बलिया। अमरनाथ मिश्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय दूबेछपरा, बलिया के रक्षा एवं स्त्रातजिक विभाग द्वारा आयोजित एवं 'विश्व मामलों की भारतीय परिषद' द्वारार प्रयोजित "कोविड -19 काल में भारत एवं चीन के मध्य परिवर्तित आयाम" नामक विषय पर 13 एवं 14 मार्च को आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन समारोह के मुख्य अतिथि सुखाड़िया विश्वविद्यालय के पू्र्व प्रतिकुलपति प्रो०ए० के० सिंह ने कहा कि कोरोना ने पूरे विश्व में उथल-पुथल ला दिया, जिससे देशों के आपसी संबंधों में भी परिवर्तन हुआ और यह परिवर्तन खासतौर से व्यापार एवं सामरिक दृष्टि से हुए। भारत एवं चीन के संबंधों मध्य भी इन दोनों आयामों में बदलाव आया है।
गोष्ठी एक सत्र को संबोधित करते हुए महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य पर्यावरणविद् डा० गणेश कुमार पाठक ने कहाकि भारत एवं चीन के संबंध किसी न किसी रूपमें प्राचीन काल से रहे हैं। चीनी यात्री ह्वेनसांग एवं फाह्यान के यात्रा विवरणों से भी इस बात की पुष्ट होती है। स्वतंत्रता पश्चात 1 अप्रैल,1950 को चीन के साथ राजनयिक संबंध स्थापित हुए, जिसके तहत अनेक व्यापारिक, आर्थिक, सांस्कृतिक एवं शैक्षिक आयामों के तहत समझौते हुए, किंतु चीन की विस्तारवादी नीति के चलते भारत से उसके रिश्ते कभी भी मधुर नहीं रहे। यही नहीं अपने हितों को ध्यान में रखते हुए चीन के संबंध पाकिस्तान से अच्छे रहे जो भारत के हित में कभी नहीं रहा। हालाँकि अन्तर्राष्ट्रीय व्यापारिक समझौतों के तहत चीन से आयात- निर्यात होता रहा और कोरोना काल से पहले भारत चीन से आयात अधिक करता था एवं निर्यात कम करता था। इस तरह व्यापारिक हित चीन के पक्ष में ही रहता था। इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं एवं खिलौनों से भारतीय बाजार भरा पड़ा रहता है। किंतु कोरोना काल के दौरान चीन द्वारा किए गए सीमा उल्लंघन के कारण एवं कोरोना वायरस के प्रसार के कारण चीन से संबंधों में निश्चित तौर पर तनाव आया किंतु अंततः चीन को मुहकी खानी पड़ी एवं न केवल सामरिक दृष्टि से चीन को पीछे हटना पड़ा, बल्कि व्यापार में भी बदलाव आया और भारत चीन से होने वाले आयात व्यापार पर नियंत्रण करना प्रारम्भ कर दिया, जिससे आयात व्यापार कम हुआ एवं निर्यात व्यापार बढ़ गया। इस तरह अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की स्थिति भारत के पक्ष में रही। भारत की जनता भी चीनी वस्तुओं के बहिस्कार का सवतः निर्णय लेती गयी, जिससे हमारी सरकार को बल मिला और चीन से होने वाले आयात व्यापार में कमी आ रही है। फिर चीन पर विश्वास नहीं किया जा सकता, क्योंकि चीन हिन्दमहासागर में भी सामरिक दृष्टि से अपनी स्थिति मजबूत करने में लगा हुआ है, किंतु भारत की भी पैनी नजर चीन के कारनामों पर है और चीन को बार- बार मुहकी खानी पड़ रही है। सबके बाजूद अन्तर्राष्ट्रीय समझौतों के चलते हम चीन से बिल्कुल नाता भी धहीं तोड़ सकते, किंतु हमें चीन की कुटिल चालों से सावधान रहने की भी जरूरत है।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन म़ें जननायक चंद्रशेखर विश्वविद्यालय बलिया की कुलपति एवं महान राष्ट्रवादी प्रो० कल्पलता पाण्डेय ने अपने उद्बोधन में संदेश देते हुए कहीं आज की युवापीढ़ी को अपने संस्कार,चरित्र, सद्विचार, सदाचार, सहयोग एवं सेवाभाव में समन्वय स्थापित करते हुए भारतीय संस्कृति की चिन्तन परम्परा के तहत अपनी जीवन शैली को जीना होगा एवं परम राष्ट्रवादी बनकर देश के विकास एवं देश की रक्षा में प्रत्येक तरह से अपने को न्यौछावर करना होगा, तभी कुटनीति चाल वाले दुष्मनों से भारत की रक्षा करते हुए भारत का समग्र विकास किया जा सकता है। उन्होंनें युवापीढ़ी को उत्साहित करते हुए एवं ललकारते हुए यह भी कहा कि यदि जरूरत पड़ी तो राष्ट्र के लिए अपनी जान देने में मुझे जरा भी झिझक एवं देरी नहीं होगी। उन्होंनें राष्ट्रवादी बनकर चीनी वस्तुओं के प्रयोग न करने एवं बहिष्कार करने की शपथ भी दिलाई।
इस अवसर महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य डा० गणेश कुमार पाठक के सम्पादन में प्रकाशित शोध पत्रिका एवं डा० शिवेश प्रसाद राय द्वारा लिखित पुस्तक का विमोचन भी माननीया कुलपति एवं अतिथियों के कर-कमलों द्वारा सम्पन्न हुआ
इस अवसर विशिष्ट अतिथि मधुसूदन सिंह, कुँवर सिंह के प्राचार्य डा० अशोक कुमार सिंह, महाविद्यालय के पूर्व प्रबन्धक ई० एस०के० मिश्रा, विमला मिश्र, शोभा मिश्र सहित विभिन्न महाविद्यालयों के प्राचार्य, प्रतिभागी प्राध्यापक, शोधछात्र सहित छात्र-छात्राएँं उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन डा० शिवेश प्रसाद राय एवं आभार ज्ञापन संगोष्ठी के संयोजक डा० श्याम विहारी श्रीवास्तव एवं प्राचार्य डा० गौरीशंकर द्विवेदी ने किया।
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