चाणक्य नीति : सेवक और मित्र की पहचान इन परिस्थितियों में ही संभव है, यदि नहीं है ये गुण, तो फौरन बना लें दूरी


चाणक्य नीति कहती है कि व्यक्ति के जीवन में पत्नी, सेवक और मित्र की विशेष भूमिका होती है.


चाणक्य नीति कहती है कि व्यक्ति को यदि श्रेष्ठ गुणों से युक्त पत्नी मिल जाए, सही और गलत पर टोकने और समझाने वाला मित्र मिल जाए तथा सेवा करने वाला सेवक मिल जाए तो जीवन कष्टों से रहित हो जाता है. यदि कष्ट आ भी जाए तो अधिक पीड़ा नहीं देता है. इन लोगों का साथ और सहयोग बड़ी से बड़ी परेशानियों को भी दूर करने की क्षमता रखता है.


आचार्य की गिनती भारत के श्रेष्ठ विद्वानों में की जाती है. चाणक्य एक शिक्षक होने के साथ-साथ योग्य अर्थशास्त्री भी थे. इसके साथ ही आचार्य चाणक्य को राजनीति शास्त्र, कूटनीति शास्त्र औश्र समाजशास्त्र जैसे महत्वपूर्ण विषयों के भी जानकार थे. चाणक्य का कहना था कि मित्र, पत्नी और सेवक की पहचान कुछ विशेष परिस्थितियों में ही होती है. ये परिस्थियां क्या हैं, आइए जानते हैं-


जानीयात् प्रेषणे भृत्यान् बान्धवान् व्यसनागमे।

मित्रं चापत्तिकाले तु भार्यां च विभवक्षये।।


चाणक्य नीति के इस श्लोक के मुताबिक कार्य की जिम्मेदारी सौंपने पर सेवक की पहचान होती. यानि कार्य जब सौंपा जाता है तो सेवक की प्रतिभा और क्षमता का पता चलता है. इसी प्रकार से दुख और कष्ट होने पर रिश्तेदार की पहचान होती है. जो रिश्तेदार दुख में साथ न दें, कष्ट मे हालचाल न ले, ऐसे रिश्तेदार स्वार्थी होते हैं. वहीं विपत्ति आने पर मित्र की पहचान होती है. सच्चा मित्र परेशानी आने पर कभी साथ नहीं छोड़ता है और हमेशा साथ खड़ा रहता है, समस्या आने पर जो मित्र साथ छोड़ जाए, उससे दूर ही रहना बेहतर है. चाणक्य कहते हैं कि धन का नाश होने पर पत्नी की पहचान होती है. जीवन में सफलता प्राप्त करनी है तो चाणक्य की इस बात को गंभीरता समझ लेना चाहिए. जो लोग इस बात को नहीं समझ पाते हैं, उनका जीवन दुख और परेशानियों से भर जाता है.







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