मकान की नींव में क्‍यों गाड़ा जाता है सर्प और कलश


हम सभी जब अपना मकान बनवाते हैं तो उसकी शुरुआत नींव भरवाने से की जाती है और इसका शुभारंभ करने के लिए हमारी धार्मिक परंपराओं में सबसे पहले भूमि पूजन किया जाता है। भूमि भूजन में सभी देवी-देवताओं का आह्वान किया जाता है और प्रार्थना की जाती है मकान बनने का यह कार्य निर्विघ्‍न रूप से संपन्‍न हो। आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि नींव भरवाने से जुड़ी एक जरूरी और महत्‍वपूर्ण बात।

भागवत पुराण में बताई गई है यह बात : 

श्रीमद्भागवत महापुराण के पांचवें स्कंद में लिखा है कि पृथ्वी के नीचे पाताल लोक है और इसके स्वामी शेषनाग हैं। भूमि से दस हजार योजन नीचे अतल, अतल से दस हजार योजन नीचे वितल, उससे दस हजार योजन नीचे सतल, इसी क्रम से सब लोक स्थित हैं। अतल, वितल, सतल, तलातल, महातल, रसातल, पाताल ये सातों लोक पाताल स्वर्ग कहलाते हैं। इनमें भी काम, भोग, ऐश्वर्य, आनन्द, विभूति ये वर्तमान हैं। दैत्य, दानव, नाग ये सब वहां आनन्दपूर्वक भोग-विलास करते हुए रहते हैं। इन सब पातालों में अनेक पुरियां प्रकाशमान रहती हैं। इन पातालों में सूर्य आदि ग्रहों के न होने से दिन-रात्रि का विभाग नहीं है। इस कारण काल का भय नहीं रहता है। यहां बड़े-बड़े नागों के सिर की मणियां अंधकार दूर करती रहती हैं। पाताल में ही नाग लोक के पति वासुकी आदिनाग रहते हैं।

श्री शुकदेव के मतानुसार पाताल से तीस हजार योजन दूर शेषजी विराजमान हैं। शेषजी के सिर पर पृथ्वी रखी है। जब ये शेष प्रलय काल में जगत के संहार की इच्छा करते हैं, तो क्रोध से कुटिल भृकुटियों के मध्य तीन नेत्रों से युक्त 11 रुद्र त्रिशूल लिए प्रकट होते हैं। पौराणिक ग्रंथों में शेषनाग के फण (मस्तिष्क) पर पृथ्वी टिकी होने का उल्लेख मिलता है।

महाभारत के भीष्‍मपर्व में लिखी है यह बात : 

उल्लेखनीय है कि हजार फणों वाले शेषनाग समस्त नागों के राजा हैं। भगवान् विष्‍णु की शैय्या बनकर सुख पहुंचाने वाले, उनके अनन्य भक्त हैं और बहुत बार भगवान् के साथ-साथ अवतार लेकर उनकी लीला में सम्मिलित भी रहते हैं। श्रीमद्भगवद्गीता के 10वें अध्याय के 29वें श्लोक में भगवान् कृष्ण ने कहा है :- अनन्तश्चास्मि नागानाम्’ अर्थात् मैं नागों में शेषनाग हूं।

इसलिए नींव पूजन में डाला जाता है चांदी का सर्प और कलश : 

नींव पूजन का पूरा कर्मकांड इस मनोवैज्ञानिक विश्वास पर आधारित है कि जैसे शेषनाग अपने फण पर संपूर्ण पृथ्वी को धारण किए हुए है, ठीक उसी प्रकार मेरे इस भवन की नींव भी प्रतिष्ठित किए हुए यानी जमीन में गाड़े गए चांदी के नाग के फण पर पूर्ण मजबूती के साथ स्थापित रहे। शेषनाग क्षीरसागर में रहते हैं, इसलिए पूजन के कलश में दूध, दही, घी डालकर मंत्रों से आह्वान कर शेषनाग को बुलाया जाता है, ताकि वे साक्षात् उपस्थित होकर भवन की रक्षा का भार वहन करें। विष्णुरूपी कलश में लक्ष्मी स्वरूप सिक्का डालकर पुष्प और दूध पूजन में अर्पित किया जाता है, जो नागों को अतिप्रिय है। भगवान् शिवजी के आभूषण तो नाग ही हैं। लक्ष्मण और बलराम शेषावतार माने जाते हैं। इसी विश्वास से साथ बरसों से यह प्रथा चली आ रही है।

साभार- नवभारत टाइम्स




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