कस्बे और शहरों में महिलाएं आज भी अपने हाथों का बना काजल पसंद करती हैं. सरसों के तेल का दीपक प्रज्वलित कर उसकी कालिमा को किसी पात्र में इकट्ठा कर लिया जाता है और उसे बच्चों की आंखों में काजल के रूप में लगाया जाता है. साथ ही यह भी माना जाता है कि इसका टीका बच्चे को लगाने से उसे नजर नहीं लगती है. दीपक से जुड़ी मान्यताएं अनेक हैं और दीपक का भारतीय रस्मों - रिवाज में खास स्थान प्राप्त है.

Disclaimer : यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.





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