सौभाग्य प्राप्ति का व्रत - वट सावित्री

 


वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को किया जाता है. इस दिन सुहागन स्त्रियां बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं और अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं. वट सावित्री व्रत सौभाग्य प्राप्ति के लिए एक बड़ा व्रत माना जाता है. हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल वट सावित्री व्रत 10 जून दिन गुरूवार को रखा जाएगा lवट सावित्री व्रत उत्तर भारत के सबसे लोकप्रिय त्योहारों में से एक है. ये त्योहार उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, बिहार, पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है।

हिंदू धर्म में वट सावित्री व्रत महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है. इस दिन स्त्रियां अपने पति की दीर्घायु और सुखद वैवाहिक जीवन के लिए व्रत रखती हैं । *इस दिन विवाहित महिलाएं बरगद के पेड़ की परिक्रमा करती हैं और उस पर सुरक्षा का धागा बांधकर पति की लंबी उम्र की प्रार्थना करती हैं।*

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो पत्नी इस व्रत को सच्ची श्रद्धा के साथ करती है, उसे न केवल पुण्य की प्राप्ति होती है बल्कि उसके पति के सभी कष्ट भी दूर हो जाते हैं. आमतौर पर इस दिन सुहागन स्त्रियां सोलह श्रृंगार करती हैं ।इस दिन वट वृक्ष की पूजा की जाती है. प्रत्येक महिला इस दिन वृक्ष के चारों ओर कच्चे सूत का धागा लपेटते हुए परिक्रमा करती है और अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती है. *इसके बाद वट सावित्री व्रत की कथा सुनी जाती है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, बिना कथा सुना ये व्रत अधूरा माना जाता है. कोरोना महामारी के बीच, मंदिर जाना और पूजा करना मुश्किल है. ऐसे में आप अपने घर पर सिंदूर और हल्दी से मूर्तियां बनाकर पूजा कर सकते हैं ।*

*वट सावित्री व्रत के लिए पूजन सामग्री:*

बांस की लकड़ी से बना बेना (पंखा), लाल और पीले रंग का कलावा, अगरबत्ती या धूपबत्ती, पांच प्रकार के 5 फल, तांबे के लोटे में पानी, पूजा के लिए सिन्दूर (बिना इस्तेमाल किया हुआ) और लाल रंग का वस्त्र पूजा में बिछाने के लिए।

*वट सावित्री व्रत शुभ मुहूर्त:*

अमावस्या तिथि प्रारम्भ: 9 जून 2021, दोपहर 01:57 बजे

अमावस्या तिथि समाप्त: 10 जून 2021, शाम 04:22 बजे

उदया तिथि में अमावस्या तिथि 10 जून को है, इसलिए यह व्रत और पूजन 10 जून को करना ही शुभ है.

वट सावित्री व्रत पूजा विधि:

शादीशुदा महिलाएं इस दिन तड़के सुबह उठकर नहा-धोकर पवित्र हो जाएं. इसके बाद लाल या पीली साड़ी पहनकर पूरा दुल्हन की तरह सजें-संवरें. अब बांस की पूजा वाली डलिया में पूजा का सारा सामान व्यवस्थित तरीके से रख लें. अब वट (बरगद) के पेड़ के नीचे के स्थान को अच्छे से साफ़ कर वहां एक चौकी लगाकर सावित्री और सत्यवान की मूर्ति स्थापित कर दें. इसके बाद फूल, रोली, कलावा, अक्षत, दिया, धूपबत्ती और सिन्दूर से उनका पूजन करें. इसके बाद उन्हें लाल रंग का वस्त्र अर्पित करें और साथ ही फल भी चढ़ाएं । इसके बाद बेना (पंखे) से हवा करें. अब अपने बालों में बरगद का एक पत्ता खोंस लें. अब खड़े होकर 5, 11, 21, 51, 108 यानी कि विषम संख्या में वट के पेड़ के चारों तरफ परिक्रमा करें।

*सत्यवान (वट)सावित्री व्रत की कथा निम्न प्रकार से है:*

भद्र देश के एक राजा थे, जिनका नाम अश्वपति था। भद्र देश के राजा अश्वपति के कोई संतान न थी।

उन्होंने संतान की प्राप्ति के लिए मंत्रोच्चारण के साथ प्रतिदिन एक लाख आहुतियाँ दीं। अठारह वर्षों तक यह क्रम जारी रहा।

इसके बाद सावित्रीदेवी ने प्रकट होकर वर दिया कि: राजन तुझे एक तेजस्वी कन्या पैदा होगी। सावित्रीदेवी की कृपा से जन्म लेने के कारण से कन्या का नाम सावित्री रखा गया।

कन्या बड़ी होकर बेहद रूपवान हुई। योग्य वर न मिलने की वजह से सावित्री के पिता दुःखी थे। उन्होंने कन्या को स्वयं वर तलाशने भेजा।

सावित्री तपोवन में भटकने लगी। वहाँ साल्व देश के राजा द्युमत्सेन रहते थे, क्योंकि उनका राज्य किसी ने छीन लिया था। उनके पुत्र सत्यवान को देखकर सावित्री ने पति के रूप में उनका वरण किया।

ऋषिराज नारद को जब यह बात पता चली तो वह राजा अश्वपति के पास पहुंचे और कहा कि हे राजन! यह क्या कर रहे हैं आप? सत्यवान गुणवान हैं, धर्मात्मा हैं और बलवान भी हैं, पर उसकी आयु बहुत छोटी है, वह अल्पायु हैं। एक वर्ष के बाद ही उसकी मृत्यु हो जाएगी।

ऋषिराज नारद की बात सुनकर राजा अश्वपति घोर चिंता में डूब गए। सावित्री ने उनसे कारण पूछा, तो राजा ने कहा, पुत्री तुमने जिस राजकुमार को अपने वर के रूप में चुना है वह अल्पायु हैं। तुम्हे किसी और को अपना जीवन साथी बनाना चाहिए।

इस पर सावित्री ने कहा कि पिताजी, आर्य कन्याएं अपने पति का एक बार ही वरण करती हैं, राजा एक बार ही आज्ञा देता है और पंडित एक बार ही प्रतिज्ञा करते हैं और कन्यादान भी एक ही बार किया जाता है।

सावित्री हठ करने लगीं और बोलीं मैं सत्यवान से ही विवाह करूंगी। राजा अश्वपति ने सावित्री का विवाह सत्यवान से कर दिया।

सावित्री अपने ससुराल पहुंचते ही सास-ससुर की सेवा करने लगी। समय बीतता चला गया। नारद मुनि ने सावित्री को पहले ही सत्यवान की मृत्यु के दिन के बारे में बता दिया था। वह दिन जैसे-जैसे करीब आने लगा, सावित्री अधीर होने लगीं। उन्होंने तीन दिन पहले से ही उपवास शुरू कर दिया। नारद मुनि द्वारा कथित निश्चित तिथि पर पितरों का पूजन किया।

हर दिन की तरह सत्यवान उस दिन भी लकड़ी काटने जंगल चले गये साथ में सावित्री भी गईं। जंगल में पहुंचकर सत्यवान लकड़ी काटने के लिए एक पेड़ पर चढ़ गये। तभी उसके सिर में तेज दर्द होने लगा, दर्द से व्याकुल सत्यवान पेड़ से नीचे उतर गये। सावित्री अपना भविष्य समझ गईं।

सत्यवान के सिर को गोद में रखकर सावित्री सत्यवान का सिर सहलाने लगीं। तभी वहां यमराज आते दिखे। यमराज अपने साथ सत्यवान को ले जाने लगे। सावित्री भी उनके पीछे-पीछे चल पड़ीं।

यमराज ने सावित्री को समझाने की कोशिश की कि यही विधि का विधान है। लेकिन सावित्री नहीं मानी।

सावित्री की निष्ठा और पतिपरायणता को देख कर यमराज ने सावित्री से कहा कि हे देवी, तुम धन्य हो। तुम मुझसे कोई भी वरदान मांगो।

*1) सावित्री ने कहा कि मेरे सास-ससुर वनवासी और अंधे हैं, उन्हें आप दिव्य ज्योति प्रदान करें।* यमराज ने कहा ऐसा ही होगा। जाओ अब लौट जाओ।

लेकिन सावित्री अपने पति सत्यवान के पीछे-पीछे चलती रहीं। यमराज ने कहा देवी तुम वापस जाओ। सावित्री ने कहा भगवन मुझे अपने पतिदेव के पीछे-पीछे चलने में कोई परेशानी नहीं है। पति के पीछे चलना मेरा कर्तव्य है। यह सुनकर उन्होने फिर से उसे एक और वर मांगने के लिए कहा।

*2) सावित्री बोलीं हमारे ससुर का राज्य छिन गया है, उसे पुन: वापस दिला दें।*

यमराज ने सावित्री को यह वरदान भी दे दिया और कहा अब तुम लौट जाओ। लेकिन सावित्री पीछे-पीछे चलती रहीं।

यमराज ने सावित्री को तीसरा वरदान मांगने को कहा।

*3) इस पर सावित्री ने 100 संतानों और सौभाग्य का वरदान मांगा। यमराज ने इसका वरदान भी सावित्री को दे दिया।*

सावित्री ने यमराज से कहा कि प्रभु मैं एक पतिव्रता पत्नी हूं और आपने मुझे पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया है। यह सुनकर यमराज को सत्यवान के प्राण छोड़ने पड़े। यमराज अंतध्यान हो गए और सावित्री उसी वट वृक्ष के पास आ गई जहां उसके पति का मृत शरीर पड़ा था।

सत्यवान जीवंत हो गये और दोनों खुशी-खुशी अपने राज्य की ओर चल पड़े। दोनों जब घर पहुंचे तो देखा कि माता-पिता को दिव्य ज्योति प्राप्त हो गई है। इस प्रकार सावित्री-सत्यवान चिरकाल तक राज्य सुख भोगते रहे।

अतः पतिव्रता सावित्री के अनुरूप ही, प्रथम अपने सास-ससुर का उचित पूजन करने के साथ ही अन्य विधियों को प्रारंभ करें। वट सावित्री व्रत करने और इस कथा को सुनने से उपवासक के वैवाहिक जीवन या जीवन साथी की आयु पर किसी प्रकार का कोई संकट आया भी हो तो वो टल जाता है।




*डाॅ.रवि नंदन मिश्र*

*असी. प्रोफेसर एवं कार्यक्रम अधिकारी*

*राष्ट्रीय सेवा योजना*

(*पं.रा.प्र.चौ.पी.जी.काॅलेज, वाराणसी*) *सदस्य- 1.अखिल भारतीय ब्राम्हण एकता परिषद, वाराणसी,*

*2. भास्कर समिति,भोजपुर, आरा*

*3.अखंड शाकद्वीपीय* 

*4.चाणक्य राजनीति मंच, वाराणसी*

*5.शाकद्वीपीय परिवार, सासाराम*

*6. शाकद्वीपीय  ब्राह्मण समाज, जोधपुर*

*7.अखंड शाकद्वीपीय एवं*

*8. उत्तरप्रदेशअध्यक्ष - वीर ब्राह्मण महासंगठन, हरियाणा*



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