6 अप्रैल, चैत्र रामनवमी पर विशेष :-
सबसे पहले तो हम यह जानें कि राम को 'श्रीराम' नाम प्रचलित होने से पहले किस नाम से जाना जाता था। इस संदर्भ में कहा जा सकता है कि सबसे पहले इन्हें 'दशरथ राघव' या 'राघव' कहकर संबोधित करने का उल्लेख मिलता है। चूंकि श्रीराम को विष्णु का मानव रूप में अवतार माना जाता है, इसलिए यह भी उल्लेख मिलता है कि इनके अन्दर 16 में से 12 कलाएं विद्यमान थीं। कुछ विद्वान इनमें 14 कलाओं को निहित मानते हैं। जो भी हो, जैसे-जैसे राघव में इन कलाओं का निखार होता गया, ये कलाओं से परिपूर्ण होते गए।इनके अन्दर अनेक मानवोचित गुणों का विकास होता गया और ये 16 गुणों से परिपूर्ण हो गए। इनके इन 16 गुणों का उल्लेख वाल्मीकि रामायण एवं श्रीरामचरितमानस सहित रामकथा से जुड़े अनेक ग्रंथों में मिलता है। चूंकि श्रीराम पुरष रूप में अवतार लिए थे, इसलिए इनमें निहित इन 16 गुणों एवं इन गुणों के अनुरूप किए गए सद्कार्यों के कारण ही इन्हे 'मर्यादा पुरूषोत्तम राम' से अभिहित किया गया और जब किसी पुरष में दिव्य गुण आ जाते हैं और वह भी ऐसा पुरुष जिनके अंदर देवता स्वरूप कलाएं भी हों, तो निश्चित ही वह पुरुष भगवान स्वरूप ही नहीं, बल्कि भगवान हो जाता है। इसी लिए इन्हें 'भगवान श्रीरामचंन्द्र' के रूप में मान्यता मिली और ये विश्व के आराध्य देव के रूप में प्रतिष्ठापित होकर वसुधैव कुटुम्बकम् के लिए लोक कल्याणकारी होकर भारतीय संस्कृति के आदर्श रूप में आज भी हमारे जीवन के आधार हैं एवं युगों-युगों तक रहेंगें।
भगवान राम अपने जिन 16 गुणों से भरपूर होकर जनकल्याणार्थ अपना सम्पूर्ण जीवन न्यौछावर कर दिया, उन गुणों को जान लेना भी समीचीन प्रतीत होता है। ये 16 गुण है-गुणवान, निंदा से परे रहना, धर्यज्ञ, कृतज्ञ, सदा सत्यवादी, दृढ़ प्रतिज्ञ, सदाचारी, सबका रक्षक, विद्वतापूर्ण, समर्थवान, प्रियदर्शी, जितेंद्रिय, क्रोध को जीतने वाला, कांतिमय, विद्वान तथा वीर, साहसी एवं पराक्रमी। इस प्रकार श्रीरामचन्द्र एक योग्य एवं कुशल शासक, सबकी प्रशंसा करने वाला, सकारात्मक भाव रखने वाला, धर्म का ज्ञाता, आभार प्रकट करने वाला, विनम्रता से परिपूर्ण, सदैव सत्य बोलने वाला, दृढ़ निश्चय वाला, अपनी प्रतिज्ञा पर अटल रहने वाला, धर्मात्मा, पुण्यात्मा, उत्तम आचरण से युक्त चरित्रवान, सभी प्राणियों का रक्षक, सहयोगी स्वभाव वाला, बुद्धिमान एवं विवेकशील, सभी का विश्वास पात्र, सभी का समर्थन प्राप्त करने वाला, अति दिव्य आभा मण्डल से युक्त, मन पर अधिकार रखने वाला, शांत एवं सहज भाव से क्रोध पर नियंत्रण प्राप्त करने वाला, उत्तम व्यक्तित्व से युक्त कांतिमय शरीर वाला, स्वस्थ, संयमी एवं बलवान शरीर वाला, वीर एवं साहसी, असत्य का विरोधी एवं युद्ध क्षेत्र में विरोधियों के विरूद्ध ऐसा क्रोध प्रकट करने वाला कि देवता भी डर जाएं, आदि गुणों से भरपूर हैं।
भगवान श्रीराम ने पूरब से पश्चिम एवं उत्तर से दक्षिण तक भारत को एक ऐसे एकता के सूत्र में पिरोया कि इसकी अखण्डता सदैव अक्षुण बनी रही। राम सगुण एवं निर्गुण सबके आराध्य हैं। नीति, न्याय एवं नेतृत्व का नाम है 'श्रीराम'। राम धर्म, जाति, वर्, सम्प्रदाय एवं संकीर्णता के दायरे से मुक्त एक ऐसे अवतारी पुरुष हैं जो सबकी रक्षा करते हैं,सबका ध्यान रखते हैं एवं सबके लिए परोपकारी हैं। राम एक आदर्श पुत्र, आदर्श भाई, आदर्श पत्नी, आदर्श पिता, आदर्श मित्र एवं आदर्श राजा हैं। एक कुशल राजा होने के कारण ही उनके राज्य में प्राण, अपान एवं सम्मान आदि प्राण वायु का क्षय नहीं होता था। उपरोक्त गुणों के कारण ही राम ने रावण पर विजय प्राप्त की।
यदि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में देखा जाय तो आज राम के आदर्श विशेष उपादेय हो गए हैं। आज समाज में जिस तरह से नैतिकता समाप्त होती जा रही है, चारित्रिक क्षरण होता जा रहा है, सामाजिक वैमनस्यता बढती जा रही है, अत्याचार, अनाचार एवं दुराचार का बोलबाला होता जा रहा है एवं भारतीय संस्कृति पर घातक प्रहार हो रहे हैं, इन सबके लिए हमें श्रीराम के आदर्शो पर चलना होगा और श्रीराम के आदर्शों के बल पर ही देश में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को बढ़ावा देकर देश को विश्व गुरू बनने के मार्ग पर अग्रसर किया जा सकता है।
डाॅ0 गणेश कुमार पाठक ✍️
पूर्व शैक्षिक निदेशक
जेएनसीयू, बलिया
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