पौराणिक मान्यताओं में बजरंगबली को कलयुग का प्रत्यक्ष देव कहा गया है. मान्यता ये भी है कि हनुमान को अजर-अमर होने का आशीर्वाद स्वयं माता सीता से मिला था. तभी से महावीर हनुमान अपने प्रिय भक्तों के संकट हरते के लिए पृथ्वी पर ही विचरण करते रहते हैं. कहते हैं कि जीवन में संकट कैसा भी आए, हनुमान जी के पास उसका समाधान जरूर होता है. इस धरती पर ऐसा कोई कष्ट और ऐसी कोई पीड़ा नहीं होती है जिसका निदान करने में महावीर हनुमान असमर्थ हों इसलिए अगर आपके जीवन में भी बार –बार संकट आते हों या कोई भी काम पूरा होने में बाधाएं आती हों तो भगवान हनुमान की उपासना करनी चाहिए ।
संकटमोचन हुनमान , भगवान शिव का अवतार हैं। दुनियाभर में भक्तों द्वारा उन्हें राम भक्त के नाम से जाना जाता है क्यूंकि वो रामजी के सबसे बड़े भक्त थे। स्वामिभक्ति, बल और बुद्धिमत्ता के लिए वो संसार में शीर्ष माने जाते हैं। पवनपुत्र हनुमान के रूप में वैसी तेजी है जैसी तेजी हमारे मन में होती है, उनकी गति वायु देव की तरह हैं। भगवान हनुमान का अपनी इन्द्रियों पर पूरा नियंत्रण है जैसे वायु देव का अपनी इन्द्रियों पर पूरा नियंत्रण है। भगवान हनुमान बंदरों की सेना के महानायक थे, वह भगवान राम के दूत के रूप में विख्यात हैं। हनुमाजी अतुलनीय शक्तियों का भंडार है।
रामायण काल में हनुमानजी रामजी की भक्ति को लेकर सबसे अधिक विख्यात थे। रामायण काल में जब रावण ने भगवान श्रीराम की पत्नी सीता माता का हरण किया था तो हनुमानजी ने ही उन्हें ढूंढ़कर रामजी को बताया था की रावण ने उन्हें कहा पर रखा हैं। हनुमानजी रामजी के दूत बनकर रावण के पास गए थे और जब रावण ने उन्हें पकड़ लिया था तो वो अपनी बहादुरी से लंका में आग लगाकर बच निकलें थे। उन्होंने भगवान राम के वनवास काल में उनके मार्ग में आने वाली समस्त बाधाओं और संकटों को दूर कर अपनी सच्ची भक्ति का प्रमाण दिया था। हनुमानजी ने रामजी की रावण से युद्ध करने और लंका पर आक्रमण करने में बहुत सहायता की थी।
सीता माता अपने रामजी के लिए हनुमानजी की स्वामी भॉति और प्रेम को देखकर प्रसन्न हो उठी थी और उन्होंने हनुमानजी को अजर-अमर रहने का वरदान दिया। अजर-अमर का वरदान पाकर बजरंगबली हनुमान निस्वार्थ भाव से अपने भक्तो की रक्षा करके उन्हें सभी संकटो से बचते हैं और इसलिए उन्हें संकट मोचन महाबली हनुमान के नाम से जाना जाता हैं।
हनुमानाष्टक ॥
संकट मोचन हनुमान अष्टक का अगर नियमित पाठ किया जाए तो भक्तों को उनके गंभीर संकट से मुक्ति मिल जाती है।
बाल समय रवि भक्षी लियो तब, तीनहुं लोक भयो अंधियारों।
ताहि सों त्रास भयो जग को, यह संकट काहु सों जात न टारो।
देवन आनि करी बिनती तब, छाड़ी दियो रवि कष्ट निवारो।
को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो ॥१॥
बालि की त्रास कपीस बसैं गिरि, जात महाप्रभु पंथ निहारो।
चौंकि महामुनि साप दियो तब, चाहिए कौन बिचार बिचारो।
कैद्विज रूप लिवाय महाप्रभु, सो तुम दास के सोक निवारो ॥ २॥
अंगद के संग लेन गए सिय, खोज कपीस यह बैन उचारो।
जीवत ना बचिहौ हम सो जु, बिना सुधि लाये इहाँ पगु धारो।
हेरी थके तट सिन्धु सबे तब, लाए सिया-सुधि प्राण उबारो ॥३॥
रावण त्रास दई सिय को सब, राक्षसी सों कही सोक निवारो।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु, जाए महा रजनीचर मरो।
चाहत सीय असोक सों आगि सु, दै प्रभुमुद्रिका सोक निवारो ॥ ४ ॥
बान लाग्यो उर लछिमन के तब, प्राण तजे सूत रावन मारो।
लै गृह बैद्य सुषेन समेत, तबै गिरि द्रोण सु बीर उपारो।
आनि सजीवन हाथ दिए तब, लछिमन के तुम प्रान उबारो ॥ ५ ॥
रावन जुध अजान कियो तब, नाग कि फाँस सबै सिर डारो।
श्रीरघुनाथ समेत सबै दल, मोह भयो यह संकट भारो I
आनि खगेस तबै हनुमान जु,बंधन काटि सुत्रास निवारो ॥ ६ ॥
बंधू समेत जबै अहिरावन, लै रघुनाथ पताल सिधारो।
देबिन्हीं पूजि भलि विधि सों बलि,देउ सबै मिलि मन्त्र विचारो।
जाये सहाए भयो तब ही, अहिरावन सैन्य समेत संहारो ॥ ७ ॥
काज किये बड़ देवन के तुम,बीर महाप्रभु देखि बिचारो।
कौन सो संकट मोर गरीब को,जो तुमसे नहिं जात है टारो।
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु, जो कछु संकट होए हमारो ॥ ८ ॥
॥ दोहा ॥
लाल देह लाली लसे, अरु धरि लाल लंगूर।
वज्र देह दानव दलन, जय जय जय कपि सूर ॥
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