महादेवी वर्मा हिन्दी साहित्य की अद्वितीय श्रृंगारिका ने अपने श्रृंगार के लिए कभी आइना नहीं देखा---


पुण्यतिथि पर पुण्य स्मरण -

आधुनिक दौर के साहित्यिक जगत में  मीराबाई के नाम से विख्यात, महाप्राण सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, जयशंकर प्रसाद और प्रकृति के सुकुमार कवि कहे जाने वाले सुमित्रानंदन पंत के साथ हिन्दी साहित्य की छायावादी परम्परा के चार प्रमुख स्तम्भों में से एक, महाकवि निराला के शब्दों में "हिन्दी के विशाल मन्दिर की सरस्वती" एवं साहित्य के सर्वोच्च अलंकरण ज्ञानपीठ पुरस्कार से अंलकृत महादेवी वर्मा को  पीड़ा, व्यथा, वेदना और नारी संवेदना की सर्वश्रेष्ठ कवयित्री माना जाता है। महादेवी वर्मा ने पराधीन भारत के दुख दर्द और स्वाधीनता के लिए  लडते-जूझते भारतीय हृदयो की तडप और छटपटाहट को बडे गौर से देखा था। इसके साथ स्वाधीनता उपरांत अपने पैरों पर खड़े होने का प्रयास करते भारत तथा अपने गौरवशाली अतीत को ढूंढते भारत की तडप को भी महसूस किया था। इस तडपन के बावजूद अपनी रचनाओं में पीडा, व्यथा और वेदना का कोमल और करूण शब्दों से साहित्यिक श्रृंगार किया है। कोमल,हृदयस्पर्शी और करूण शब्दों के लिए उन्होंने ब्रज और बांग्ला साहित्य को खूब खोजा और खंगाला। पीडा, व्यथा और वेदना को कोमल और करूण शब्दों के माध्यम से अभिव्यक्त करने के कारण ही महादेवी वर्मा को आधुनिक काल की मीराबाई कहा जाता हैं।मीराबाई ने भी अपनी पीड़ा को कोमल और करूण शब्दों से अभिसिंचींत कर अपनी रचनाओं को उत्कट भक्ति भावना में परिवर्तित और परिमार्जित कर दिया। अपनी लेखनी से हिन्दी साहित्य को समृद्ध और विविध रंगों से पुष्पित और पल्लवित करने वाली महादेवी वर्मा ने आजीवन श्वेत वस्त्र धारण किया, सहज, सरल और सादगी पूर्ण जीवन व्यतीत किया तथा कम उम्र में ब्याहता होने के बावजूद एक सन्यासिनी की तरह जीवन गुजर बसर किया। वर्तमान उत्तर प्रदेश के फर्रूखाबाद जनपद में पैदा हुई महादेवी वर्मा सशक्त कवयित्री के साथ-साथ उपन्यासकार और लघुकथा लेखिका भी थी। मूलतः धार्मिक और आध्यात्मिक प्रवृत्ति की प्रतिभासम्पन्न गद्य और पद्य लेखिका महादेवी वर्मा महाकवि निराला और सुमित्रा नंदन पन्त को साहित्यिक सहोदर मानती थी और प्रतिवर्ष रक्षा बंधन मे इन दोनों विभूतियों को राखी बांधती थीं। नारी सशक्तिकरण की सशक्त, शानदार और अमिट हस्ताक्षर  महादेवी वर्मा को उनकी पुण्यतिथि के अवसर पर श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूँ। नीहार, दीपशिखा, रश्मि, सप्तपर्णा, नीरजा, यामा, अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाऐ और पथ के साथी जैसी रचनाओं के माध्यम से हिन्दी साहित्य को समृद्ध करने में महादेवी वर्मा ने अतुलनीय भूमिका का निर्वहन किया। 



मनोज कुमार सिंह प्रवक्ता 

बापू स्मारक इंटर कॉलेज दरगाह मऊ।



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