रसड़ा(बलिया)। साहित्य व उपन्यास के सम्राट मुंशी प्रेमचन्द जी की जयंती पर स्थानीय मिशन रोड़ प्रीमियर काेचिंग इन्स्टीट्यूट के सभागार में उमंगाेत्सव मनायी गयी।कार्यक्रम का शुभारम्भ प्रेमचंद जी के चित्र पर पुष्प अर्पित व दीप प्रज्ज्वलित कर हुआ। संस्था के छात्र-छात्राआें काे सम्बाेधित करते हुए हिन्दी साहित्य के प्रवक्ता व पत्रकार रवि आर्य ने मुंशी जी की जीवनी पर प्रकाश डालते हुए कहा कि मुंशी प्रेमचंद जी ने हिन्दी साहित्य आैर समाज की जाे सेवा की है उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता है। उनकी लेखनी सदैव मानव की पीड़ा काे दर्शाता रहा । उन्हाेने मनुज की कष्टाें दु:ख-दर्दाें काे बहुत ही नजदीक से देखा था।
प्रेमचंद ने अपनी कला के शिखर पर पहुँचने के लिए अनेक प्रयोग किए। जिस युग में प्रेमचंद ने कलम उठाई थी, उस समय उनके पीछे ऐसी कोई ठोस विरासत नहीं थी और न ही विचार और प्रगतिशीलता का कोई मॉडल ही उनके सामने था । लेकिन उन्होंने गोदान जैसे कालजयी उपन्यास की रचना की जो कि एक आधुनिक क्लासिक माना जाता है। उन्होंने चीजों को खुद गढ़ा और खुद आकार दिया। जब भारत का स्वतंत्रता आंदोलन चल रहा था तब उन्होंने कथा साहित्य द्वारा हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं को जो अभिव्यक्ति दी उसने सियासी सरगर्मी को, जोश को और आंदोलन को सभी को उभारा और उसे ताक़तवर बनाया और इससे उनका लेखन भी ताक़तवर होता गया।प्रेमचंद इस अर्थ में निश्चित रूप से हिंदी के पहले प्रगतिशील लेखक कहे जा सकते हैं। उन्होंने प्रगतिशील लेखक संघ के पहले सम्मेलन को सभापति के रूप में संबोधन किया था। उनका यही भाषण प्रगतिशील आंदोलन के घोषणा पत्र का आधार बना। प्रेमचंद ने हिन्दी में कहानी की एक परंपरा को जन्म दिया और एक पूरी पीढ़ी उनके कदमों पर आगे बढ़ी। एक क्रांतिकारी रचनाकार रहे।
उन्होंने न केवल देशभक्ति बल्कि समाज में व्याप्त अनेक कुरीतियों को देखा और उनको कहानी के माध्यम से पहली बार लोगों के समक्ष रखा। उन्होंने उस समय के समाज की जो भी समस्याएँ थीं उन सभी को चित्रित करने की शुरुआत कर दी थी। उसमें दलित भी आते हैं, नारी भी आती हैं। ये सभी विषय आगे चलकर हिन्दी साहित्य के बड़े विमर्श बने। प्रेमचंद हिन्दी सिनेमा के सबसे अधिक लोकप्रिय साहित्यकारों में से थे। पत्रकार आर्य ने कहा कि बड़े दु:ख की बात है कि आज भारतीय समाज ही भारतीय भाषा हिन्दी से मुंह फेर रह है। जिसके कारण आज का मनुष्य हृदय रहित हाे रहा है। हिन्दी भाषा नहीं एक पवित्र भावना है। अपने विचाराें के अन्त में विद्यार्थियाें से हिन्दी काे हृदय से पढ़ने व हिन्दी काे पुन: अपने स्थान पर स्थापित करने का आह्वान किया। इस कार्यक्रम में राजू शर्मा, प्रकाश गुप्ता, इमरान अंसारी, हसनैन अंसारी, सुनील यादव, लोकनाथ यादवों, विवेक चाैहान, आदित्य पाण्डेय, विशाल साहनी, गुलाम नबी, शाहिदा , शिफा परवीन, फिजा खातून शबा परवीन, सबिहा सिद्दीकी के साथ नगर के सम्मानित पत्रकार भी माैजूद रहे।
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