विद्यालय एकता तथा शांति की पौधशालाएँ और शिक्षक शांति निर्माता हैं!

इन्हीं विद्यालयों में बच्चों के मस्तिष्क में शांति रूपी बीज रोपित कर उन्हें ‘विश्व नागरिक’ के रूप में विकसित करना होगा!

विद्यालय एकता तथा शांति की पौधशालाएँ हैं :- 

विद्यालय शांति की पौधशालाएँ हैं। इन्हीं पौधशालाओं में बच्चों के मस्तिष्क में बचपन से ही शांति रूपी बीज को बोने के साथ ही एकता रूपी खाद और मानवता रूपी पानी से सींचकर उन्हें विश्व नागरिक के रूप में तैयार किया जाता है। हमारा मानना है कि युद्ध के विचार सबसे पहले मनुष्य के मस्तिष्क में पैदा होते हैं, इसलिए मनुष्य को शान्ति की सीख देने के लिए हमें मनुष्य के मस्तिष्क में ही शान्ति के विचार रोपित करने होंगे, जिसके लिए सबसे श्रेष्ठ अवस्था बचपन है। वास्तव में विद्यालयी शिक्षा किसी व्यक्ति के जीवन के उन वर्षों से संबंध रखती है, जहाँ पर उसके सम्पूर्ण व्यक्तित्व का निर्माण होता है। इस अवस्था में रखी गई नींव पर ही जीवन का पूरा भवन निर्मित होता है। इसलिए शांतिपूर्ण विश्व को निर्मित करने का काम विद्यालय को करना चाहिए और इसके लिए विद्यालय के वातावरण को पूर्णतया शांतिपूर्ण और न्यायपूर्ण समाज की एक छोटी इकाई के रूप में विकसित करना चाहिए क्योंकि यही शांति के लिए शिक्षा का मूल उद्देश्य भी है। 

शिक्षक शांति के निर्माता है :- 

बालकों के लिए शिक्षक उनके आदर्श होते हैं। इसलिए शिक्षकों का पहला उत्तरदायित्व यह है कि वे बच्चों को एक अच्छा इंसान बनने में सहायता करें और उन्हें अपनी क्षमताओं का सम्पूर्ण प्रयोग करने के लिए उत्साहित भी करें। शिक्षकों को एक अपने बच्चों को एक अच्छा इंजीनियर, डाक्टर, वैज्ञानिक, प्रशासनिक अधिकारी आदि तो बनाना ही है। इसके लिए उन्हें अपने बच्चों को विश्वस्तरीय ज्ञान भी देना है, लेकिन उसके पहले उन्हें प्रत्येक बालक को एक अच्छा इंसान बनाना है। ताकि वे अपने ज्ञान का उपयोग सारी मानवजाति की कल्याण के लिए करें। इस प्रकार शिक्षकों को एक माली की भूमिका में रहकर प्रत्येक बच्चे के मन-मस्तिष्क में विश्वस्तरीय ज्ञान और संस्कार के साथ ही शांति रूपी बीज को भी बोना चाहिए। उन्हें एकता रूपी खाद और मानवता रूपी पानी से सींच कर उन्हें विश्व नागरिक के रूप में विकसित करना चाहिए। शांति के लिए शिक्षा, शिक्षकों के लिए एक सुनहरा अवसर है कि वे अपनी पौधशालाओं में ऐसे विश्व नागरिकों की पौध तैयार करें, जो कि सारे विश्व में शांति स्थापना और सारी मानवजाति के कल्याण के लिए काम करें। किसी ने सही ही कहा है कि अच्छे शिक्षक शांति मूल्यों के आदर्श होते हैं।  

वास्तविक शांति की शुरूआत बच्चों से करनी होगी :-

राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने कहा था कि ‘‘यदि हम इस विश्व में वास्तविक शांति की सीख देना चाहते हैं, और यदि हम युद्ध के विरूद्ध वास्तविक युद्ध चाहते हैं, तो हमें इसकी शुरूआत बच्चों से करनी होगी।’’ लेकिन दुर्भाग्य से आज स्कूलों ने केवल बच्चों को भौतिक विषयों की शिक्षा देने तक अपने को सीमित कर रखा है, जिसके कारण दुनियाँ में शांति की जगह अशांति फैलती जा रही है। इसलिए दुनियाँ के सभी देशों के विद्यालयों को अपने उत्तरदायित्व को समझते हुए एकता एवं शांति की पौधशालाओं के माध्यम से प्रत्येक बालक को बचपन से ही विषयों के साथ ही शांति एवं एकता की शिक्षा अनिवार्य रूप से देनी चाहिए। बच्चों के मन-मस्तिष्क में बचपन से ही यह विचार डालना होगा सारी दुनियाँ हमारा अपना ही घर है और दुनियाँ की सारी मानवजाति एक ही परमपिता परमात्मा की संताने हैं। ईश्वर एक है, धर्म एक है तथा मानव जाति एक है।

भारत की प्रगति में तो हमेशा विश्व की प्रगति समाहित रही है :-

12 मई को देश के प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेन्द्र मोदी जी ने राष्ट्र को सम्बोधित करते हुए कहा था कि भारत की संस्कृति, भारत के संस्कार, उस आत्मनिर्भरता की बात करते हैं जिसकी आत्मा वसुधैव कुटुंबकम है। भारत जब आत्मनिर्भरता की बात करता है, तो आत्मकेंद्रित व्यवस्था की वकालत नहीं करता। भारत की आत्मनिर्भरता में संसार के सुख, सहयोग और शांति की चिंता होती है। जो संस्कृति जय जगत में विश्वास रखती हो, जो जीव मात्र का कल्याण चाहती हो, जो पूरे विश्व को परिवार मानती हो, जो अपनी आस्था में ‘माता भूमिः पुत्रो अहम् पृथिव्यः’ की सोच रखती हो जो पृथ्वी को मां मानती हो, वो संस्कृति, वो भारतभूमि, जब आत्मनिर्भर बनती है, तब उससे एक सुखी-समृद्ध विश्व की संभावना भी सुनिश्चित होती है। भारत की प्रगति में तो हमेशा विश्व की प्रगति समाहित रही है। भारत के लक्ष्यों का प्रभाव, भारत के कार्यों का प्रभाव, विश्व कल्याण पर पड़ता है।  

राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 छात्रों को ‘विश्व नागरिक’ के रूप में विकसित करने पर जोर देती है :-

नई शिक्षा नीति के मसौदे में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का विजन भारतीय मूल्यों से विकसित हुई शिक्षा प्रणाली बताई गई है, जो कि सभी को सर्वोत्तम गुणवत्ता शिक्षा उपलब्ध कराके और भारत को वैश्विक ज्ञान महाशक्ति बनाकर भारत को एक जीवंत और न्याय संगत ज्ञान समाज में बदलने के लिए प्रत्यक्ष रूप से योगदान करेगी। इस शिक्षा नीति में परिकल्पित है कि हमारे संस्थानों की पाठ्यचर्चा और शिक्षा विधि छात्रों में अपने मौलिक दायित्वों और संवैधानिक मूल्यों, देश के साथ जुड़ाव और बदलते हुए विश्व में नागरिक की भूमिका और उत्तरदायित्वों की जागरूकता उत्पन्न करें। नीति का विजन छात्रों में भारतीय होने का गर्व न केवल विचार में बल्कि व्यवहार, बुद्धि और कार्यों में भी और साथ ही ज्ञान, कौशल, मूल्यों और सोच में भी होना चाहिए, जो मानवाधिकारों, स्थायी विकास और जीवन यापन तथा वैश्विक कल्याण के लिए प्रतिबद्ध हो, ताकि वे सही मायनों में विश्व नागरिक बन सकें। 

विश्व एकता तथा विश्व शान्ति तो तभी आयेगी, जब संसार के सभी लोगों में हृदय की एकता होगी :-

प्रसिद्ध वैज्ञानिक आइन्सटीन से किसी ने पूछा कि तीसरा विश्व युद्ध किन-किन शस्त्रों से लड़ा जायेगा तो उन्होंने कहा था कि तीसरे विश्व युद्ध के बारे में तो मैं नहीं बता सकता किन्तु मेरे अनुमान से चैथा विश्व युद्ध पत्थरों के द्वारा लड़ा जायेगा। उनके अनुसार यदि तीसरा विश्व युद्ध हुआ तो संसार का पूरी तरह विनाश हो जायेगा और तब युद्ध की अवस्था में मनुष्य को लड़ाई के लिए केवल पत्थर ही मिलेंगे। उसके बाद उनसे पूछा गया कि - क्या एटम बम के निर्माण से विश्व में सुख-शांति आ सकती है? तब उस महान वैज्ञानिक ने कहा था कि जो एटम बम मैंने बनाया है, उससे तो भारी विनाश ही होगा। सुख-शांति तो तभी आयेगी, जब संसार में सभी लोगों के बीच ऊपरी दिखावटी एकता नहीं बल्कि हृदय की एकता होगी। एक सुन्दर प्रार्थना है - एक कर दे हृदय अपने सेवकों के हे प्रभु। कर महान उद्देश्य उन पर प्रकट मेरे प्रभु।  

शिक्षा के द्वारा ही सारी मानव जाति से प्रेम करने वाले विश्व नागरिक विकसित हो सकते हैं :-

संयुक्त राष्ट्र संघ के पूर्व महासचिव डा0 कोफी अन्नान ने हमारे द्वारा लिखे पत्र के उत्तर में कहा था कि ‘‘मानव इतिहास में 20वीं सदी सबसे खूनी तथा हिंसा की सदी रही है।’’ 20वीं सदी में विश्व भर में दो महायुद्धों तथा अनेक युद्धों की विनाश लीला का ये सब तण्डाव संकुचित राष्ट्रीयता के कारण हुआ है। हमारा मानना है कि इसके लिए सबसे अधिक दोषी हमारी शिक्षा है। विश्व के सभी देशों के स्कूल अपने-अपने देश के बच्चों को अपने देश से प्रेम करने की शिक्षा तो देते हैं, लेकिन शिक्षा के द्वारा सारे विश्व से प्रेम करना नहीं सिखाया, जबकि नोबेल शान्ति पुरस्कार से सम्मानित नेल्सन मण्डेला ने कहा है कि शिक्षा सबसे शक्तिशाली हथियार है, जिससे दुनियाँ को बदला जा सकता है। हमारा मानना है कि सूचना तथा उच्च तकनीकी क्रान्ति के कारण विश्व को एक ग्लोबल विलेज के रूप में अब एक वैश्विक लोकतांत्रिक व्यवस्था के अन्तर्गत संचालित किया जाना चाहिए। 

विद्यालय सारी मानव जाति से प्रेम करने वाले विश्व नागरिक विकसित करें :-

21वीं सदी की शिक्षा का स्वरूप 20वीं सदी की शिक्षा से भिन्न होना चाहिए। 21वीं सदी की शिक्षा उद्देश्यपूर्ण होनी चाहिए, जिससे सारी मानव जाति से प्रेम करने वाले विश्व नागरिक विकसित हांे। इसलिए 21वीं सदी की शिक्षा के माध्यम से हमें विद्यालय के शांति रूपी पौधशाला में प्रत्येक बालक को विश्व नागरिक के रूप में विकसित करके उनके दृष्टिकोण को भी विश्वव्यापी बनाना होगा। प्रत्येक बालक को विश्वस्तरीय ज्ञान देकर उसे सर्वोच्च इंजीनियर, डाॅक्टर, वैज्ञानिक एवं प्रशासनिक अधिकारी आदि तो बनाना ही है, लेकिन उसके पहले हमें प्रत्येक बालक को एक अच्छा इंसान बनाना है। ऐसे में एक आधुनिक विद्यालय का यह सामाजिक उत्तरदायित्व है कि वे अपनी शांति रूपी पौधशाला में उद्देश्यपूर्ण शिक्षा के माध्यम से सारी वसुधा को एक कुटुम्ब बनाने वाले विश्व नागरिकों का निर्माण करें। सिटी मोन्टसरी स्कूल अपने इसी नैतिक उत्तरदायित्व को समझते हुए विगत 62 वर्षों से छोटे-छोटे बच्चों के मन-मस्तिष्क में बचपन से विश्वस्तरीय ज्ञान के साथ ही शांति एवं एकता की शिक्षा देकर उन्हें विश्व नागरिक के रूप में विकसित कर रहा है। --जय जगत्--


डाॅ0 जगदीश गाँधी

प्रख्यात शिक्षाविद् एवं संस्थापक-प्रबन्धक 

सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ। 



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