चिंता: कोरोना का टीका लगा, हुए एचआइवी संक्रमित; आस्ट्रेलिया में रोका गया चिकित्सीय परीक्षण

आस्ट्रेलिया में कोरोना की रोकथाम के लिए विकसित किए जा रहे एक टीके का चिकित्सीय परीक्षण बंद कर दिया गया है क्योंकि परीक्षण के प्राथमिक चरण में टीका लेने पर उनके शरीर में एचआइवी के लिए एंटी बॉडी का निर्माण हो रहा था। सीएसएल ने एक बयान में कहा कि वी451 कोविड-19 टीका के आरंभिक चरण के परीक्षण में भाग लेने वाले 216 प्रतिभागियों में कोई गंभीर प्रतिकूल असर देखने को नहीं मिला। क्वींसलैंड विश्वविद्यालय (यूक्यू) और बायोटेक कंपनी सीएसएल ने यह टीका तैयार किया है।

बहरहाल, चिकित्सीय परीक्षण के दौरान पता चला कि कुछ मरीजों में एंटीबॉडी का निर्माण हुआ जो एचआइवी के प्रोटीन से मिलता जुलता था। आस्ट्रेलिया की सरकार से विचार-विमर्श करने के बाद क्वींसलैंड विश्वविद्यालय-सीएसएल ने टीका के चिकित्सीय परीक्षण के दूसरे और तीसरे चरण का काम रोक देने का फैसला किया।

आस्ट्रेलिया ने टीका की 5.1 करोड़ खुराक खरीदने के लिए चार टीका निर्माताओं से करार किया है। यह कंपनी भी उनमें से एक थी। टीका निर्माता ने कहा कि टीका से किसी प्रकार के संक्रमण का खतरा नहीं था और नियमित जांच के दौरान इसकी पुष्टि हो गई कि इसमें एचआईवी का वायरस मौजूद नहीं था।

आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने कहा कि परीक्षण रोका जाना दिखाता है कि आस्ट्रेलिया की सरकार और अनुसंधानकर्ता बहुत सावधानी के साथ काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘आज जो हुआ उससे सरकार को हैरानी नहीं हुई। हम बिना किसी जल्दबाजी के संभल कर चलना चाहते हैं।’ सीएसएल ने कहा कि अगर राष्ट्रीय स्तर पर टीका का इस्तेमाल होता तो समुदाय के बीच एचआइवी संक्रमण के त्रुटिपूर्ण परिणाम के कारण आस्ट्रेलिया के लोकस्वास्थ्य पर इसका गंभीर असर पड़ता। जुलाई से ही इस टीके का चिकित्सीय परीक्षण किया जा रहा था।

टीका के विकास में लगे विश्वविद्यालय के पॉल यंग ने कहा कि टीका पर फिर से काम किया जा सकता था लेकिन टीम को इसमें और लंबा वक्त लग जाता। सीएसएल के मुख्य विज्ञान अधिकारी एंड्रयू नैश ने कहा कि टीका विकास के शुरुआती चरण में कई तरह के जोखिम जुड़े होते हैं और असफलता की भी आशंका रहती है। आस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी में संक्रामक रोग के विशेषज्ञ और मेडिसिन के एसोसिएट प्रोफेसर संजय सेनानायके ने कहा कि यह खबर निराशाजनक है। लेकिन टीका के असफल होने को लेकर कोई हैरानी की बात नहीं है। उन्होंने कहा, ‘आम तौर पर करीब 90 फीसद टीके कभी बाजार तक नहीं पहुंच पाते।’




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