सौभाग्यवती स्त्रियां अपने सुहाग को अखण्ड बनाए रखने और अविवाहित युवतियां मन मुताबिक वर पाने के लिए हरितालिका तीज का व्रत करती हैं.
हरतालिका तीज व्रत भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाया जाता है. इस दिन महिलाएं भगवान शिव व माता पार्वती की रेत के द्वारा बनाई गई अस्थाई मूर्तियों को पूजती हैं व सुखी वैवाहिक जीवन तथा संतान की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करती हैं.
उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल और बिहार में मनाया जाने वाला यह त्योहार करवाचौथ से भी कठिन माना जाता है क्योंकि जहां करवाचौथ में चांद देखने के बाद व्रत तोड़ दिया जाता है वहीं इस व्रत में पूरे दिन निर्जल व्रत किया जाता है और अगले दिन पूजन के पश्चात ही व्रत तोड़ा जाता है. इस व्रत से जुड़ी एक मान्यता यह है कि इस व्रत को करने वाली स्त्रियां पार्वती जी के समान ही सुखपूर्वक पतिरमण करके शिवलोक को जाती हैं.
सौभाग्यवती स्त्रियां अपने सुहाग को अखण्ड बनाए रखने और अविवाहित युवतियां मन मुताबिक वर पाने के लिए हरतालिका तीज का व्रत करती हैं. सर्वप्रथम इस व्रत को माता पार्वती ने भगवान शिव शंकर के लिए रखा था. इस दिन विशेष रूप से गौरी−शंकर का ही पूजन किया जाता है.
हरतालिका तीज शुभ मुहूर्त :
-हरितालिका तीज बृहस्पतिवार, सितम्बर 9, 2021 को
-प्रातः काल हरितालिका पूजा मुहूर्त–06:03 ए एम से 08:33 ए एम
+तृतीया तिथि प्रारम्भ–सितम्बर 09, 2021 को 02:33 ए एम बजे
-तृतीया तिथि समाप्त–सितम्बर 10, 2021 को 12:18 ए एम बजे
हरतालिका तीज पूजन विधि : इस दिन व्रत करने वाली स्त्रियां सूर्योदय से पूर्व ही उठ जाती हैं और नहा धोकर पूरा श्रृंगार करती हैं. पूजन के लिए केले के पत्तों से मंडप बनाकर गौरी−शंकर की प्रतिमा स्थापित की जाती है. इसके साथ पार्वती जी को सुहाग का सारा सामान चढ़ाया जाता है. रात में भजन, कीर्तन करते हुए जागरण कर तीन बार आरती की जाती है और शिव पार्वती विवाह की कथा सुनी जाती है.
हरतालिका व्रत कथा : एक पौराणिक कथा के अनुसार माता पार्वती की इच्छा के विरुद्ध उनके पिता हिमालय राज ने उनकी शादी भगवान विष्णु से तय कर दी थी. ऐसा होने से बचने के लिए माता पार्वती की सहेलियों ने उनका अपहरण कर लिया और उन्हें गुफा में ले गईं. दरअसल, पौराणिक कथा के अनुसार नारद जी के कहने पर पिता हिमालय ने अपनी बेटी माता पार्वती का विवाह भगवान विष्णु से तय कर दिया था. लेकिन दूसरी ओर, माता पार्वती भगवान शिव से विवाह करना चाहती थीं. और भगवान शिव को पाने के लिए वे कठोर तपस्या कर रही थीं. और ये बात जब उनकी सखियों को पता चली तो वे माता पार्वती का अपहरण कर लेती हैं ताकि उन्हें भगवान विष्णु से शादी करने से बचाया जा सके. माता पार्वती गुफा में भी कठोर तपस्या करती रहीं. इससे भोलेनाथ बहुत प्रसन्न हो गए. और उन्होंने माता पार्वती को आर्शीवाद दिया और उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया.
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