बलिया। प्राथमिक विद्यालय में नौकरी पाने वाली शिक्षिका अपने जीवन काल के उस अति शुभ दिन को भला कैसे भूल सकती है जब उसे बेसिक शिक्षा में सेवा देने का अवसर मिला। जिस प्रथम दिन को वह प्राथमिक विद्यालय में एक शिक्षिका के रूप में अपना पदभार ग्रहण किया होगा। उस प्रथम दिन तो वह खुशी से फूली नहीं समाती होगी और यह कहना भी कोई अतिशयोक्ति नहीं होगा कि उस दिन उसके पांव जमीन पर नहीं पड़ते होंगे, खुशियों की उड़ान लगाते हुए भविष्य के आसमान में आजाद पंछी की तरह उड़ती हुई अपने आप को बहुत ही भाग्यशाली समझती होगी कि उसका और उसके परिवार के सभी सदस्यों का भविष्य सुरक्षित हो गया। शायद यही हालात सभी नौकरी पेशा वाले अधिकारियों एवं कर्मचारियों की भी प्रथम दिन पदभार ग्रहण करते समय अवश्य ही होती होगी।
शार्दिय नवरात्र की दशहरा हो, या ग्रीष्म ऋतु की दशहरा हमारे लिए तो पूज्य आनंदमयी माता दुर्गा के अष्ट स्वरूप ही है। सूखी रोटी और अनसुलझे सवालों के इस आस में कि शायद कल बेहतर होगा त्योहार में बच्चों को एक टाफी तक ना देने का मलाल दिल में दफन होकर ही गुजर गया। मुझे नहीं पता था कि इस नौकरी में आने के 9 महीने के लगातार इंतजार करने के साथ आज भी अपनी पारिश्रमिक वेतन पाने के लिए संघर्ष की राह देखना पड़ेगा दिलों में बड़ा विश्वास और उम्मीद की किरण नजर आ रही थी मुझे तरस तो तब आ रहा था जब हमारे ही बीच के लोग संगठन की भूमिका में थे और इस वेतन को बहाल करने के लिए एक तारीख को दरी भी बिछानी पड़ी थी उस वक्त ऐसा लगा कि आने वाला सवेरा सुनहरा होगा परंतु समय के साथ तारीख महीना में बदली और सुनहरा सवेरा शाम ढलने की किरण बन गई तारीखों को गिनते-गिनते कब सप्ताह से महीने और महीने से 9 महीने गुजर गए पता ही नहीं चला। लेकिन आज भी मैं वेतन से वंचित हूं। ईश्वर की कृपा से 9 महीने में घरों में किलकारीया गूजं जाती हैं।
यह शब्द बेसिक शिक्षा में कार्यरत एक महिला शिक्षक बहन की थी जब वह अपना दुख दर्द अपने शिक्षक नेता से बांट रही थी। उनके हृदय विदारक शब्द मुझ शिक्षक नेता समरजीत बहादुर सिंह के हृदय में चुभने वाले बाण से कम न थे, आंसूओ से भरे आंख और कंप-कंपाते होठों से निकले शब्द मुझको पांव से सर तक हिला कर चली गई जैसे धरती पर भूकंप आया हो और खूबसूरत इमारत को तोड़ कर चली गया है। हम उस हताश निराश और बेवस महिला शिक्षक की पीड़ा को समझ सकते हैं जो 9 महीने तक समय से स्कूलों में अपना समय देकर बच्चों को शिक्षार्थी बनाया मैं जानना चाहता हूं कि क्या हर बात के लिए संघर्ष ही जरूरी है, आखिर कौन सा कारण है कि अभी भी उन शिक्षकों का वेतन जारी नहीं हो पा रहा है ? कौन सी ऐसी दुर्व्यवस्था है जिसके कारण वेतन कार्य में बाधा उत्पन्न हो रही है ?
किसको पीड़ा सुनाऊं,
कहां आवाज लगाऊं !
किस दर पर शीश नवाऊं,
किसको अपना दर्द सुनाऊं !!
जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी महोदय आपका ध्यान उस टेबल के तरफ ले जाना चाहता हूं जहां से सत्यापन के रूप से होकर अध्यापकों का वेतन के लिए आदेश निर्गत होता है मैं नहीं जानता कि आपको इन बातों का संज्ञान है अथवा नहीं है? लेकिन पुनः मेरा आपसे निवेदन है कि उक्त संदर्भों का संज्ञान लेकर जिन शिक्षकों का वेतन अभी भी प्रभावित है उसको तत्काल प्रभाव से निकलवाने का कष्ट करें। मैं उम्मीद करता हूं अगली तारीख में मुझे विवशता के साथ आपको पुनः स्मरण न कराना पड़े। वैसे भी आपसे उलाहना देना मेरा अधिकार है और आपके परिवार की छोटी इकाई होने के नाते हम अध्यापकों का भलाई सोचना पारिवारिक मुखिया होने के नाते आपका कर्तव्य है। इसी को आधार बनाकर आशा और विश्वास के साथ में उम्मीद करता हूं कि निकट भविष्य में इस समस्या का हल हमारे शिक्षक परिवार के मुखिया होने के नाते आप अवश्य निकाल कर उन तमाम शिक्षक भाई बहनों का कल्याण करेंगे ताकि भविष्य में उन्हें आर्थिक परेशानियों से ना गुजरना न पड़े।
समरजीत बहादुर सिंह 'मंत्री'
प्राथमिक शिक्षक संघ
दूबहर, बलिया।
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