जानिए, ताजमहल के बाद अब कुतुब मीनार के अंदर क्यों किया जा रहा मंदिर होने का दावा

उत्तर प्रदेश के अयोध्या में राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद एक तरफ जहां मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि परिसर में मौजूद मस्जिद को हटाने के लिए कोर्ट में लड़ाई लड़ी जा रही है तो वहीं दूसरी तरफ ये लड़ाई अब कुतुब मीनार को लेकर भी शुरू हो गई है.  दिल्ली के साकेत कोर्ट में लगाई गई इस याचिका में इस ऐतिहासिक धरोहर के अंदर पूजा-पाठ की इजाजत की मांग की गई है.

मीनार के अंदर मंदिर होने का किसने किया दावा

दरअसल, कोर्ट में लगाई गई याचिका में पहले जैन तीर्थकर ऋषभ देव और भगवान विष्णू के नाम से दाखिल की गई है. वकील हरिशंकर जैन की तरफ से दाखिल याचिका पर मंगलवार को सिविल जज के सामने शुरुआती बहस हुई. 24 दिसंबर को मामला अगली सुनवाई के लिए लगाया गया है.

क्यों पैदा हुआ ये विवाद?

दरअसल, इस याचिका में दावा किया गया है कि दिल्ली के पहले मुस्लिम शासक कुतुबुद्दीन ऐबक की तरफ से 1192 में बनवाई गई इस मस्जिद में मुसलमानों ने कभी नमाज़ नहीं पढ़ी. इसकी वजह यह थी कि मंदिरों की सामग्री से बनी इमारत के खंभों, मेहराबों, दीवार और छत पर जगह-जगह हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियां थीं. उन मूर्तियों और धार्मिक प्रतीकों को आज भी देखा जा सकता है.

याचिका में बताया गया है कि आज का महरौली दअरसल मिहिरावली है. इसे चौथी सदी के महान शासक चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक वराहमिहिर ने बसाया था. इतिहास के प्रसिद्ध गणितज्ञ और खगोलविद वराहमिहिर ने ग्रहों की गति के अध्ययन के लिए विशाल स्तंभ का निर्माण करवाया. इसे ध्रुव स्तंभ या मेरु स्तंभ कहा जाता था. मुस्लिम शासकों के दौर में इसे कुतुब मीनार नाम दे दिया गया. इसी परिसर में 27 नक्षत्रों के प्रतीक के तौर पर 27 मंदिर थे. इनमें जैन तीर्थंकरों के साथ भवन विष्णु, शिव, गणेश आदि के मंदिर थे. यह सारा विवरण इतिहास में आसानी से उपलब्ध है.

मोहम्मद गौरी के गुलाम कुतुबुद्दीन ने दिल्ली में कदम रखते ही सबसे पहले इन मंदिरों को तोड़ने का आदेश दिया. जल्दबाजी में उसी सामग्री से मस्जिद खड़ी कर दी गई. उसे नाम दिया गया कुव्वत-उल-इस्लाम यानी इस्लाम की ताकत. इसके निर्माण का मकसद इबादत से ज़्यादा स्थानीय लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना और उनके सामने इस्लाम की ताकत दिखाना था.

27 हिंदू-जैन मंदिरों को तोड़कर खड़ी की गई मस्जिद

मंदिरों को तोड़ने और उस पर मस्जिद खड़ी करने की बात खुद कुतुबुद्दीन के दरबारी लेखकों ने लिखी है. 13वीं सदी के विदेशी यात्री इब्न बतूता से लेकर अंग्रेज़ इतिहासकारों ने भी यह तथ्य लिखा है. यहां तक कि इमारत के बाहर लगा भारतीय पुरातत्व सर्वे का बोर्ड भी यही कहता है कि उसे 27 हिंदू-जैन मंदिरों को तोड़ कर बनाया गया है.

1914 में भारतीय पुरातत्व विभाग की तरफ से इमारत के अधिग्रहण को भी याचिका में गलत बताया गया है. कहा गया है कि इमारत के बारे में पूरी जानकारी होते हुए भी सरकार ने हिंदू और जैन समुदाय को अपना पक्ष रखने का मौका नहीं दिया. मुस्लिम समुदाय ने जगह का कभी धार्मिक इस्तेमाल किया ही नहीं, न ही उसे वक्फ की संपत्ति घोषित किया. इसलिए उनका कोई दावा नहीं बनता. जगह सरकार के कब्जे में है. 27 मंदिरों के दोबारा निर्माण के लिए दिया जाए. मंदिरों के प्रबंधन के लिए ट्रस्ट का गठन किया जाए.

कुतुब मीनार को मिला है धरोहर का दर्जा

दिल्ली के महरौली स्थित कुतुब मीनार को वैश्विक ऐतिहासिक धरोहर का दर्जा मिला हुआ है. इसकी ऊंचाई 72.5 मीटर है जो दुनिया की सबसे ऊंची मीनार है. इसमें कुल 379 सीढ़ियों का निर्माण किया गया है. साल 1199 में कुतुबुद्दीन ऐबक ने इस ऐतिहासिक कुतुब मीनार का निर्माण करवाया था.

इससे पहले, बीजेपी नेता साक्षी महाराज ने दिल्ली की जामा मस्जिद को तोड़ने की मांग की थी. उन्होंने दावा किया था कि जामा मस्जिद के नीचे देवी-देवताओं की मूर्तियां हैं. उन्होंने कहा था कि अगर मूर्तियां न मिलें तो मैं फांसी पर लटकने को तैयार हूं. उन्नाव में फायरब्रांड नेता साक्षी महाराज ने दिल्ली की जामा मस्जिद को ध्वस्त यानी तोडऩे का आह्वान किया और दावा किया कि उसकी सीढिय़ों से देवताओं की मूर्तियां निकलेंगी. साक्षी महाराज ने यह भी दावा किया था कि मुगलों ने पूरे भारत में मंदिरों को तोड़ा और उनकी जगह पर करीब 3000 से अधिक मस्जिदों का निर्माण कराया.




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