सावन की रिमझिम झड़ी लगी है, हरी चुनरिया ओढे खड़ी है।
सुमन हिय के खिल गए हैं, मानो तन मन को महका रही है।
हाथों में चूड़ी खनक रही है, माथे पे बिंदिया चमक रही है।
लगाके देखो प्रेम की मेहंदी, पिया के नेह की रच रही है।
सिन्दारों की झड़ी लगी है, घेवर, गुंझिया, खूब सजी हैं।
तीजों के दिन मेलों में, नारी की देखो भीड़ लगी है
बागों में झूले पड़े हुए हैं, नीमो की टहनी पर झूल रहे हैं।
लम्बे ऊंचे झोंटे लेकर, मानो नभ को छू रहे हैं।
नन्ही बुँदियाँ पड़ रही हैं, मल्हार सखियों संग गव रही हैं।
सावन की हरियाली में वो, कोयल सी सखियाँ कुहूक रही हैं।
स्वरचित✍️मौलिक
मानसी मित्तल
शिकारपुर
जिला बुलंदशहर
उत्तर प्रदेश
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