आचार्य चाणक्य के इन्हीं विचारों में से आज हम एक और विचार का विश्लेषण करेंगे। आज का ये विचार जुए की लत पर आधारित है।
आचार्य चाणक्य ने अपनी नीतियों में काफी कुछ लिखा है। उनके द्वारा बताई गई हर एक नीति मनुष्य को जीवन में लक्ष्य पाने के लिए प्रेरित करती हैं। यही वजह है कि आज भी लोग उनके द्वारा कही गई बातें को जरूर अपनाते हैं। उनके द्वारा बताई गई बातों पर चलने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
चाणक्य जी ने कई ऐसी बातों का भी जिक्र किया है, जिन्हें आपको तुरंत छोड़ देना चाहिए नहीं तो वह आपको बरबाद कर सकता है। आचार्य चाणक्य के इन्हीं विचारों में से आज हम एक और विचार का विश्लेषण करेंगे। आज का ये विचार जुए की लत पर आधारित है।
'जुए में लिप्त रहने वाले के कार्य पूरे नहीं होते हैं।' - आचार्य चाणक्य
आचार्य चाणक्य के इस कथन के अनुसार, जो मनुष्य जुए में लिप्त रहता है उसके कोई भी कार्य पूरे नहीं होते हैं। मतलब इस कथन में चाणक्य जी का कहना है कि जुए की लत खाई के समान है।
यानि जिस तरह से मनुष्य खाई को भरने की कितनी भी कोशिश क्यों न कर लें लेकिन उसे भर पाता। ठीक उसी प्रकार जुए में लिप्त व्यक्ति अपने किसी भी काम को पूरा नहीं कर पाता है, क्योंकि जुए की लत भी उसी खाई के समान है जिसमें जितनी भी चीजें डाल दें उसे भरा नहीं जा सकता।
चाणक्य जी कहते हैं कि कई बार ऐसा होता है कि मनुष्य इस लत की गिरफ्त में आकर अपना सब कुछ बरबाद कर देता है। साथ ही ऐसे व्यक्ति का दिमाग हमेशा जुए की ओर रहता है।
हमेशा वह यही सोचता रहता है कि शायद इस बार पैसा लगाने से उसे फायदा होगा। कई बार उसे थोड़ा मुनाफा भी हो जाता है। इसी मुनाफे की चपेट में आकर वो न केवल अपना वर्तमान दांव पर लगा देता है बल्कि वह अपना भविष्य भी अंधकार में कर देता है।
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