छठ व्रत में होती है सूर्य देव की पूजा, फिर कौन हैं छठी मैया?


कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। पूर्वी भारत समेत देश के विभिन्न इलाकों में छठी मैय्या का यह पर्व बहुत धुमधाम से मनाया जाता है। इस व्रत का प्रारंभ चतुर्थी तिथि को होता है और षष्ठी तिथि को इसका पहला अर्घ्य दिया जाता है। इस व्रत में भगवान सूर्य की अराधना पूरी निष्ठा व परंपरा के साथ की जाती है। छठी मैय्या का यह व्रत काफी कठिन होता है इसलिए इसे महाव्रत और महा पर्व के नाम से भी जाना जाता है। छठी मैय्या निसंतानों को संतान देती हैं और सभी बच्चों की रक्षा भी करती हैं। आइए, जानते हैं आखिर कौन हैं छठी मैय्या…

इनकी बहन है छठी मैय्या

पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, भगवान ब्रह्मा की मानस पुत्री और सूर्य देव की बहन हैं षष्ठी मैय्या। इस व्रत में षष्ठी मैया का पूजन किया जाता है इसलिए इसे छठ व्रत के नाम से भी जाना जाता है। पुराणों के अनुसार, ब्रह्माजी ने सृष्‍ट‍ि रचने के लिए स्‍वयं को दो भागों में बांट दिया, जिसमें दाहिने भाग में पुरुष और बाएं भाग में प्रकृति का रूप सामने आया। सृष्‍ट‍ि की अधिष्‍ठात्री प्रकृति देवी के एक अंश को देवसेना के नाम से भी जाना जाता है। प्रकृति का छठा अंश होने के कारण इन देवी मां का एक प्रचलित नाम षष्‍ठी है, जिसे छठी मैय्या के नाम से जानते हैं।

इस नाम से भी जाना जाता है

पुराणों में इस देवी को कात्यानी के नाम से भी जाना जाता है। नवारत्र के छठे दिन इन्हीं माता की पूजा की जाती है। ग्रामीण समाज में आज भी बच्चे के जन्म के छठे दिन छठी पूजा का प्रचलन है। स्कंद पुराण में छठी मैय्या के व्रत के बारे में बताया गया है कि जो भी भक्त इस व्रत को सच्चे मन से करता है, उसकी सभी मनोकामना पूरी होती हैं, यह सभी सुखों को प्रदान करता है। छठी मैय्या संतान को दीर्घायु प्रदान करती हैं और बच्चों की रक्षा करना इनका गुण भी है।

इस तरह देते हैं अर्घ्य

षष्ठी तिथि की सांयकाल में सूर्य देवता को गंगा-यमुना या फिर किसी पवित्र नदी या तालाब के किनारे अर्घ्य दिया जाता है। अर्घ्य के दौरान नदी किनारे बांस की टोकरी में मौसमी फल, मिठाई और प्रसाद में ठेकुआ, गन्ना, केले, नारियल, खट्टे के तौर पर डाभ नींबू और चावल के लड्डू भी रखे जाते हैं। इसके बाद पीले रंग के कपड़े से सभी फलों को ढक दिया जाता है और दीपक हाथ में लेकर टोकरी को पकड़कर तीन बार डूबकी मारकर भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इस प्रसाद को बहुत ध्यान से रखा जाता है। इसमें साफ-सफाई और पवित्रता का विशेष महत्व है।

साभार- नव भारत टाइम्स






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