कुहरे का बढ़ता प्रभाव : प्रकृति के साथ मानव भी है जिम्मेदार : डॉ० गणेश पाठक

बलिया। अमरनाथ मिश्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय दूबेछपरा, बलिया के पूर्व प्राचार्य पर्यावरणविद् डॉ० गणेश कुमार पाठक ने परिवर्तन चक्र से एक भेंट वार्ता में कुहरा एवं उसके प्रभाव पर चर्चा करते हुए बताया कि वैसे तो कुहरा एक मौसमी प्राकृतिक परिघटना है, किंतु इसकी उत्पति एवं प्रभाव की अभिवृद्धि में मानव भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कुहरे का निर्माण प्रायः धरातल के निकट विकिरण, संचालन एवं विभिन्न तापमान के वायुराशियों के मिलने से होता है। अर्थात् जब धरातल के निकट की वायु संतृप्त हो जाती है तो उसका वाष्प जलकणों में संघनित हो जाता है तो ये जलकण धरातल के कुछ ऊँचाई तक लटके रहते हैं, जिससे दृश्यता कम हो जाती है।

डॉ०  पाठक ने बताया कि प्रायः हम कुहरा एवं कुहासा को एक ही तत्व मानते हैं, किंतु वास्तव में इनमें भिन्नता होती है। यदि जलकणों की सान्द्रता बहुत अधिक होती है तो उसे कुहरा कहा जाता है, जबकि सान्द्रता कम होने पर उसे कुहासा कहा जाता है। दोनों की सीमा रेखा दृश्यता के माप से ही निर्धारित होती है। इस तरह जलकणों के लटकने से यदि दृश्यता एक किमी० से कम हो जाती है, तो उसे कुहरा कहा जाता है, किंतु यदि दृश्यता एक किमी० से अधिक हो जाती है तो उसे कुहासा कहा जाता है। कुहरा प्रायः चार प्रकार के होते है- विकिरण कुहरा, अभिवहन कुहरा, सीमाग्र कुहरा एवं मिश्रित कुहरा।

डॉ० पाठक के अनुसार  मानवीय गतिविधियों एवं कार्यों के चलते कुहरे तीव्रता बढ़ जाती है और कुहरे का प्रभाव विषैला हो जाता है।मानव के गतिविधियों से उत्पन्न पर्यावरण प्रदूषण, खासतौर से वायु प्रदूषण में शामिल विषैली गैसें एवं वायुमंडल में पहुँची अन्य विषैली गैसें कुहरा में मिलकर कुहरा को भी जहरीली बना देती हैं, जिसका प्रभाव घातक होता है। ऐसे कुहरे को धूम कुहरा कहा जाता है, जो बेहद घातक होता है और उसके प्रभाव में आने से मानव का दम घूँट कर मृत्यु तक भी हो जाती है।

डॉ० पाठक ने यह भी बताया कि कुहरे में दृश्यता अति महत्वपूर्ण होती  है,जिसके आधार पर कुहरे में आगे की वस्तुएँ दिखायी नहीं देती हैं। दृश्यता के आधार पर कुहरे को चार प्रकारों में बाँटा गया है- 

1.हल्का कुहरा- दृश्यता 1100 मीटर तक

2.साधारण कुहरा - 1100 से  550 मीटर तक

3.सघन कुहरा - दृश्यता 550 से 300 मीटर तक

4.अति सघन कुहरा - दृश्यता 300 मीटर से कम

इस तरह सघन कुहरा से आगे की वस्तुएँ दिखाई नहीं देती हैं, जिससे सूर्य भगवान का भी दर्शन नहीं हो पाता है, फलतः ठंढक बढ़ जाती है। वर्तमान समय में बलिया सहित पूरे पूर्वांचल के जिलों में सघन कुहरा जारी है, जिसके चलते सूर्य प्रकाश धरती तक नहीं पहुँच पा रहा है, ठ़ंडक में अचानक वृद्धि हो गयी है और सड़क दुर्घटनाएँ भी बढ़ती जा रही हैं। आवागमन बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है। यही नहीं कई दिनों तक कुहरे का प्रभाव कायम रहने से गेहूँ, जौ, मटर, मसूर, चना, तिलहन, आलू आदि फसलों को भी नुकसान पहुँचता है और उनकी वृद्धि रूक जाती है।

डॉ० पाठक ने बताया कि  वर्तमान समय में बलिया सहित पूर्वांचल के सभी जिलों में कुहरा के साथ- साथ पश्चिमी हवा के साथ पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, गाजियाबाद, मेरठ, लखनऊ आदि नगरों से प्रवाहित होकर आया वायु प्रदूषण तथा पराली जलाने से उत्पन्न प्रदूषण के चलते कुहरा विषैला हो गया है। बलिया के कुहरे में भी अजीब तरह की तीखी दमघोंटू गैस की गंध आ रही है। इस तरह का कुहरा स्वास्थ्य के लिए अत्यन्त ही हानिकारक होता है। खासतौर से दमा के रोगियों, उच्च रक्तचाप के रोगियों, हृदय के रोगियों एवं शुगर के रोगियों के लिए विशेष रूप से खतरनाक होता है। यही नहीं इस कुहरा से आँख में भी जलन होती है।

डॉ० पाठक के अनुसार बलिया सहित पूर्वांचल के सभी जिलों में कुहरा कई दिनों तक जारी रहने की उम्मीद है। कुहरा के साथ - साथ सूर्य किरणों का धरती पर नहीं आने से डंढक में भी वृद्धि होगी। यही नहीं यदि इसी बीच पश्चिमी विक्षोभ  जारी हो गया, जिसकी पूरी सम्भावना है तो आने वाली पछुवा हवाओं से कड़ाके की ठंढ पड़ कर शीत लहर भी आ सकती है। 

डॉ० पाठक का कहना है कि इस घातक विषैले कुहरे से सावधानी बरतना ही इससे बचने का एक मात्र उपाय है। कारण की कोरोना संक्रमण का दूसरा दौर भी चालू हो रहा है, उस स्थिति में यह घातक कुहरा संक्रमण को और बढ़ा सकता है, लिहाजा अनिवार्य रूप से मास्क पहन कर ही घर से बाहर निकलना चाहिए। पर्याप्त गरम कपड़ा पहनना और सिर पर गरम टोपी पहनना भी आवश्यक है। यदि बहुत आवश्यक है तभी घर से बाहर निकलना चाहिए तथा चाय एवं गर्म पानी का सेवन करना एवं काढ़ा पीना लाभदायक होगा। ठंढ लगने पर तत्काल चिकित्सक को दिखाना चाहिए।



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