इन्हीं पागल दिमागों में आजादी के गुच्छे है।
हमें पागल ही रहने दो हम पागल ही अच्छे हैं।।
शहादत की शानदार परम्पराओं में सम्पूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप हृदय में सर्वोच्च श्रद्धा भाव से स्मरण किये जाने वाले शहीद-ए-आज़म भगत सिंह भारतीय उपमहाद्वीप में समाजवादी चिंतन धारा के सर्वाधिक उत्साही, ऊर्जावान और प्रखर संवाहक और समाजवादी क्रांति के प्रणेता माने जाते हैं। सम्भवत: वैश्विक इतिहास में भगत सिंह उन गिनें-चुने क्रांतिकारी दार्शनिकों में थे जिन्होंने अपनी विचारधारा का प्रणयन और प्रसार किसी गुफा कन्दरा में साधनारत होकर या किसी पुस्तकालय में अध्ययनरत रहते हुए नहीं किया बल्कि ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध लडते जूझते हुए और अंततः अपने प्राणों की आहुति देकर किया। 1931 मे भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की शहादत ने भारत के करोड़ों नौजवानों और बुद्धिजीवियों को समाजवाद और समाजवाद की बुनियाद पर बेहतर समाज बनाने का दिवाना और मतवाला कर दिया। भगत सिंह की शहादत से जो समाजवादी क्रांति की जो मशाल प्रज्वलित हूई उससे अंतिम कतार में खड़े शोषित वंचित आंखों को रोशनी मिलती हैं। आमतौर भगत सिंह को आजादी के लिए बेचैन ,व्यग्र उत्तेजित, उत्साहित और बम बन्दूक पिस्तौल की बुनियाद पर लडने वाले नौजवान के रूप में माना जाता है। परन्तु भगत सिंह जितने बडे लडाकू थे उतने ही बडे पढाकू थे। उन्होंने महज तेईस साल की उम्र में भारत सहित दुनिया के महत्वपूर्ण सामाजिक राजनीतिक आर्थिक और सांस्कृतिक घटनाओं परिस्थितियों और परिवेश से जुड़े साहित्य का गहराई से अध्ययन किया था इसलिए वह एक उत्कट दार्शनिक चिंतक और विचारक थे। "मै नास्तिक क्यों हूँ " "बम का दर्शन " सहित दर्जनों पुस्तकें और सैकड़ों लेख उनकी उत्कट दार्शनिकता के परिचायक हैं। इसके साथ ही साथ महज तेईस साल की उम्र में भगत सिंह ने एक बेहतर समाज और बेहतरीन विश्व के लिए एक बेहतरीन सामाजिक और वैश्विक राजनीतिक समझदारी विकसित कर लिया था।
दुनिया के नरसंहारो के इतिहास में दर्ज और मानवता को कलंकित करने वाले जलियाँवाला बाग हत्याकांड में निहत्थे भारतीय सत्याग्रहियों पर निर्ममतापूर्वक गोली चलाने की घटना और डायर की क्रूरता ने बारह वर्षीय भगत सिंह को गहरे रूप से प्रभावित किया था। इस घटना ने ही उनके मन, मस्तिष्क और हृदय को साम्राज्यवाद के खूनी, खूंखार, नग्न शोषणकारी तथा अमानवीय चेहरे और चरित्र के प्रति स्थायी घृणा और घाव से भर दिया। इसलिए साम्राज्यवाद के समूल नाश और शोषण के समस्त औजारों को ध्वस्त करने की शपथ लेकर दृढ संकल्प के साथ राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा संचालित असहयोग आन्दोलन के भाग लेते हुए भगत सिंह स्वाधीनता संग्राम में कूद पड़े।
राष्ट्रिता महात्मा गांधी द्वारा असहयोग आन्दोलन स्थगित किए जाने से भगतसिंह और उनकी क्रांतिकारी टीम को बड़ी निराशा हूई और उन्होंने अपनी क्रांतिकारी टीम के साथ दूसरा रास्ता अख्तियार कर लिया। भगत सिंह और उनके क्रांतिकारी साथियों ने ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध प्रतिरोध की मशाल प्रखरता से सविनय अवज्ञा आंदोलन के आरम्भ होने तक जलाये रक्खी। इस दौरान महात्मा गाँधी और कांग्रेस द्वारा आंदोलन पूरी तरह स्थगित रहा। रशियन क्रांति के महानायक ब्लदिमीर इलियाच लेनिन से गहरे रूप से प्रभावित भगत सिंह किसानों, मजदूरों, मेहनतकश और हाशिए पर खडे हर आदमी के हक हूकूक और हूकूमत के प्रबल पक्षधर थे। सहकार समन्वय साहचर्य सद्भावना सहिष्णुता समरसता समता, इसांफ और इंसानियत की बुनियाद पर बेहतर समाज बनाने के हिमायती क्रांतिकारी शहीद-ए-आज़म भगत सिंह को उनके जन्मदिन के अवसर नमन करता हूँ।
मनोज कुमार सिंह प्रवक्ता
बापू स्मारक इंटर कांलेज दरगाह मऊ।
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