--- सबके रहने लायक दुनिया -----

 

सारे सपने, सारे अरमान और सारी ख़्वाहिशें,

मुक्कम्ल कर लिए इंसान ने,

मगर आज भी पुरसुकून तरीके से  मुक्कम्ल न होने वाला सपना है,

"सबके रहने बसने लायक दुनिया"। 

इस बसुन्धरा के बुद्धि के इकलौते  ठेकेदारों ने,

अपनी बुद्धि से अनगिनत करिश्मे और  अनगिनत चमत्कार कर डालें,

अपनी कल्पनाओं के सारे आसमान स्पर्श कर लिए, 

सुपरसोनिक गति से पृथ्वी के अनगिनत चक्कर लगा लिए,

अपने बनाए जादुई औजारो से न केवल धरती,

बल्कि आसमान में चमकते सितारो ग्रहों और चन्द्रमाओं की, 

गहराई, गोलाई, मोटाई, लम्बाई सबकुछ नाप लिए,

अंतरिक्ष की अनंत ऊँचाइयों को अपने ज्ञान की चौहद्दी में कर लिए,

पर सारे बुद्धिमान मिलकर भी ऐसी दुनिया नहीं बना पाए,

जो सबके रहने-बसने लायक हो। 

तुम ओजस्वी हो, तुम तेजस्वी हो,

तुम कुशाग्र हो, तुम मेधावी हो,

तुम प्रतिभाशाली हो,

तुम बसुन्धरा पर सचमुच विलक्षण हो,

तुम्हें तुम्हारे करतबों के लिए बहुत- बहुत बधाई,

शाबाश! जो तुमने चाँद पर कदम रख लिए,

और मंगल ग्रह पर एक नई दुनिया बसाने के प्रयासों लिए 

तुम्हें अनगिनत शुभकामनाएं,

पर तनिक ठंडे दिमाग से सोचो !

जिस दुनिया में तुम पले-बढ़े क्या वह सबके रहने लायक बन गई ?

मंगल ग्रह पर तुम्हारा अभियान कहीं पलायन तो नहीं है ?

इस दुनिया की चुनौतियों और समस्याओं से, 

इतिहास और परम्पराऐं तुम्हें भगौडा घोषित कर देगी। 

अगर तुम सचमुच विलक्षण हो, प्रतिभाशाली हो,

और सचमुच कुशाग्र हो,

तो सिद्ध करो अपनी कुशाग्रता, विलक्षणता और अपनी प्रतिभा,

सबके रहने लायक दुनिया बनाकर ही,

 सोचना मंगल ग्रह पर एक नई दुनिया बसाने का सपना। 

एक बेहतर सबके रहने लायक दुनिया जमीन पर उतार दोगे 

तभी मंगल ग्रह पर तुम्हारा अभियान बंदनीय होगा,

और तभी इतिहास, पम्पराएं और मानवता तुम्हारा अभिनन्दन करेंगी । ।  

सबके रहने लायक दुनिया हो कैसी होगी और कैसे बनेगी। ?

पता नहीं यह प्रश्न तुम्हारे मन मस्तिष्क

और हृदय कितना व्यथित करता ??

यह कोई जटिल कठिन सवाल नहीं है,

यह कोई टेढ़ा-मेढा यक्ष प्रश्न भी नहीं है,

इसका उत्तर किसी युधिष्ठिर को नहीं  देना है,

यह सरल, सहज, सीधा और सपाट सवाल है,

इसका उत्तर भी सरल सहज इंसान को सहज बोध से ही देना है। 

अलौकिक, अभौतिक, अदृष्य आत्मा- परमात्मा का ज्ञान देने वाले,

क्यों नहीं इस प्रश्न का हल ढूँढते हो।

धरती के अन्दर छुपा सारा खजाना खोज लेते हो,

अपनी रासायनिक कारीगरी से तेल पानी रसोई गैस सब निकाल लेते हो,

पर इस सहज सरल मासूम सा यह  प्रश्न ""सबके रहने लायक दुनिया "" ??

क्यों तुम्हें कठिन लगने लगता है ? 

इसका उत्तर तुम्हारी भोली-भाली बुद्धि में हैं 

बचपन जैसे कोमल हृदय में है,

और इसका समाधान तुम्हारे सहज बोध से किये गए प्रयासो में है। 

इसलिए एक बार फिर हिम्मत और हौंसले से,

अपनी भोली-भाली बुद्धि को पुनर्जीवित करो,

और अपने मन में रचे-बसे भोलेपन और भलमनसाहत को भी,

अपने सहजबोध को फिर से जीवंत करो,

तब बन जायेगी तुम्हारी, हमारी और  सबकी मनपसंद

और सबकी मनचाही दुनिया,

और यही दुनिया सबके रहने लायक दुनिया होगी। ।। 


मनोज कुमार सिंह प्रवक्ता 

बापू स्मारक इंटर कॉलेज दरगाह मऊ।



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