प्रकृति के साथ समायोजन स्थापित कर विकास करना ही होगा श्रेयष्कर : डॉ0 गणेश पाठक


बलिया। शहीद मंगल पाण्डेय राजकीय महिला महाविद्यालय नगवा, बलिया में राष्ट्रीय सेवा योजना इकाई के विशेष शिविर के चौथे दिन बौद्धिक व्याख्यान में बतौर मुख्य अतिथि अमरनाथ मिश्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य पर्यावरणविद् डा० गणेश कुमार पाठक ने "पर्यावरण एवं विकास अंतर्सम्बन्ध" नामक विषय पर व्याख्यान देते हुए कहा कि विकास की अंधी दौड़ हेतु एवं मानव की भोगवादी प्रवृत्ति तथा विलासितापूर्ण जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु मानव द्वारा पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी के कारकों का इतने बेरहमी से अनियंत्रित दोहन एवं शोषण किया है कि पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी असंतुलित होती जा रही। अनेक संसाधन सदैव के लिए समाप्त हो गये हैं एवं नेक समाप्ति के कगार पर हैं। वनों का बेरहमी से विनाश के कारण धरती नंगी हो गयी है, जिसके चलते एक तरफ जहाँ   बाढ़ एवं सूखा दोनों में वृद्धि हुई है,वहीं दूसरी तरफ वन आधारित संसाधन समाप्त होते जा रहे हैं। अनेक पादप एवं जीव जातियाँ सदैव के लिए विलुप्त हो गयी हैं एवं अनेक विलुप्ति के कगार पर हैं। इन सबके चलते पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी तंत्र असंतुलित होकर अनेक आपदाओं को जन्म देकर हमारा विनाश करने को तत्पर हैं। प्रकृति के अवयवों को मिटाकर किया गया विकास अब हमारे लिए विनाश साबित हो रहा है। ऐसी स्थिति में यदि हम पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी के साथ समन्वय एवं सामंजस्य बनाकर विकास के पथ पर अग्रसर होंगे तभी हम सुरक्षित रह पायेंगे। इसके तहत हमारा विकास भी होगा एवं हमारा पर्यावरण भी बचा रहेगा। इसके लिए हमें भारतीय सनातन संस्कृति में निहित पर्यावरण संरक्षण की अवधारणाओं को अपने जीवन जीने का आधार बनाना होगा। हम प्रकृति के रक्षक रहे हैं। आज पुनः प्रकृति की रक्षा को अपना धर्म एवं कर्म बनाना होगा।

महाविद्यालय के प्राध्यापक डा० शिवेन्दु दूबे ने अपने संबोधन में कहा कि आज आवश्यकता ऐसे विकास की है जिससे पर्यावरण का कमसे कम नुकसान हो। विकास करने से पूर्व पर्यावरण संरक्षण की प्रत्येक पहलुओं पर विचार करना होगा। महाविद्यालय के प्राचार्य ने शिविरार्थियों कै संबोधित करते हुए कहा कि आज की सबसे बड़ी समस्या जनसंख्या वृद्धि है। आज भारत जनसंख्या विस्फोट के दौर से गुजर रहा है। हमें जनाधिक्य को संसाधन के रूप में बदलना होगा।



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