जन्माष्टमी पर 27 साल बाद बन रहा है खास संयोग, नोट कर लें कृष्ण भगवान को खुश करने का खास उपाय

 


जन्माष्टमी 2021 : भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव को जन्माष्टमी के नाम से जाना जाता है। जन्माष्टमी का पर्व बड़े ही धूम- धाम से मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की अष्टमी पर रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। इस साल जन्माष्टमी पर विशेष संयोग बन रहा है। इस बार 27 साल बाद यह पहला मौका है जब 30 अगस्त को श्री कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व एक ही दिन मनाई जाएगी । भाद्रपद मास की अष्टमी तिथि 29 अगस्त की रात 11.27 बजे से 30 अगस्त की रात 1.59 बजे तक रहेगी। 30 अगस्त की सुबह 6.38 बजे से 31 अगस्त सुबह 9.43 बजे तक रोहिणी नक्षत्र रहेगा। हरेक साल स्मार्त और वैष्णव की अलग- अलग जन्माष्टमी होती थी, इसका कारण ये था वैष्णव उदयातिथि और स्मार्त वर्तमान तिथि को मानते हैं। ज्योतिषाचार्य कहते हैं कि अष्टमी और रोहिणी नक्षत्र एक साथ पड़ रहे हैं, इसे जयंती योग मानते हैं और इसलिए ये महासंयोग और बेहतर है। द्वापरयुग में जब भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था, तब भी जयंती योग पड़ा था। इस बार ये सब संयोग जन्माष्टमी पर है इस महासंयोग में व्रत करने से मनवांछित फल की प्राप्ति होगी। इस दिन भगवान श्री कृष्ण को खुश करने के लिए कई तरह के उपाय किए जाते हैं। इस दिन भगवान श्री कृष्ण को प्रसन्न करने के लिए उन्हें भोग लगाएं और आरती करें।

भगवान को प्रसन्न करने के लिए आप इन चीजों का भोग लगा सकते हैं : माखन, मिश्री, दही, दूध, केसर, मावे, घी, मिठाई, इत्यादि। 

जरूर करें ये आरती :-

आरती कुंजबिहारी की,

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

आरती कुंजबिहारी की,

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥


गले में बैजंती माला,

बजावै मुरली मधुर बाला।

श्रवण में कुण्डल झलकाला,

नंद के आनंद नंदलाला।

गगन सम अंग कांति काली,

राधिका चमक रही आली।

लतन में ठाढ़े बनमाली

भ्रमर सी अलक,

कस्तूरी तिलक,

चंद्र सी झलक,

ललित छवि श्यामा प्यारी की,

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

॥ आरती कुंजबिहारी की...॥


कनकमय मोर मुकुट बिलसै,

देवता दरसन को तरसैं।

गगन सों सुमन रासि बरसै।

बजे मुरचंग,

मधुर मिरदंग,

ग्वालिन संग,

अतुल रति गोप कुमारी की,

श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥

॥ आरती कुंजबिहारी की...॥


जहां ते प्रकट भई गंगा,

सकल मन हारिणि श्री गंगा।

स्मरन ते होत मोह भंगा

बसी शिव सीस,

जटा के बीच,

हरै अघ कीच,

चरन छवि श्रीबनवारी की,

श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥

॥ आरती कुंजबिहारी की...॥


चमकती उज्ज्वल तट रेनू,

बज रही वृंदावन बेनू।

चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू

हंसत मृदु मंद,

चांदनी चंद,

कटत भव फंद,

टेर सुन दीन दुखारी की,

श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥

॥ आरती कुंजबिहारी की...॥


आरती कुंजबिहारी की,

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

आरती कुंजबिहारी की,

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥







Comments