होली की सप्रेम भेंट !       


           "टीशट गाँधी की पदयात्रा" (हास्य-व्यंग्य)
         
अभी हाल ही में 'टीशट गाँधी' की तथाकथित "भारत जोड़ो यात्रा" सम्पन्न हुई है। मैं यह सोचकर हैरान हूँ कि अपने बेहद दिलचस्प विज्ञापनों के लिए विश्व विख्यात फेविकोल बनाने वालों ने उस यात्रा से प्रेरित होकर कोई नया विज्ञापन बनाने के बारे में कैसे नहीं सोचा ! यहाँ, मैं नयी पीढ़ी के पाठकों को यह स्मरण कराना अपना लेखकीय धर्म समझता हूँ कि टीशट गाँधी उसी पोलिटिकल पार्टी की खानदानी उपज हैं जिसकी सरपरस्ती में कभी अखण्ड भारत को दो फाड़ कर दिया गया था ! यही वजह है कि पिछले सितम्बर माह में जब टीशट गाँधी (अलांग विथ अ लंबी-सी दाढ़ी) ने उक्त महाअभियान का शुभारंभ किया, तो हम जैसे अल्पज्ञ मानवों ने यही समझा कि वे सन् सैंतालीस में भारत से अलग हो चुके पाकिस्तान एवं अपने स्वनामधन्य परनानाश्री के प्रधानमंत्रीत्व काल में चीनियों द्वारा गुंडई से हड़पे गये हमारे भूभाग को पुनः भारत में मिलाने का पुनीत संकल्प लेकर निकल रहे हैं ! 

बहरहाल, जैसा कि अक्सर होता है कि अल्पज्ञों के अनुमान गलत साबित होते हैं। सो, हमारे भी हुए। हमें शीघ्र ही पता चल गया कि दरअसल वह यात्रा एकजुट भारत को जोड़ने के लिए नहीं बल्कि अब तक गुमनाम एक चमत्कारी सफेद टी शर्ट की खूबियों को हाईलाइट करने के लिए शुरू की गयी थी। एक ऐसी टी शर्ट जो, योजनाबद्ध तरीके से उगाई गई खिचड़ी दाढ़ी के साथ पहनने पर, धारक को भयानक शीतलहर के दिनों में भी, गर्म रखने का वचन देती है। इतना ही नहीं। वह टीशर्ट लगातार कई दशकों तक सत्ता सुख भोगने वाले खानदान के वारिस को, मात्र आठ-नौ साल तक सत्ता से दूर रहते ही एक गंभीर 'तपस्वी' में रूपांतरित कर सकती है ! 

हालाँकि, प्रत्यक्ष रूप से टीशट गाँधी के अंधभक्तों ने बार-बार यही प्रचारित किया कि उनके युवराज को अचानक (शायद लगातार चुनाव हारते-हारते) एक ऐसी अद्भुत शक्ति हासिल हो गई है कि वे एक साधारण-सी सफेद टी शर्ट को भी असाधारण रूप से सर्दीरोधी बना सकते हैं। और आप जानते ही हैं कि हमारे देश में अंधभक्त और मीडिया ही दो ऐसी ताकतें हैं जिन्हें नैरेटिव सेट करने में गजब की महारत हासिल है। बहरहाल, इन अंधभक्तों के इस घनघोर प्रयास का परिणाम (दुष्परिणाम पढ़ें) यह हुआ कि उनके नेता के भारत को जोड़ने के स्वप्निल अभियान से ज्यादा चर्चित  कड़ाके की ठंड में उनके द्वारा मात्र एक टी शर्ट धारण करके मारे-मारे यहाँ-वहाँ भटकना हो गया। फिर क्या था। गलती सुधारने के जोश में आकर उन बेरोजगार पार्टी समर्थकों तथा चापलूसों के झुण्ड ने अगराकर अपने नेता टीशट गाँधी को अचानक 'संत', 'साधक', 'तपस्वी','जादूगर' ... न जाने क्या-क्या अनाप-शनाप कहना शुरू कर दिया। अति उत्साह में वे लोग यह भी भूल गये कि इस देश में ऐसा करिश्मा करने वाले उनके नेता ही एकमात्र इन्सान नहीं हैं। यहाँ सर्दियों में होने वाली शादियों और निकलने वाली बारातों में, चप्पे-चप्पे पर दर्जनों ऐसी वेदरप्रूफ 'गाँधिनियाँ' देखी जा सकती हैं जो, धन-धान्य से सम्पन्न होने के बावजूद, दिसम्बर-जनवरी की ठिठुराती हुई सर्दी में भी बदन पर मात्र एक झीनी-सी साड़ी, लहँगा, जींस-टॉप अथवा सलवार सूट पहनकर बडे़ मजे से मटकती-थिरकती रहती हैं । हालाँकि उन चन्द्रमुखियों के पास कोई विस्तारवादी दाढ़ी भी नहीं होती ! उन्हें तो कभी मोदी जी को पछाड़ सकने वाली एकमात्र नेत्री अथवा भारत के भावी प्रधानमंत्री के रूप में कहकर प्रचारित नहीं किया गया ! उन्हें तो भूले से भी कोई 'तपस्विनी','साध्वी' अथवा 'चमत्कारी इन्सान' की उपाधि से नवाजने की उदारता नहीं दिखाता। उल्टे उन बिचारियों को कभी 'सनकी', कभी 'हीरोइन की दुम', तो कभी 'फैशनाइटिस की पेशेंट' कह-कहकर लोग बेरहमी से उनका उपहास ही उड़ाते रहते हैं। 

लब्बोलुआब यह है कि अगर हाड़ गलाती सर्दियों में न्यूनतम वस्त्र पहन कर सरे-आम घूमना-फिरना ही कुछ भारतीयों की दृष्टि में भावी प्रधानमंत्री होने की सबसे बड़ी सलाहियत है, तो फिर श्रीमान् टीशट गाँधी ही एकमात्र उम्मीदवार क्यों ? हमारे यहाँ की शीतकालीन बारातों अथवा किटी पार्टियों में शामिल वे तमाम कोमलांगी औरतें अथवा देश के वे करोड़ों अभागे लोग क्यों नहीं जो गरीबी की वजह से, सर्दियाँ ही नहीं, पूरा जीवन ही अर्ध-नग्न रहकर गुजार देते हैं ?

शशि प्रेमदेव ✍️

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