घंटी बजाने का धार्मिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण


हिंदू धर्म में देवालयों व मंदिरों के बाहर घंटियां या घडिय़ाल पुरातन काल से लगाए जाते हैं। जैन और हिन्दू मंदिर में घंटी लगाने की परंपरा की शुरुआत प्राचीन ऋषियों-मुनियों ने शुरू की थी। इस परंपरा को ही बाद में बौद्ध धर्म और फिर ईसाई धर्म ने अपनाया। बौद्ध जहां स्तूपों में घंटी, घंटा, समयचक्र आदि लगाते हैं तो वहीं चर्च में भी घंटी और घंटा लगाया जाता है।

स्कंद पुराण के अनुसार भगवान विष्णु कहते हैं कि घंटी मुझे सर्वदा प्रिय है, भगवान विष्णु कहते हैं कि मेरे पूजन के समय घंटी बजाने से 100 कोटि यज्ञ करने का फल मिलता है। और मेरी पूजा के दौरान घंटी बजाने से मोक्ष प्राप्त होता है और घंटी बजाने से सभी पापों का नाश हो जाता है। संध्यावंदन 8 प्रहर की होती है जिसमें से मुख्‍य पांच और उसमें से भी प्रात: और संध्या यह दो प्रमुख है। घंटी और घड़ियाल ताल और गति से बजाया जाता है। संध्यावंदन 8 प्रहर की होती है जिसमें से मुख्‍य पांच और उसमें से भी प्रात: और संध्या यह दो प्रमुख है। घंटी और घड़ियाल ताल और गति से बजाया जाता है।

मंदिर में घंटी लगाए जाने के पीछे न सिर्फ धार्मिक कारण है बल्कि वैज्ञानिक कारण भी इनकी आवाज को आधार देते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि जब घंटी बजाई जाती है तो वातावरण में कंपन पैदा होता है, जो वायुमंडल के कारण काफी दूर तक जाता है। इस कंपन का फायदा यह है कि इसके क्षेत्र में आने वाले सभी जीवाणु, विषाणु और सूक्ष्म जीव आदि नष्ट हो जाते हैं जिससे आसपास का वातावरण शुद्ध हो जाता है।

1– मंदिर में घंटी बजाने पर उसकी आवाज़ से आस-पास के वातावरण में कंपन पैदा होता है, जो काफी दूर तक जाता है. घंटी की ध्वनि से होनेवाले कंपन से इस वातावरण में आने वाले सभी जीवाणु, विषाणु और सूक्ष्म जीव नष्ट हो जाते हैं, जिससे आस-पास का वातावरण शुद्ध हो जाता है l

2– जिन जगहों पर घंटी बजने की आवाज नियमित रुप से आती है, वहां का वातावरण हमेशा शुद्ध और पवित्र बना रहता है. इससे नकारात्मक शक्तियां हटती हैं.

3– कहा जाता है कि जब सृष्टि का प्रारंभ हुआ तब जो नाद अर्थात ध्वनि गुंजन हुआ था वही आवाज घंटी बजाने पर भी आती है. उल्लेखनीय है कि यही नाद ॐकार के उच्चारण से भी जागृत होता है. देवालयों और मंदिरों के गर्भगृह के बाहर लगी घंटी या घंटे को काल का प्रतीक भी माना गया है.

4– देवालयों में घंटी और घड़ियाल संध्यावंदन के समय बजाएं जाते हैं. संध्यावंदन 8 प्रहर की होती है. मंदिरों में घंटी और घड़ियाल ताल और गति से बजाया जाता है.

5– पूजा व आरती के समय बजाए जाने वाली छोटी घंटियों और घंटे-घडियालों में एक विशेष ताल और गति होती है. इन लय युक्त तरंगों का प्रभाव व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर भी पडता है.

6- मंदिरों में बजनेवाले घंटे की आवाज़ ककर्श न होकर मनमोहक होती है, जो सुनने में कानों को प्रिय लगती है जिससे किसी भी तरह की हानि नहीं होती.

7– मंदिर की घंटियां कैडमियम, जिंक, निकेल, क्रोमियम और मैग्निशियम से बनती हैं, जिसकी आवाज़ दूर तक जाती है. ये आपके मस्तिष्क के दाएं और बाएं हिस्से को संतुलित करती है.

8– जैसे ही आप घंटी या घंटा बजाते हैं एक तेज आवाज पैदा होती है, ये आवाज़ 10 सेकेंड तक गूंजती है. ये आवाज़ आपके मस्तिष्क को एकाग्र करने में मदद करती है.

9– इस गूंज की अवधि आपके शरीर के सभी 7 हीलिंग सेंटर को एक्टीवेट करने के लिए काफी अच्छी होती है. ये आपके आसपास के वातावरण को शुद्ध करती हैं. आपको एकाग्र कर के ये आपके मन को शांति प्रदान करती हैं.

10– घंटी की ध्वनि मन, मस्तिष्क और शरीर को ऊर्जा प्रकार प्रदान करती है. इस ऊर्जा से बुद्धि प्रखर होती है. मंदिरों में जब भी आरती होती है तो घंटी की आवाज से वहां उपस्थित लोग मंत्र-मुग्ध हो जाते हैं।


डाॅ0 रवि नंदन मिश्र

*असी.प्रोफेसर एवं कार्यक्रम अधिकारी*

*राष्ट्रीय सेवा योजना*

(*पं.रा.प्र.चौ.पी.जी.काॅलेज, वाराणसी*) *सदस्य- 1.अखिल भारतीय ब्राम्हण एकता परिषद, वाराणसी,*

*2. भास्कर समिति,भोजपुर,आरा*

*3.अखंड शाकद्वीपीय* 

*4.चाणक्य राजनीति मंच, वाराणसी*

*5.शाकद्वीपीय परिवार, सासाराम*

*6. शाकद्वीपीय  ब्राह्मण समाज, जोधपुर*

*7.अखंड शाकद्वीपीय एवं*

*8. उत्तर प्रदेश अध्यक्ष - वीर ब्राह्मण महासंगठन, हरियाणा*

*मोबाईल नम्बर- 776698951*

*ह्वाटसाॅप नंबर- 8765254245*



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